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Articles by "Literature"

० इरफ़ान राही ० 

नई दिल्ली-कहानी में सब कुछ कह देना लगभग एक शर्त हो सकती है पर वहीं लघुकथा में बहुत कुछ अनकहा होता है। यही अनकहापन लघुकथा का चरमोत्कर्ष है और इसकी यही सार्थकता गिरीश चावला की पुस्तक पूर्ण करती है। उक्त बात समारोह अध्यक्ष एवं गगनांचल के सम्पादक डॉ. आशीष कंधवे ने कही। मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा दिल्ली के हिन्दी भवन में लेखक गिरीश चावला के लघुकथा संग्रह 'इशिका-हमारा स्वाभिमान' का विमोचन एवं काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें मुख्य अतिथि मुख्य अतिथि सुभाष चंदर (वरिष्ठ साहित्यकार व्यंग्यश्री), कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ.आशीष कंधवे  (संपादक, गगनांचल,भारत सरकार) ने की। साथ ही विशिष्ट अतिथि कोमल वर्मा, धर्मेंद्र 'मुकुल' (साहित्यकार व अभिनेता), योगिता वासवानी (शिक्षाविद व रंगकर्मी), अर्श परमिंदर शाह (लेखक व अभिनेता) रहे।कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन किया व शारदे वंदना शीतल मारवाह ने प्रस्तुत की। तत्पश्चात मातृभाषा उन्नयन संस्थान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भावना शर्मा ने स्वागत उद्बोधन देते हुए संस्थान के विषय में उपस्थित जन समूह को अवगत कराया। इसके पश्चात सभी अतिथियों का स्वागत सत्कार किया गया। तत्पश्चात लेखक गिरीश चावला की पुस्तक ‘इशिका हमारा स्वाभिमान' लघुकथा संग्रह का लोकार्पण, समारोह के अतिथियों के करकमलों से संपन्न हुआ।
मुख्य अतिथि व्यंग्यश्री सुभाष चन्दर ने अपने उदबोधन में कहा कि 'लघुकथा बुनने की चीज़ है, साथ ही बारीकी से ईमानदारी से अपनी बात कहने की आवश्यकता होती है इसमें। लेखक अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति गंभीर है और उनमें एक बेचैनी रही है, ऐसा क्यों हो रहा है, क्या नहीं होना चाहिए और इन्हीं बेचैनी की ज़ुबान है ये लघुकथाएँ।' विशिष्ट अतिथि योगिता वासवानी ने कहा 'इशिका संग्रह की हर एक लघुकथा समाज के लिए संदेश है और अर्थबोध की व्यापकता इसमे समाहित है, साथ ही सरल भाषा शैली है जो हर वर्ग के लिए सुगम है।' विशिष्ट अतिथि कोमल वर्मा ने अपने सम्बोधन में लघुकथा की विशिष्टताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि 'लेखक की लघुकथा को उस पर खरा पाया, सभी कथाओं में कसावट पाई।' फिर पुस्तक की अपनी पसंदीदा लघुकथा काa पाठ किया।' 

विशिष्ट अतिथि अर्श परमिंदर शाह ने गिरीश को शुभकामनायें दीं और बताया कि लेखक समाज के प्रति बहुत ही संवेदनशील है और उसी संवेदनशीलता के दर्शन उनकी लेखनी में होते हैं। विशिष्ट अतिथि धर्मेंद्र मुकुल  ने अपने वक्तव्य में बताया कि साहित्य क्या है, उसकी महत्ता क्या है! लेखक की लघुकथाएँ आसपास के परिवेश को दर्शाती हैं और हमारे अंदर भावनाओं के छुपे हुए स्रोतों को भी अंगड़ाई लेने को विवश करती हैं।

लेखक द्वारा किये गए उत्कृष्ट कार्य के महत्ता पर प्रकाश डालते हुए उनकी लेखनी की प्रशंसा की। विमोचन एवं उदबोधन के पश्चात दूसरा सत्र काव्य पाठ का आरंभ हुआ, जिनमें नीलम नील, प्रीति खरवार, भगीरथ सिन्हा, विजय विद्रोही, चंद्रकांता चंद्रेश, जयप्रकाश विलक्षण, इरफ़ान राही ने काव्य पाठ किया। सभी सम्मानित कवियों को मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा भाषा सारथी से सम्मानित किया।कार्यक्रम का संचालन भावना शर्मा ने किया और मातृभाषा उन्नयन संस्थान, दिल्ली इकाई की सचिव सुरभि सप्रू ने आभार व्यक्त किया।

पुस्तक : न हन्यते , लेखक : प्रो. संजय द्विवेदी
मूल्य : 250 रुपये प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस, 
4754/23, अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली

प्रो. संजय द्विवेदी की उदार लोकतांत्रिक चेतना का प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘न हन्यते’ है। ‘न हन्यते' पुस्तक में दिवंगत हुए परिचितों, महापुरुषों के प्रति आत्मीयता से ओत-प्रोत संस्मरण और स्मृति लेख हैं। ये स्मृति लेख नई पीढ़ी के लिए दृष्टांत हैं कि अपने समय के आदरणीयों को श्रद्धांजलि देते समय कैसी उदारता अपेक्षित है।
एक साथ इतने विविध विचारधाराओं के लोगों के संपर्क में आना और अपने हृदय में उन्हें स्थान देना संजय द्विवेदी की संवेदनशीलता और उनके उदारमना व्यक्तित्व को दर्शाती है। उनके जैसा संवेदनशील लेखक ही कह सकता है कि मृत्यु के बाद भी अपने पितरों को स्मृतियों में रखकर उनका पूजन, अर्चन करने वाली प्रकृति जीवित माता-पिता के अपमान को क्या सह पाएगी? द्विवेदी का यह प्रश्न क्या चीख नहीं बन जाता? संजय द्विवेदी कहते हैं कि टूटते परिवारों, समस्याओं और अशांति से घिरे समाज का चेहरा हमें यह बताता है कि हमने अपने पारिवारिक मूल्यों के साथ खिलवाड़ किया है। अपनी परंपराओं का उल्लंघन किया है। मूल्यों को बिसराया है। इसके कुफल हम सभी को उठाने पड़ रहे हैं। आज फिर एक ऐसा समय आ रहा है जब हमें अपनी जड़ों की ओर झांकने की जरूरत है। बिखरे परिवारों और मनुष्यता को एक करने की जरूरत है। 
भारतीय संस्कृति के उन उजले पन्नों को पढ़ने की जरूरत है जो हमें अपने बड़ों का आदर सिखाते हैं। जो पूरी प्रकृति से पूजा एवं सद्भावना का रिश्ता रखते हैं। जहां कलह, कलुष और अवसरवाद के बजाए प्रेम, सद्भावना और संस्कार हैं। पितृऋण-मातृऋण से मुक्ति इसी में है कि हम उन आदर्श परंपराओं का अनुगमन करें, उस रास्ते पर चलें जिन पर चलकर हमारे पुरखों ने इस देश को विश्वगुरु बनाया था। पूरी दुनिया हमें आशा के साथ देख रही है। हमारी परिवार नाम की संस्था, हमारे रिश्ते और उनकी सघनता-सब कुछ दुनिया के लिए आश्चर्यलोक ही हैं। हम उनसे न सीखें जो पश्चिमी भोगवाद में डूबे हैं, हमें पूरब के ज्ञान-अनुशासन के आधार पर एक नई दुनिया बनाने के लिए तैयार होना है। श्रवण कुमार, भगवान राम जैसी कथाएं हमें प्रेरित करती हैं, अपनों के लिए सब कुछ उत्सर्ग करने की प्रेरणा देती हैं। मां, मातृभूमि, पिता, पितृभूमि इसके प्रति हम अपना सर्वस्व अर्पित करने की मानसिकता बनाएं, यही इस समय का संदेश है।

इसी से प्रेरित होकर संजय द्विवेदी ने अपनी किताब 'न हन्यते' को अपने समय के नायकों को याद करने का ही निमित्त बनाया है। यह एक परंपरा का पाठ है जिसमें हम अपने दिवंगत वरिष्ठों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं। इसमें श्रद्धेय व्यक्तियों का स्मरण है। उनके प्रदेय का रेखांकन है। 'न हन्यते' एक तरह से वैचारिक पितृमोक्ष है। अपने वरिष्ठों के लिए शब्द सुमनों से श्रद्धा निवेदन करने का अवसर भी। संजय द्विवेदी ने इस पुस्तक में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लंबे समय तक प्रवक्ता रहे माधव गोविंद वैद्य, राजनीतिक चिन्तक और पर्यावरणविद् अनिल माधव दवे, पत्रकारिता गुरु और अध्यात्मिक चिन्तक प्रो. कमल दीक्षित, मध्य प्रदेश के सृजनशील पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया, पत्रकारिता और जनसंचार शिक्षिका दविंदर कौर उप्पल, 

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी, वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति-महानिदेशक राधेश्याम शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार श्याम लाल चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार और आचार्य नन्द किशोर त्रिखा, भारत-भारतीयता को समर्पित मुंबई के पत्रकार मुजफ्फर हुसैन, लम्बे समय तक तमिलनाडु की राजनीति के केंद्र में रहीं जयललिता, छत्तीसगढ़ के गांधी नाम से विख्यात संत पवन दीवान, छत्तीसगढ़ के प्रखर पत्रकार देवेन्द्र कर, जाने माने पत्रकार बसंत कुमार तिवारी, माओवादियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले 'बस्तर के टाइगर' महेंद्र कर्मा, छत्तीसगढ़ के प्रमुख राजनेता नन्द कुमार पटेल और उनके सुपुत्र दिनेश पटेल, छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता लखी राम अग्रवाल, छत्तीसगढ़ में बस्तर की आवाज समझे जाने वाले बलिराम कश्यप, वरिष्ठ पत्रकार राम शंकर अग्निहोत्री को आत्मीयता से याद किया है। और तो और उतनी ही आत्मीयता से संजय द्विवेदी नक्सल नेता कानू सान्याल को याद करते हैं।

इस किताब के श्रद्धांजलि लेख दीर्घजीवी और पठनीय हैं। इनमें निबंध की बुनावट है और रेखाचित्र सी चुस्ती। अपनी सहजता में विशिष्ट इन स्मृति लेखों को संजय द्विवेदी ने इतनी जीवंतता से रचा है कि पिछली आधी शताब्दी का राजनीतिक तथा पत्रकारिता का परिदृश्य भी सजीव हो उठता है।

० संवाददाता  द्वारा ० 

नयी दिल्ली -  प्रणेता के संस्थापक और महासचिव साहित्यकार एस जी एस सिसोदिया के सान्निध्य और मार्गदर्शन और वरिष्ठ साहित्यकार मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी की अध्यक्षता में स्थापना दिवस और सम्मान समारोह आयोजन संपन्न हुआ।इस भव्य आयोजन का संयोजन और संचालन प्रणेता अध्यक्ष शकुंतला मित्तल ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में साहित्यकार अंजू खरबंदा ने मंच की शान बढ़ाई और अति विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार राजेन्द्र निगम 'राज' ने उपस्थिति से मंच को ऊर्जा प्रदान की।

यह आयोजन दो सत्र में संपन्न हुआ। प्रथम सत्र का शुभारंभ वरिष्ठ कवयित्री वीणा अग्रवाल ने सुमधुर सरस्वती वंदना से किया।मंच के संस्थापक और महासचिव एस जी एस सिसोदिया ने प्रणेता के स्थापना दिवस पर सबको बधाई और शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि प्रणेता हर उस साहित्य सेवी और शब्द शिल्पी का आह्वान कर उसे मंच प्रदान करने का नाम है,जो अपने भावों को कलमबद्ध कर रहा है।प्रणेता की विधिवत दैनिक कार्य शैली से भी उन्होंने अवगत करवाया।उन्होंने कहा कि श्रीमती एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान वे अपने स्वर्गीय सास ससुर की स्मृति में आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं।तत्पश्चात उन्होंने वर्ष 2021/22 के पुरस्कारों की घोषणा की। तृतीय पुरस्कार की विजेता कर्नाटक से डाॅ अंबुजा एन मलखेडकर 'सुवान' ,द्वितीय स्थान पर साहित्यकार सुषमा भंडारी दिल्ली से और प्रथम पुरस्कार साहित्यकार पुष्पा शर्मा कुसुम ,अजमेर को मिला। इन सबको दी जाने वाली नगद राशि इन्हें पे टी एम करवाने की घोषणा भी की गई ।

 विजेताओं ने अपने अनुभव मंच पर रखते हुए सिसोदिया का आभार किया।दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया,जिसमें स्वीटी सिंघल 'सखी' शारदा मित्तल ,डाक्टर भावना शुक्ल ,डाॅ. कल्पना पाण्डेय , वंदना दयाल, वीणा अग्रवाल , इन्दु 'राज' निगम, प्रेम लता चौधरी प्रीति मिश्रा , लाडो कटारिया चन्नी वालिया , सविता स्याल ,सरिता गुप्ता, डाॅ वनिता शर्मा , अर्चना पाण्डेय , सुषमा भंडारी ,डाॅ अंबुजा,पुष्पा शर्मा कुसुम,अंजू खरबंदा,राजेन्द्र निगम 'राज' ने अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुति से इस शाम को यादगार बना दिया। आयोजन अध्यक्ष मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रणेता की कार्यप्रणाली और प्रत्येक प्रतिभागी की सकारात्मक समीक्षा कर सबका मनोबल बढ़ाया और सभी विजेताओं को बधाई दी।उनके सूक्ष्म विश्लेषण करती प्रतिक्रिया से मंच रससिक्त हो गया।

श्रोताओं में कृपाल कौर ,कविता शर्मा शशि गर्ग , राजेशवरी जोशी विकास जैन शिखा शहजाद सुनीता गहलोत , पूनम वर्मा महेश राजा , मोहम्मद अजाम और अन्य साहित्यकार अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया से मंच की शान बने रहे।अंत में प्रणेता अध्यक्ष शकुंतला मित्तल ने सभी का विनम्र आभार प्रेषित कर आयोजन का समापन किया ।मंच पर श्रोताओं सहित लगभग 60 साहित्यकार उपस्थित रहे और आयोजन सफलता के शीर्ष पर पहुँच गया।


० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने डॉ. अनिल कुमार वाडावतूर की पुस्तक 'ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ पॉपुलर साइंस लिटरेचर इन मलयालम' का विमोचन किया। डॉ. वाडावतूर आईआईएमसी, कोट्टायम कैंपस के क्षेत्रीय निदेशक हैं। इस अवसर पर प्रो. गोविंद सिंह, प्रो. शाश्वती गोस्वामी, प्रो. आनंद प्रधान, प्रो. प्रमोद कुमार, डॉ. रिंकू पेगू, डॉ. राकेश उपाध्याय एवं डॉ. रचना शर्मा भी उपस्थित थे।

आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. द्विवेदी ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को विज्ञान के विषय में मलयालम भाषा में प्रकाशित प्रसिद्ध पुस्तकों के इतिहास के बारे में जानकारी मिलेगी। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए इस तरह की पुस्तकों का प्रकाशन बेहद जरूरी है। प्रो. द्विवेदी ने डॉ. वाडावतूर को इस महत्वपूर्ण पुस्तक की सफलता के लिए शुभकामनाएं भी दीं। डॉ. अनिल कुमार वाडावतूर की यह 59वीं पुस्तक है। इससे पहले वे 'साइंस कम्युनिकेशन', 'साइंस जर्नलिज्म', 'चाइल्ड लिटरेचर' और 'मीडिया स्टडीज' जैसे विभिन्न विषयों पर 58 पुस्तकें लिख चुके हैं। विभिन्न समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन कर चुके डॉ. वाडावतूर कोचीन साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में जनसंपर्क एवं प्रकाशन विभाग के संस्थापक निदेशक रहे हैं।

मीडिया के माध्यम से विज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए डॉ. अनिल कुमार वाडावतूर को राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किया गया है। इसके अलावा 'साइंस रिपोर्टिंग' और 'साइंस राइटिंग' को लोकप्रिय बनाने के लिए उन्हें तीन राष्ट्रीय स्तरीय पुरस्कार और पांच राज्य स्तरीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली। इंटरनेशनल बुकार प्राइज़ मिलते ही वरिष्ठ कथाकार गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ की माँग पाठकों के बीच काफी बढ़ गई है। महज पाँच दिन में ही इस उपन्यास की 35 हजार (पैंतीस हजार) से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं पाठक लगातार इसकी माँग कर रहे हैं। ‘रेत-समाधि’ हिन्दी की पहली किताब है जिसने वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित यह पुरस्कार जीत कर इतिहास कायम किया है। अब पाठक जिस उत्साह से रेत-समाधि को खरीद रहे हैं वह भी हिन्दी साहित्यिक पुस्तकों की ब्रिक्री के क्षेत्र में इतिहास रचनेवाला साबित हो रहा है।
‘रेत-समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टुम ऑफ सैंड’ को इस वर्ष का इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ दिए जाने की घोषणा 26 मई को की गई थीं। यह खबर मिलते ही लोग अपने करीबी बुक-स्टोरों में इस उपन्यास की तलाश करने लगे। इसके लिए ऑनलाइन ऑर्डर देने वालों की तादाद भी तत्काल बढ़ गई। पाठकों के उत्साह का आलम यह है कि तब से 2 जून तक, महज पाँच दिन के अन्दर इस उपन्यास की 35 हजार से अधिक प्रतियाँ बिक गईं। राजकमल प्रकाशन के सीईओ आमोद महेश्वरी ने बताया कि ‘रेत-समाधि’ का पहला संस्करण 2018 में प्रकाशित हुआ था। उस समय से ही इसकी चर्चा शुरू हो गई थी। गीतांजलि श्री साहित्यिक दायरे में काफी प्रतिष्ठित हैं और उनकी कृतियों ने हमेशा लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन यह पहली बार है जब ‘रेत-समाधि’ को लेकर इतने व्यापक स्तर पर उत्सुकता दिख रही है।

 उन्होंने बताया, 26 मई की देर रात लंदन में ‘रेत-समाधि’ को इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ दिए जाने की घोषणा हुई। उस पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर थी। हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के लिए यह पहला मौका था जब उनकी कोई कृति बुकर पुरस्कार के अन्तिम चरण में पहुँची थी। ‘रेत-समाधि’ ने यह पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया। हिन्दी पाठकों ने भी ‘रेत-समाधि’ को पढ़ने के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया। 27 मई से 2 जून के बीच ‘रेत-समाधि’ की 35,200 प्रतियों की बिक्री हुई। हालाँकि बीते मार्च के आखिरी हफ़्ते में जब ‘रेत-समाधि’ के बुकर की लॉन्ग लिस्ट में शामिल होने की खबर आई थी, तभी से इसकी माँग बढ़ने लगी थी। जब यह उपन्यास बुकर की शॉर्ट लिस्ट में पहुँच गया तब उसकी माँग और बढ़ी। लेकिन पुरस्कार की घोषणा होते ही ‘रेत-समाधि’ की माँग में एकदम से उछाल आ गया।

आमोद महेश्वरी ने कहा, यह हिन्दी साहित्य और समाज में निहित सम्भावना की उत्साहजनक झलक है। इससे पाठकों की कमी को लेकर भी स्थिति स्पष्ट होती है। फिलहाल ‘रेत-समाधि’ का नौवाँ संस्करण प्रकाशित हो रहा है। अभी तक इसकी 46,000 (छियालीस हजार) प्रतियाँ बिक चुकी हैं, जिनमें पेपरबैक की 41000 (इकतालिस हजार) से अधिक प्रतियाँ शामिल हैं।और पाठकों की तरफ से रोज-रोज माँग आ रही है। गीतांजलि श्री की अन्य पुस्तकों के प्रति भी पाठक विशेष दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

० योगेश भट्ट ० 

कोलकाता । बंगीय हिंदी परिषद, कोलकाता द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद को संबोधित करते हुए भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि आलोचना रचना का प्रतिपक्ष नहीं होती है। किसी भी आलोचक का निष्पक्ष होना सबसे जरूरी है। 'स्वातंत्र्योत्तर हिंदी आलोचना : विविध परिदृश्य' विषय पर आयोजित इस परिसंवाद में डॉ. मृत्युंजय पांडेय, प्रो. कृपाशंकर चौबे, डॉ. रणजीत कुमार एवं डॉ. राजेन्द्रनाथ त्रिपाठी ने भी हिस्सा लिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हिंदी आलोचना में इस समय कैसी स्थिति है, यह विवाद का विषय हो सकता है। लेकिन हम अपनी अगली पीढ़ी से यह आशा रख सकते हैं, कि बहुत कुछ अच्छा निकल कर सामने आएगा। उन्होंने कहा कि आलोचना का अर्थ तलवार लेकर लेखक के पीछे पड़ना नहीं होता, बल्कि कलम के माध्यम से उसकी कमियों को सामने लाना होता है। इस अवसर पर डॉ. मृत्युंजय पांडेय ने कहा कि हमें वर्तमान में आलोचना के नए मानदंडों को स्थापित करना होगा। इसके लिए आलोचकों का विषय को गंभीरता से समझना समय की मांग है। पुराना जो कुछ भी है, उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है, लेकिन नए विमर्शों और विचारों का आना अभी बाकी है।

प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि हमें आलोचना के भारतीय मानदंड स्थापित करने होंगे। हम पश्चिम के अनुगामी नहीं हो सकते। भारत की समस्याएं अलग हैं और इसकी समस्याओं के समाधान के लिए हमें भारतीय मानदंडों को स्थापित करना होगा और उसी के आधार पर समाज एवं साहित्य की व्याख्या करनी होगी। बंगीय हिंदी परिषद के निदेशक डॉ. रणजीत कुमार ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आचार्य शुक्ल और आचार्य द्विवेदी ने हिंदी आलोचना की जिस रीढ़ को तैयार किया था, उसे आचार्य नंददुलारे वाजपेयी से लेकर डॉ. नागेंद्र, डॉ. रामविलास शर्मा,

 डॉ. नामवर सिंह, रमेश कुंतल मेघ, विजयानंद त्रिपाठी और मैनेजर पांडेय समेत कई महान आलोचकों ने एक सुदृढ ढांचा प्रदान किया। उसकी बाद की पीढ़ी ने उसे सजाया संवारा और आज की वर्तमान पीढ़ी उसे एक नई धार देने का प्रयास कर रही है। आयोजन में स्वागत भाषण बंगीय हिंदी परिषद के मंत्री डॉ. राजेन्द्रनाथ त्रिपाठी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन परिषद की उप-निदेशक सुश्री प्रियंका सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन साहित्य मंत्री श्री राजेश सिंह ने दिया।

० इरफ़ान राही ० 

नयी दिल्ली - प्रणेता साहित्य संकलन भाग 3 का भव्य विमोचन समारोह गूगल मीट के आभासी पटल पर आदरणीया कांता राॅय की अध्यक्षता में संपन्न हुआ।प्रणेता साहित्य संस्थान के संस्थापक और महासचिव एस जी एस सिसोदिया  के सान्निध्य और मार्गदर्शन में इस आयोजन का कुशल संयोजन और संचालन शकुंतला मित्तल ने किया। सह संचालिका का दायित्व प्रीति मिश्रा ने निभाया।मुख्य अतिथि के रूप में नौरिन शर्मा ने मंच को गरिमा प्रदान की। अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन थे-पुष्पा शर्मा कुसुम ,वीणा अग्रवाल,राजेन्द्र निगम 'राज' और इंदु 'राज' निगम।विशिष्ट अतिथि के रूप में डाॅ स्मिता मिश्रा, डॉ भावना शुक्ल,लाडो कटारिया,चन्नी वालिया,चंचल पाहुजा ने उपस्थिति दी।

 वीणा अग्रवाल की खूबसूरत ,मधुर सरस्वती वंदना से आयोजन का शुभारंभ हुआ। अध्यक्ष कांता राॅय  ,संस्थापक,अतिथि मंडल और समस्त गणमान्य साहित्यिक विभूतियों की उपस्थिति में करतल ध्वनि के साथ 'प्रणेता साहित्य संकलन भाग 3' का विमोचन हर्ष और उल्लास से संपन्न हुआ पुस्तक में कुल 37 प्रतिभागियों की रचनाएँ संकलित हैं। इसका कुशल संपादन एस जी एस सिसोदिया और शकुंतला मित्तल ने किया है।श्वेतांशु प्रकाशन से प्रकाशित यह पुस्तक फ्लिपकार्ट और एमेजान पर भी उपलब्ध है।सभी ने पुस्तक के मुख पृष्ठ,आवरण,स्पष्टता के लिए संपादक द्वय और प्रकाशक संजय को बधाई दी।

संकलन में वीणा अग्रवाल,डाॅ भावना शुक्ल,पुष्पा शर्मा कुसुम ,नोरिन शर्मा,एस पी वर्मा,निकहत परवीन,विकास जैन,प्रेम लता चौधरी,सुधा श्रीवास्तव पियूषी,सुषमा भंडारी,शिप्रा झा,कुसुम मंजरी,अतुल कुमार सिंह 'अक्स ', नीरू पुरी,अंजू कोहली,चंचल पाहुजा,वंदना सिंह,स्वीटी सिंघल 'सखी' ,प्रेम लता कोहोली, इंदु 'राज' निगम,राजेन्द्र निगम 'राज', शकुंतला मित्तल,रशीद गौरी,लाडो कटारिया,सुनिता गहलोत,चन्नी वालिया,पुष्पा गुप्ता,डाॅ स्मिता मिश्रा,डाॅ शारदा मिश्रा,अनिता गुप्ता,प्रीति मिश्रा,मोनिका कपूर, तरुणा पुंडीर 'तरुनिल' ,सरिता गुप्ता,कान्ता राॅय,डाॅ बलराम अग्रवाल और एस जी एस सिसोदिया की रचनाओं को स्थान मिला है।

विमोचन समारोह में अधिकांश प्रतिभागियों ने मंच पर उपस्थित हो अपनी शुभकामनाओं और प्रस्तुति से मंच की ऊर्जा को द्विगुणित कर दिया।अंत में अध्यक्षता कर रही प्रतिष्ठित वरिष्ठ साहित्यकार कान्ता राॅय ने सबकी रचनाओं पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए सबका मनोबल बढ़ाया और अपनी काव्य प्रस्तुति से सबको मुग्ध कर दिया।मंच के संस्थापक और महासचिव एस जी एस सिसोदिया ने प्रणेता की कार्यप्रणाली,कार्यकारिणी और संकलन के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए। अंत में प्रणेता की अध्यक्षा शकुंतला मित्तल ने सभी अतिथियों और उपस्थित साहित्यकारों,प्रकाशक संजय कुमार और दर्शक दीर्घा में उपस्थित प्रधान संपादक सतीश शर्मा, कल्पना पाण्डेय,वंदना रानी दयाल,अर्चना पाण्डेय,परिणीता सिन्हा,डाॅ कृष्णा आर्या का आभार व्यक्त किया।

० संवाददाता द्वारा ० 

भोपाल -लोकप्रिय कवि हेमंत की जयंती का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा "हेमंत जयंती" के अवसर पर "हेमंत स्मरण" का विशिष्ट आयोजन सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज (रायपुर/ छत्तीसगढ़) तथा मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार संजीव निगम (मुम्बई) एवं विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ संजीव कुमार (दिल्ली) थे।

कार्यक्रम दो सत्रों में संपन्न हुआ। प्रथम सत्र का संचालन मुजफ्फर सिद्दीकी द्वारा किया गयावंदना रानी दयाल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम प्रारंभ करते हुए वरिष्ठ लेखिका ,संस्था की संस्थापिका संतोष श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत करते हुए हेमंत से संबंधित स्मृतियां साझा कीं तथा दिव्यांग बच्चों के लिए हेमंत के सेवा भाव का जिक्र किया । प्रमिला वर्मा ने हेमंत की स्मृतियों को ताज़ा करते हुए हेमंत के कविता संग्रह मेरे रहते तथा हेमंत द्वारा बनाए गये रेखाचित्रों पर अपनी बात रखी।

रीता दास राम,अर्चना पाण्डेय,मधुलिका श्रीवास्तव,अंजना श्रीवास्तव,सरस दरबारी तथा डॉ क्षमा पाण्डेय ने हेमंत की कविताओं का भावपूर्ण पाठ किया। कार्यक्रम का दूसरा सत्र डॉ मनोरमा जी द्वारा हेमंत की चुनिंदा कविताओं पर समीक्षा से प्रारंभ हुआ। विशिष्ट अतिथि डाॅ संजीव कुमार जी ने अपने वक्तव्य में हेमंत की कुछ कविताओं आ पाठ करते हुए कहा कि आज मंदिर- मस्जिद के मुद्दों पर विवाद हो रहा है हेमंत ने अपने रहते धर्म को प्रेम में देखा। हेमंत का आकस्मिक निधन एक भरी पूरी संभावना से साहित्य जगत के लिए अपूरित क्षति है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संजीव निगम जी ने अपने वक्तव्य में हेमंत की दुर्घटना ग्रसित मृत्यु से संबंधित आश्चर्यजनक घटना साझा की जिसमें मृत्यु के ठीक समय पर हेमंत की प्रिय घड़ी का अलार्म बज उठना अनहोनी का संकेत था। हेमंत की छोटी आयु में बड़ी उपलब्धि की बात कहते हुए संतोष जी के दृढ़ संकल्प तथा साहस की प्रशंसा की। निहाल चंद शिवहरे,जया आर्या, गोकुल सोनी,शैफालिका श्रीवास्तव तथा सविता सयाल ने हेमंत के प्रति भावपूर्ण उद्गार व्यक्त किए। 

गिरीश पंकज जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हेमंत की कविताओं पर बात करते हुए कहा कि हेमन्त की रचनात्मकता में परिपक्वता आश्चर्यचकित करती है। अल्पायु सुकांत भट्टाचार्य और पाश को याद करते हुए हेमंत के असमय जाने पर खेद प्रकट किया और कहा इन कवियों के साथ हेमंत की कविताएं हमेशा याद रखी जाएंगी। हेमंत का अंत भले हो गया लेकिन उनकी रचनाओं का वसंत सदैव बना रहेगा। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र का संचालन रूपेंद्र राज तिवारी ने तथा आभार व्यक्त किया जया केतकी ने क। भारत के विभिन्न शहरों एवं देश विदेश से 70 लोगों की उपस्थिति रही।

० संत कुमार गोस्वामी ० 

बिहार ,मशरक ० अमृत पुत्र हीरालाल के 90 जन्म दिन के अवसर पर सम्मान समारोह पुस्तक विमोचन तथा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया । इस  अवसर पर सीओ थाना अध्यक्ष राजेश कुमार, पुलिस इंस्पेक्टर आदि को सम्मानित किया गया  . इस अवसर पर पटना उत्तर प्रदेश बलिया से बुद्धिजीवी, कवि तथा स्थानीय लोग काफी संख्या में मौजूद रहे ।अपने द्वारा रचित किताब सप्रेम भेंट की   । हीरा लाल का 90 जन्म दिवस केक काटकर मनाया गया ।पूर्व विधायक तारकेश्वर सिंह,हाई कोर्ट के अधिवक्ता ऋतुराज सिंह,
बलिया  (उत्तर प्रदेश) पॉलिटेक्निक के पूर्व प्राचार्य हीरालाल अमृत पुत्र के जन्मोत्सव के अवसर पर मशरक. अमृतायन भवन चरिहारा के सभागार मे उपस्थित कवि रविंद्र नाथ सिंह रवि , हास्य कलाकार सत्येंद्र दूरदर्शी, शास्त्रीय गायक सह अंचलाधिकारी रवि शंकर पांडेय, शास्त्रीय गायक सह शिक्षक शानू एवं शत्रुघ्न सिंह ब्यास अपनी सुंदर प्रस्तुति को पेश किया।*बीजेपी नेता रजनीश उर्फ़ झुना पाण्डे फूल तथा अंग वस्त्र देकर जन्मदिन की बधाई दी

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली। चर्चित लेखक और इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय ने कहा है कि विनायक दामोदर सावरकर में दक्षिणपंथी अपना नायक ढूंढते हैं। लेकिन सावरकर अंग्रेजों के सामने बहुत जल्दी टूट गये थे और अंग्रेज समझ गए थे कि वे उनके काम आ सकते हैं। उन्होंने ये बातें अपनी किताब ' सावरकर : काला पानी और उसके बाद' पर परिचर्चा के दौरान कहीं। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब पर परिचर्चा उसके और कुंजुम बुक शॉप के सयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गयी थी।जिसमें अशोक कुमार पांडेय से सुपरिचित कवि-लेखक गिरिराज किराडू ने बातें कीं।

परिचर्चा के दौरान अशोक कुमार पांडेय ने कहा, सावरकर भारतीय इतिहास और राजनीति के सबसे चर्चित और विवादित व्यक्ति हैं। उनमें बहुत विरोधाभास हैं और उनके बारे में बहुत से भ्रम हैं। एक तरफ कई लोग उन्हें हीरो मानते हैं तो दुसरे तरफ कई लोग उन्हें विलन का दर्जा देते हैं। उनकी वास्तविकता से लोगों को परिचित होना चाहिए, यही सोचकर मैंने 'सावरकर : काला पानी और उसके बाद' लिखी जिसमें सावरकर को लेकर फैले और फैलाए गए भ्रमों का प्रामाणिक तथ्यों की कसौटी पर जाँच की है। उन्होंने कहा, दक्षिणपंथी लोग जिस एक व्यक्ति के सामने आकर अटक जाते हैं वे हैं सावरकर। इन्हीं के इर्द-गिर्द दक्षिणपंथी अपनी राजनीति खलेते हैं और इन्हीं में वे अपना हीरो ढूढ़ते हैं।सावरकर हिन्दुत्ववादी आइडियोलॉजी के इकलौते सिद्धांतकार थे।

 अशोक कुमार पांडेय ने आगे कहा कि इसमें शक नहीं कि सावरकर होनहार थे। वे संगठन बनाने में माहिर थे, उस समय 1857 के समर्थन में लन्दन में कार्यक्रम करना बहुत बड़ी बात थी जो सावरकर ने किया। सावरकर के अंग्रेजों से माफी मांगने को लेकर अकसर उठने वाली बहस पर अशोक कुमार पांडेय ने कहा, मैं समझता हूँ कि सावरकर का माफी माँगना कोई इतनी बड़ी बात नही थी। अंडमान जेल से रिहा होने का यह एकलौता तरीका था। लेकिन तथ्यों से यह भी स्पष्ट है कि सावरकर अंग्रेजों के सामने बहुत जल्दी टूट गये थे।अंग्रेजों को समझ में आ गया कि सावरकर इस हद तक टूट चुके हैं कि वे उनके काम आ सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा, सावरकर बन्दूक के सहारे आजादी चाहते थे मगर रिपोर्ट के अनुसार उन्हें खुद बन्दूक चलानी नही आती थी।परिचर्चा के बीच गिरिराज किराडू ने कहा कि अशोक कुमार पांडेय कीपुस्तक सावरकर की वैचारिक और व्यावहारिक यात्रा पर केंद्रित है। यह सावरकर की जीवनी नहीं है। लेखक ने पूरे तथ्यों के साथ इस किताब को लिखा है जो सावरकर के जेल जाने से पहले और जेल से निकलने के बाद उनके व्यक्तित्व और विचारों में आई तब्दीली की पड़ताल करती है। गौरतलब है कि अशोक कुमार पांडेय आधुनिक भारतीय इतिहास के बहसतलब मुद्दों पर लिखने के लिए खासे चर्चित हैं।कश्मीर और कश्मीरी पंडित और उसने गांधी को क्यों मारा उनकी अन्य चर्चित किताबें हैं. कवि और कहानीकार के बतौर भी अलहदा पहचान रखने वाले अशोक कुमार पांडेय की इन किताबों के अनुवाद अनेक भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली - केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के संयोजकत्व में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय , दिल्ली तथा राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय के द्वारा डा अंबेडकर अन्तर्राष्ट्रीय सेंटर,, दिल्ली में मनाये गये  समापन के दिन केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,दिल्ली के कुलपति प्रो श्री निवास वरखेडी़ ने राष्ट्रपति पुरस्कार-महर्षि बादरायण व्यास सम्मान (2005, संस्कृत) से सम्मानित डा अजय कुमार मिश्रा की पुस्तक ' आजकल का संस्कृत साहित्य ' का विमोचन किया और उन्हें बधाई दी ।

इस किताब में समकालीन संस्कृत उपन्यासों, नाटकों तथा कविताओं के साथ साथ संस्कृत तथा स्त्री विमर्श की धारदार समीक्षा की गयी है। गौ़रतलब है कि भारत के अमृत महोत्सव के अवसर पाठक को इस किताब के ज़रिए स्वतंत्रता संग्राम में संस्कृत पत्र पत्रिकाओं के योगदानों की सामग्री भी पढ़ने को मिलेंगी ।साथ ही साथ स्वतंत्रता संग्राम के ' स्वर्ण जयंती ' मनाने के दौरान जो भी महत्वपूर्ण संस्कृत लेखन प्रकाश में आये हैं उनका भी आकलन इसमें किया गया है । लेखक ने संस्कृत भाषा तथा साहित्य को लेकर जो पाश्चात्य विद्वानों द्वारा एक साज़िश के तहत क्लोनाइज्ड ( औपनिवेशिक) मिथक का ताना बाना बुना गया है । उसका भी इसमें बडा़ ही माकू़ल जवाब दिया गया है ।

इस प्रकार आज की संस्कृत भाषा तथा साहित्य की जीवंतता को इसमें स्पष्ट किया गया है।इससे शैल्डन पौलक जैसे अनेक विदेशी विद्वानों की उस बात का खंडन होता जिसमें उनलोगों ने उत्तर औपनिवेशिक साहित्यिक आक्रमण के जरिये यह मिथक फैलाने का प्रयास किया गया है कि ' संस्कृत एक मृत भाषा ' है । अमेरिका से छपने वाली नामचीन पत्र पत्रिका -' ग्रांटा 'तथा 'न्यूयॉर्क ' ने भारत के' स्वर्ण जयंती ' के अवसर पर छपे अपने विशेषांक में यह मिथक फैलाने का प्रयास किया है कि भारत की आज़ादी के बाद हिन्दुस्तानी साहित्य में खा़स कर हिंदी में राष्ट्रवादी रचनाधर्मिता का सर्वथा अभाव है उसका भी सर्वथा खंडन होता है।


० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली,  लंबे समय से चली आ रही गुर्दे की कष्टकारी बीमारी को ठीक करने में सहायक विधियां बताने वाली आशाजनक किताब 'एंड ऑफ ट्रांसप्लांट' (प्रत्यारोपण का अंत) का विमोचन यहां डॉ. ओम प्रकाश गुप्ता, रजिस्ट्रार, श्रीधर विश्वविद्यालय, राजस्थान, प्रसिद्ध आयुर्वेद और मेडिटेशन गुरु - आचार्य मनीष, जो अस्पताल एवं एकीकृत चिकित्सा विज्ञान संस्थान (हिम्स) के अध्यक्ष हैं, और डॉ. विस्वरूप रॉय चौधरी, जो गुरुत्वाकर्षण प्रतिरोध और आहार (ग्रैड) प्रणाली के आविष्कारक और पुस्तक के लेखक हैं, के द्वारा किया गया।
इस किताब में डायलिसिस रोगियों पर 'ग्रैड की प्रभावशीलता' प्रणाली पर श्रीधर विश्वविद्यालय राजस्थान और दयानंद आयुर्वेदिक कॉलेज जालंधर द्वारा किए गए अध्ययन की जानकारी दी गई है। पुस्तक के मुख्य भाग 'डायलिसिस रोगियों पर ग्रैड प्रणाली की प्रभावशीलता' में निष्कर्ष दिया गया है कि जिन रोगियों ने ग्रैड प्रणाली को पूरी तरह से अपनाया उनमें से 75 प्रतिशत डायलिसिस के झंझट से मुक्त हो गए, जबकि 89 प्रतिशत को दवाओं से पूर्ण या आंशिक तौर पर छुटकारा मिल गया।

"यह पुस्तक तीन खंडों में विभाजित है। प्रथम खंड में 'ग्रैड सिस्टम पर संभावित समूह अध्ययन' है, जिसमें एक आम आदमी, चिकित्सक और रोगी के देखभाल करने वालों की जिज्ञासाओं के उत्तर हैं, जैसे सीकेडी को उलटने के लिए ग्रैड सिस्टम कैसे लागू करें? ग्रैड प्रणाली का पालन करने के कितने दिनों बाद सीकेडी रोगी को डायलिसिस और दवाओं पर निर्भरता से मुक्ति मिल सकती है? दूसरे खंड में ग्रैड सिस्टम का पालन करने वाले सीकेडी मरीजों द्वारा अक्सर पूछे जाने वाले सवाल जवाब और जरूरी हिदायतें हैं। तीसरे खंड में ग्रैड सिस्टम से पहले और बाद में डायलिसिस पर निर्भर मरीजों का रीनल डीटीपीए स्कैन है," डॉ. चौधरी ने कहा।

डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी ने ग्रैड प्रणाली के बारे में कहा कि इसमें किडनी मरीज को दो घंटे तक गर्म पानी की इमर्सन थेरेपी (एचडब्ल्यूआई) दी जाती है और उसका सिर एक खास निर्धारित कोण पर रखने के अलावा उसे अनुशासन पूर्ण आहार देना शामिल है। कार्यक्रम का आयोजन हिम्स अस्पताल की ओर से किया गया था। "हिम्स अस्पताल ग्रैड प्रणाली की मदद से गुर्दे की पुरानी बीमारी को ठीक करने के लिए जाना जाता है। ऐसे तीन अस्पताल डेरा बस्सी, जयपुर और जोधपुर में स्थित हैं। सभी हिम्स अस्पतालों में प्राकृतिक उपचार पद्धति का पालन होता है और इसका पूरा ध्यान रोगियों की आहार दिनचर्या में सुधार लाने और आयुर्वेद की प्रभावी विषहरण प्रक्रियाओं का उपयोग करने पर रहता है।

हिम्स के अध्यक्ष आचार्य मनीष ने कहा, "हमारा विचार दवाओं पर निर्भरता को कम करना और एक ऐसे बिंदु तक पहुंचना है जहां रोगी दवा मुक्त जीवन जी सकें। हम इस बीमारी का इलाज इस तरह से करते हैं कि यह जड़ से दूर हो जाए।" नई लॉन्च हुई ई-बुक 'एंड ऑफ ट्रांसप्लांट' को इस लिंक के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है: www.biswaroop.com/endoftransplant। इस पुस्तक को प्रत्यारोपण के युग के अंत के रूप में देखा जा सकता है।

० संवाददाता द्वारा ० 

भोपाल -अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की राष्ट्रीय इकाई द्वारा गूगल मीट पर तीन कहानी - तीन समीक्षक का आयोजन सम्पन्न हुआ।इस आयोजन की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कहानीकार उर्मिला शीरीष के द्वारा की गई।
आयोजन का प्रारंभ अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की संस्थापक अध्यक्ष प्रसिद्ध साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव के बीज वक्तव्य से हुआ जिसमें उन्होंने मंचासीन विद्वद्जनों का स्वागत करते हुए कहा कि जब तक रचना ,आलोचना, मूल्यांकन और संवाद से न गुजरे तब तक किसी कहानी को समझने बूझने की प्रक्रिया से जुड़े सवालों को उत्तरित करने का सार्थक प्रयास नहीं किया जा सकता ।इसी सार्थकता की तलाश में यह कहानी संवाद अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आयोजन में विजयकांत वर्मा जी की कहानी -"भरा-पूरा घर",अनीता रश्मि जी की कहानी- "पड़ोसी,सिक्कड़ और एक ख़त" तथा राज बोहरे जी की कहानी - "बिजनेस वेब डाॅट कॉम" तथा का पाठ क्रमशः कहानीकारों द्वारा किया गया। सभी कहानियां समसामयिक परिवेश से संबंधित कथावस्तु की थीं।
विजयकांत वर्मा की कहानी की समीक्षा करते हुए विनीता राहुरीकर ने कहानी की कथा वस्तु की प्रशंसा की तथा कहानी में घर के संस्कारों के स्वत: हस्तांतरण की बात स्वीकारते हुए कहानी के उद्देश्य को सफल बनाया। कहानी की शैली पर बात करते हुए उन्होंने अधिक विवरण को संवादों के माध्यम से स्थापित करने का सुझाव दिया।

वहीं अनीता रश्मि जी की कहानी पर नीता श्रीवास्तव जी ने समीक्षा करते हुए कहा कि, नाम से ही एक जिज्ञासा पनपने लगती है मन में ..आखिर है क्या इसमें ! बेहद महत्वपूर्ण और संवेदन शील विषय पर कहानी जिसमें न केवल समाज की एक गंभीर समस्या या बीमारी को हाइलाइट किया बल्कि अपने लेखकीय दायित्व को भी निभाया है | कहानी की भाषा उत्कृष्ट है।सहज सुंदर और आकर्षक है। कहानी पर कुछ प्रश्न अंकित करते हुए नीता श्रीवास्तव जी ने कहानी कार को पाठकों के मन में उभरी आशंकाओं का उल्लेख किया ,जिस पर अनीता रश्मि जी का ध्यानाकृष्ट हुआ।

राज बोहरे जी की कहानी पर आयोजन की अध्यक्ष उर्मिला शीरीष ने कहा कि एक सशक्त और माने हुए कथाकार , उपन्यासकार की कहानी बहुत बढ़िया शैली में पाठ किया ,कहानी का पाठ भी एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। कहानी की विषयवस्तु पर उर्मिला जी ने कहा कि बाज़ारवाद ने आम व्यक्ति खासतौर से मध्यम वर्गीय समाज के घरों में प्रवेश कर गया है। चैनल सिस्टम में पुरुष की अपेक्षा महिलाओं को अधिक टारगेट किया जा रहा है। आम आदमी के सपनों को बेचा जा रहा है। मध्यम वर्गीय समाज के जीवन में आए हुए बदलाव को बहुत व्यापक ढंग से यथार्थ रूप में सामने रखती है।

अपनी अध्यक्षीय उद्बोधन ने उर्मिला शीरीष जी ने समीक्षकों द्वारा आलोचनात्मक दृष्टि से समीक्षा करने पर प्रशंसा की।कहानीकार को ऐसी समीक्षा से आगे के सृजन के लिए सचेत करती है। उन्होंने कहा कि कहानी की शुरुआत अपने अनुभवों को दूसरों से बांटना चाहता है कहानी केवल आत्म अभिव्यक्ति का साधन नहीं बल्कि मानवीय संबोधन व संवाद है कहानी गोष्ठी के सार्थक आयोजन पर बात करते हुए उर्मिला शीरीष ने कहा कि सामाजिक परिप्रेक्ष्य में बदलते समीकरण को रेखांकित करना लेखक का कार्य है जो आज की कहानियों में परिलक्षित होता है। संतोष श्रीवास्तव जी की प्रशंसा करते हुए उर्मिला शीरीष जी ने इसे कहानी विधा के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन कहा।

आयोजन का आभार व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध लेखिका व विश्व मैत्री मंच की राष्ट्रीय इकाई की टीम मेंबर सरस दरबारी ने संक्षिप्त में कहानियों तथा उन पर आई समीक्षाओं पर सारगर्भित बात रखते हुए आयोजन में उपस्थित सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम का संचालन रूपेंद्र राज तिवारी ने किया

डॉ• मुक्ता

मज़दूर

देश के कर्णधार

बड़ी-बड़ी इमारतें बनाते

दिन भर लहू रूपी पसीना टपकाते

विस्फारित नेत्रों से ताकते रह जाते

कौन जानता, किसने उसे बनाया

परंतु घर के मालिक उस इमारत के

सौंदर्य पर वाह-वाही पाते

कौन जानता

कितने लोगों के टूटे सपने

जीवन की खुशियां

समिधा बन इमारत रूपी यज्ञ में जली

भूख से बिलबिलाते बच्चों की आहें

व क्रंदन हृदय को नासूर बन सालता

परंतु गुज़रे दिन कहां लौट पाते

विधाता ने लिखे हैं उनके भाग्य में आंसू

अंतहीन कष्ट, नाउम्मीदी, आंसुओं का सैलाब

भूख रूपी शत्रु से हर रोज़ जूझना

परंतु पापी पेट कब मानता

तीनों समय हाथ पसारे रहता

ज़िंदगी भर वे ज़िल्लत सहते

और अंत में नियति के सम्मुख

पराजय स्वीकार

भूख से रोते-बिलखते बच्चों को

बीच राह छोड़ देख आगे बढ़ जाते

इस आशा पर कोई अपना लेगा उन्हें

शायद हो जाएगा उनके दु:खों का अंत

परंतु विधाता भी कानून की भांति

सबको एक दृष्टि से देखता

सो! धनी और धनी

गरीब और गरीब होता जाता

सदियों से यह दस्तूर चला आता

प्रवासी मज़दू

चंद दिन बाद

इंसान विस्थापन का दर्द

महसूसने को विवश

कभी भूख-प्यास तो कभी लू के थपेड़े

व कभी हादसों के रूप में मंडराती मौत

पुलिस की लाठी भी नहीं तोड़ पाती

उनके मन का अटूट विश्वास

भविष्य की चिंता, आर्थिक तंगी

परिवार का भरण-पोषण

महामारी का डर और अशिक्षा

पलायन के मुख्य कारण

हम जा रहे हैं

दो-चार पोटलियों की सौग़ात लिए

जो हम बरसों पहले लाए थे साथ

देह पर खरोंचों के निशान

व लिए आंखों में आंसुओं का सैलाब

नहीं जानते...हम अभागे कहां पहुंचेंगे

न हम स्कूल पहुंच पाए

न ही प्राप्त कर सके किताबी ज्ञान

न बन सके आत्मनिर्भर

न न्याय पाने के लिए लगा सके ग़ुहार

न ही दर्ज करा पाए

सरकारी नुमाइंदों तक अपनी शिकायत

अपमान का घूंट पीते

अन्याय सहते-सहते

गुज़र गयी हमारी सारी उम्र

कोई नहीं समझता यहां हमारा दुख-दर्द

हमें तो झेलना है

विस्थापन का असहनीय दर्द

जानते हैं हम–यहा…

[डाउन और मज़दूर

मज़दूर लौट रहे हैं अपने घरों से

जो लॉक डाउन के दौरान गए थे

बहुत इच्छा से अपने गांवों में

अब वहां रहेंगे, कभी लौटकर न आयेंगे

उसकी मिट्टी में रह कर्ज़ चुकाएंगे

परंतु चंद दिन बाद उन्हें आभास हुआ

यहां भी उनके लिए नहीं रोज़गार

न ही परिवारजनों को उनकी दरक़ार

वे अपने ही घर में

अजनबीपन का दंश झेलते

चल पड़े पुनः नौकरी की तलाश में

दूर...बहुत दूर,अकेले इसी उम्मीद से

परदेस में मेहनत कर

शायद वे जुटा पाएंगे दो जून की रोटी

और भेज कर पैसों की सौग़ात

कर पायेंगे अपना दायित्व-वह

किसान और मज़दूर

किसान और मज़दूर

दोनों का भाग्य एक समान

दोनों रात-दिन मेहनत कर पसीना बहाते

बदले में दो जून की रोटी भी नहीं जुटा पाते

किसान प्राकृतिक आपदाओं के रूप में

कभी बाढ़, कभी सूखे का सामना करते

परंतु अपनी मेहनत का फल कहां पाते

फसल होने के इंतज़ार में वे स्वप्न सजाते

और बच्चों को आश्वस्त करते

वे इस वर्ष उन्हें अवश्य

स्कूल में दाखिला दिलायेंगे

किताबें व युनिफ़ॉर्म दिलायेंगे

पत्नी से नई साड़ी लाने का वादा कर

मां को शहर में इलाज कराने की आस बंधाते

पिता नया चश्मा पाने की प्रतीक्षा में दिन गिनते

परंतु अचानक आकाश में

बादलों की गर्जना होती, ओले बरसते

एक सैलाब-सा सब कुछ बहा कर ले जाता

और कुछ भी शेष नहीं रहता

वे मासूम बच्चों के साथ

खुले आकाश के नीचे या किसी प्लेटफार्म पर

अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिन बिताते

और सोचते, न जाने क्या लिखा है

विधाता ने उनके भाग्य में

क्या कभी होगा उनके दु:खों का अंत

मज़दूर रात दिन पसीना बहाता

अक्सर महीने में बीस दिन मज़दूरी पाता

कभी तारकोल की सड़क बनाने में

तो कभी खेतों में बैल की जगह जोता जाता

कभी लोगों के लिए नए-नए घर बनाता

थका-हारा हाथ में शराब की बोतल थामे

घर जाता, खूब उत्पात मचाता

नशे में धुत्त कई-कई दिन तक

निढाल पड़ा रहता

घर में खाली डिब्बे मुंह चिढ़ाते

बच्चे भूख से बिलबिलाते

पत्नी अपने भाग्य को कोसती

खून के आंसू बहाती

आखिर विधाता क्यों जन्म दिया है उन्हें

'तुम तो ब्रह्मा के रूप में जन्मदाता

विष्णु के रूप में पालनहार हो

फिर क्यों नहीं अपने नाम को सार्थक करते

उनकी रक्षा का दायित्व-वहन क्यों नहीं करते'

इस दशा में वह बच्चों को घर में बंद कर

पति को नशे की हालत में छोड़

चल पड़ती है दिहाड़ी की तलाश में

ताकि उसे कहीं काम मिल जाए

और वह अपने भूखे बच्चों का पेट भर सके

परंतु वहां भी वहशी नज़रें उसका पीछा करतीं

और अस्मत के बदले रोटी उसे प्राप्त होती

संसार में एक हाथ दे,दूसरे हाथ ले

यही लोक-व्यवहार चलता

जब औरत को काम नहीं मिलता

वह अपनी अस्मत बेचने को विवश हो जाती

क्योंकि भूख से बिलबिलाते

बच्चों का हृदय-विदारक करुण चीत्कार

उसके हृदय को उद्वेलित करता

अपाहिज ससुर और बीमार सास का दु:ख

उसे अपनी अस्मत का सौदा

करने को विवश कर देता

और बदले में चंद सिक्के

उसकी झोली में फेंक

एहसान किया जाता

वह अपने ज़ख्मों को सहलाती

उधेड़बुन में खोयी घर लौट आती

बच्चे मां के हाथ में भोजन देख खुश होते

'मां जल्दी से खाना दे दो

भूख से हमारे प्राण निकले जा रहे'

उधर सास-ससुर के चेहरे पर चमक आ जाती

पति भी उसकी ओर मुख़ातिब हो कहता

चलो! भगवान का शुक्र है!

वह सबकी सुनता है

उसके नेत्रों से अश्रुओं का सैलाब

आक्रोश के रूप में फूट निकलता

वह चाहते हुए भी हक़ीक़त बयान नहीं पाती

कि वे पैसे उसे अपनी अस्मत का सौदा

करने की एवज़ में प्राप्त हुए हैं

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली। आर्मेनियाई जनसंहार बीसवीं सदी का पहला जनसंहार था जिसमें लाखों आर्मेनियाइयों को जान गंवानी पड़ी थी। दुखद यह है कि 107 साल पहले की इस भयावह घटना से भारत समेत पूरी दुनिया में बहुत कम लोग परिचित हैं। सुमन केशरी और माने मकर्तच्यान ने इस ऐतिहासिक अत्याचार से संबंधित साहित्य को संकलित संपादित कर 'आर्मेनियाई जनसंहार : ऑटोमन साम्राज्य का कलंक' किताब की शक्ल देकर और राजकमल प्रकाशन ने इस किताब को प्रकाशित कर सराहनीय पहल की है। इससे लोग आर्मेनियाई जनसंहार के बारे में जान सकेंगे। इससे आर्मेनिया के लोगों की इंसाफ की उस मांग को भी बल मिलेगा जिसका वे अब भी इंतज़ार कर रहे हैं। ये बातें सामने आई इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आर्मेनियाई जनसंहार की 107वीं बरसी पर आयोजित 'आर्मेनियाई जनसंहार : ऑटोमन साम्राज्य का कलंक' किताब के लोकार्पण में।
सरकारी आकड़ों के अनुसार 1915 से 1923 के बीच हुए आर्मेनियाई जनसंहार में करीब 15 लाख लोग मरे गए थे। जबकि अन्य आकड़ों के मुताबिक 60 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।  आर्मेनिया दूतावास और राजकमल प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित लोकार्पण में आये लोगों का स्वागत करते हुए आर्मेनिया गणराज्य के राजदूत युरी बाबाखान्यान कहा, यदि 20वीं शताब्दी के पहले हुए तमाम नरसंहारों की कड़ी निंदा की गयी होती तो बाद के अर्मेनियाई जैसे भयावह जनसंहार नहीं हुए होते जिनमें लाखों निर्दोष लोगों ने अपनी जान गवा दी। एक सदी से अधिक समय बीत चूका है अर्मेनियाई लोग अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के बतौरवरिष्ठ कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा, आर्मेनियाई जनसंहार पुरे मानव समाज के लिए शर्म की घटना है । दुखद यह है कि आज के समय में भी देश-विदेश में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. इन घटनाओं के विरोध में आवाज उठाना बहुत जरूरी हो गया है।

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि के रूप में जे एन यु के रूसी और मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र की अध्यक्ष अर्चना उपाध्याय ने कहा, आज हम यहां 15 लाख अर्मेनियाई लोगों की स्मृति को याद करने के लिए एकजुट हुए हैं। सवाल है कि क्यों मानव समाज में इस तरह के जनसंहार बार- बार होते रहे हैं। मेरे मानना है कि लोगों का सेलेक्टिव होना और अपराधों के प्रति चुप्पी साध लेना सबसे बड़ा कारण है। अगर भविष्य में ऐसे नरसंहारों से बचना है तो आवाज बुलंद करनी होगी। आर्मेनियाई जनसंहार: ओटोमन साम्राज्य का कलंक' पुस्तक की सम्पादक सुमन केशरी ने भारत के आर्मेनिया से पुराने संबंधों का हवाला देते हुए कहा, भारत के आर्मेनिया से नजदीकी संबंधों के बावजूद भारत के कुछ मुठ्ठी भर ही लोग आर्मेनियाई जनसंहार के बारे में जानते हैं जो मेरे लिए बड़ी दुखद और चौकाने वाली बात थी। इसलिए मैं इस किताब पर जी -जान से जुट गई । यह किताब इस मामले में भी खास है क्योंकि यह साहित्य के नजरिये से इस जनसंहार को देखती है।
 
पुस्तक की सह सम्पादक माने मकर्तच्यान ने कहा, ‘यह पुस्तक आर्मेनियाई जनसंहार पर 5 वर्षों के अथक प्रयास का फल है। इसका उदेश्य वैश्विक स्तर पर जनसंहारों और अपराधों के खिलाफ चेतना जागृत करना है। ओटोमन साम्राज्य के अधीन रहे हर आर्मेनियाई की ऐसी दुःखदाई स्मृतियाँ हैं जो दिल दहलाने वाली हैं, जिसका बोध आपको इस किताब को पढ़ते हुए होगा’। राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने इस पुस्तक के प्रकाशन को न्याय की माँग का समर्थन करार दिया। उन्होंने कहा, हम आभारी है आर्मेनियाई दूतावास के जिनके सहयोग से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। हमें ख़ुशी है की इस तरह के पुस्तक हमारे यहाँ से आई है।

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली । इतिहास का काम है सचाई से रूबरू कराना। लेकिन आज झूठ को इतिहास कहकर प्रचारित किया जा रहा है, तथ्यों को अफवाहों से दबाया जा रहा है। ऐसे में अशोक कुमार पांडेय की किताब ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ एक बेहद महत्वपूर्ण प्रयास है,जो झूठ और अफवाहों की धुंध को हटाकर वास्तविकता से हमारा परिचय कराती है । यह एक महत्वपूर्ण बौद्धिक पहल है जो इतिहास को नफरत का जरिया बनाने की साजिशों के खिलाफ उसे फिर से सचाई और न्याय के बोध से जोड़ती है। ये बातें कही त्रिवेणी सभागार में ‘इतिहास:पाठ-कुपाठ और हिंदी समाज’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में विद्वान वक्ताओं ने।
राजकमल प्रकाशन द्वारा यह परिचर्चा चर्चित इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय की पुस्तक ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ के विशेष सन्दर्भ में आयोजित की गयी थी। इसमें इतिहासकार हरबंस मुखिया, राजनीतिज्ञ मनोज कुमार झा, आलोचक अपूर्वानंद, स्तंभकार शीबा असलम फहमी और कवि-लेखक गिरिराज किराडू ने अपने विचार रखे।मौके पर अशोक कुमार पांडेय और राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने भी श्रोताओं को संबोधित किया।

जाने माने इतिहासकार हरबंस मुखिया ने कहा,‘ ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ एक पठनीय किताब है । यह किताब पहली बारिश की मिट्टी खुशुबू की तरह है । जिस तरह से वर्तमान समय में इतिहास पर संकट खड़ा किया जा रहा है, राजनीतिक शक्तिओं द्वारा बनावटी इतिहास थोपा जा रहा है ऐसे समय में मेरे लिए ख़ुशी की बात है कि अशोक कुमार पांडेय जैसे नए इतिहासकार भी खड़े हो रहे हैं जो इतिहास की समग्रता को बचाने के लिए आवाज उठा रहे हैं’। स्तंभकार शीबा असलम फहमी ने कहा, ‘ आज के नफ़रत के दौर में जिस तरह से लोग नाउम्मीद हो रहे हैं ऐसे समय में ' कश्मीर और कश्मीरी पंडित'किताब एक उम्मीद जगाती है।’

लेखक,राजनीतिज्ञ मनोज कुमार झा ने कहा, ‘घावों पर तेज़ाब डालने का काम साहित्य या इतिहास का नही है। 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' घावों पर महरम लगाने का कार्य करती है । यह उपचार और सुलह की बात करती एक मुकमल किताब है।‘ आलोचक अपूर्वानंद ने कहा ‘ यह किताब समाजिक संवाद को आगे बढ़ाने का कार्य करती है। यह एक बैचेन कोशिश है हमारे समाज में उस संज्ञानात्मक चेतना को वापस लाने का जो इधर लगातार खत्म होती गयी है।साथ ही यह किताब कहती है कि तथ्यों और इतिहास का सामना कीजिये’।

लेखक अशोक कुमार पांडेय ने कहा ‘हम कश्मीर के बारे में बहुत जानने के बाद भी बहुत कुछ नही जानते हैं । कश्मीर का इतिहास हमारे करीब का का इतिहास है इसकी जड़ें पूरे देश में फैली हुई हैं। कश्मीर के बारे में पहले सिर्फ घटनाओं पर बात होती थी। उसमें तथ्य, विमर्श और विश्लेषण बहुत कम होता था। मेरी कोशिश थी कि कश्मीर के बारे में हिंदी पट्टी के पाठक समग्रता में जानें।’  इस मौके पर बोलते हुए राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, ‘लेखक अशोक कुमार पांडेय ने इतिहास के जवलंत मसलों पर प्रचारित धारणाओं और कथित तथ्यों को सचाई की कसौटी पर परख कर वास्तविकता को पेश किया है ,यह सबकी जरूरत है ‘।

गौरतलब है कि ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ में अशोक कुमार पांडेय ने कश्मीर के 1500 साल के इतिहास और कश्मीरी पंडितों के पलायन की प्रमाणिक दास्तान को प्रामाणिक रूप से पेश किया है। कश्मीर का इतिहास, समाज, राजनीति और उसकी समस्याओं को इस किताब में विस्तार से बताया गया है। इसका प्रकाशन राजकमल प्रकाशन ने किया है.

0 इरफान राही 0

नयी दिल्ली । हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रतिबद्धता से कार्यरत संस्थान मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा ख्यात ग़ज़लकार एवं हिन्दी सेवी मंगल नसीम को भाषा सारथी सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान संस्थान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भावना शर्मा द्वारा दिल्ली में दिया गया।ज्ञात हो कि मंगल नसीम  मशहूर शायर, प्रतिष्ठित अमृत प्रकाशन के प्रकाशक व कई संस्थानों में प्रमुख पदों पर रहते हुए भाषा की सेवा कर रहे हैं। आप सामाजिक मुद्दों और सरोकारों की लड़ाई भी लड़ते हैं। साथ में जाने माने कवि पी.के. आज़ाद और सुप्रसिद्ध गीतकार गुणवीर राणा इस अवसर पर उपस्थित रहे ।

भाषा सारथी सम्मान से सम्मानित होने पर मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन 'अविचल', उपाध्यक्ष डॉ. नीना जोशी, सचिव गणतंत्र ओजस्वी, कोषाध्यक्ष शिखा जैन सहित कार्यकारिणी सदस्य नितेश गुप्ता, सपन जैन काकड़ीवाला आदि ने नसीम का अभिनन्दन किया।

० रूपेंद्र राज तिवारी ० 

भोपाल -अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की राष्ट्रीय इकाई द्वारा तीन कहानियां - तीन समीक्षक कहानी श्रंखला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ सुषमा सिंह ने की तथा विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध पत्रकार व कहानीकार नीलम कुलश्रेष्ठ तथा साहित्यकार डॉ भावना शुक्ला थीं कहानीकार अरुण अर्णव खरे, डॉ विनीता राहुरीक तथा डॉ संध्या तिवारी की कहानियों क्रमशः सहयात्री, एक समानांतर दुनिया‌, तथा खिड़की का पाठ किया गया।

गोष्ठी का शुभारंभ अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की संस्थापक संतोष श्रीवास्तव के बीज वक्तव्य से हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि कहानी लेखन एक मानसिक श्रम का कार्य है जो कि शारिरिक श्रम से भी अधिक कठिन होता है। कहानी निजी व दूसरे के अनुभवों को मूर्त रूप देना है। दूसरों के अनुभवों को साक्षात अनुभव कर परकाया प्रवेश के माध्यम से पाठक तक पहुंचाना एक कहानीकार का कर्तव्य है। पाठक ही लेखक का सच्चा आलोचक होता है और पाठक तक ही एक लेखक की अंतिम पहुंच होती है। एक अच्छी कहानी पाठक को स्वयं से जुड़ी हुई लगती है।

इसके पश्चात अरुण अर्णव खरे ने अपनी कहानी सहयात्री का बेहतरीन पाठ किया। समीक्षा करते हुए कहानी के सभी पहलुओं तथा कहानी में प्रयुक्त संवादों के बीच के कथानक को बहुत सूक्ष्मता से उकेरते हुए नीलम कुलश्रेष्ठ ने कहा कि जब इंजीनियर ने ये कहानी लिखी है तो इसमें घर से दूर बैठे प्रोफ़ेशनल्स की घर पहुँचने की जद्दोजेहद सामने आई है।नए प्रयोग सामने आएं हैं। अक्सर कहानियों की नायिकाएं ख़ूबसूरत होतीं हैं लेकिन इस कहानी में अरुण  ने नायिका को साँवले रंग की ,थोड़ी मोटी ,चश्मा लगाने वाली --एक आम प्रोफेशनल लड़की की तरह चित्रित करके विश्वसनीयता दी है। इस कहानी की विशेषता ये है कि आज के बदलते बेबाक स्त्री पुरुष सम्बन्ध को व्यक्त किया है।ये कहानी अलग हटकर मुझे इसलिए लगी क्योंकि इसका कथानक भले ही प्रेमकथा हो लेकिन इसका ट्रीटमेंट बहुत अलग ढंग से किया है। कहानी अंत तक आर. ए. सी. टिकट के सन्दर्भ में ,आर जे के सन्दर्भ लेते हुए पुरे मुकम्मल तरीके से कथानक का निर्वाह करने में सफ़ल हुई है। अरुण अर्णव खरे जी को एक मुक्कमल ,समय का सच दिखाती कहानी के लिए बधाई दी।

गोष्ठी की दूसरी कहानी *खिड़की * बड़े ही रोचक ढंग से डाॅ संध्या तिवारी जी द्वारा सुनाई गई। कहानी की समीक्षा करते हुए डॉ भावना शुक्ला जी ने कहा कि खिड़की बड़े कलेवर की कहानी है ,कहानी का कथानक सभी को बांध के रखा है कहानी के कथानक में खिड़की के माध्यम से लेखिका ने अपनी बात खूबसूरत अंदाज यह बात कही कि आज की खिड़की इतनी समृद्ध है।यह कथानक कौतूहल को जगाता है और चरमोत्कर्ष पर पहुंचता है . आपने कालेज का खूबसूरत चित्र खींचा है।अद्भुत चित्रण किया है।कहानी पढ़ते समय आंखों के सामने चलचित्र चल रहा हो।

इसमें जो वातावरण उपस्थित है वह आज का आधुनिक युग का आधुनिक परिवेश का है कहानी मन: स्थिति के आधार पर घूमती है .प्रस्तुत कहानी में कथोकथन या संवाद कहानी को गतिशील एवं विकसित करने में अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं। कहानी की भाषा उत्कृष्ट है।सहज सुंदर और आकर्षक है। बढ़िया शब्दावली। अद्भुत सौंदर्य।कोई रचनाकार रचना को अपनी दृष्टि से लेखन करता है और समीक्षक उसे अपनी दृष्टि से समझता है, दोनों की दृष्टि एक भी हो सकती है और अलग भी, कहानी रोचक है प्रभावी और प्रवाहमय है। कहानी का दृष्टिकोण पूरी तरह से स्पष्ट है। युग में चाहे कितना भी परिवर्तन हो जाए लेकिन परिवार की विचारधारा और दृष्टिकोण और लड़की के प्रति नजरिया नही बदलेगा चाहे कितनी ने सही निर्णय लिया।खूबसूरत कहानी के लिए संध्या तिवारी को शुभकामनाएं प्रेषित कीं।

इस कहानी गोष्ठी की अंतिम व तीसरी कहानी एक समानांतर दुनिया सधे ढंग से डॉ विनीता राहुरीकर जी द्वारा प्रस्तुत की गई।कहानी की समीक्षा आयोजन की अध्यक्ष डॉ सुषमा सिंह ने कहा यथार्थ की संवेदना और पीड़ा का ,ग़रीबी -दरिद्रता -दुर्भाग्य और बदनसीबी का जीता जागता दस्तावेज़ है जिसे बड़ी आत्मीयता के साथ ,संवेदना के साथ विनीताजी ने अभावों की पराकाष्ठा की सच्चाई को बयान किया है । पुरुष मनोविज्ञान के कटु यथार्थ को भी उजागर करती है । पाठक का मन करुणा की जगह वितृष्णा से भर जाता है ।सिपाहियों द्वारा ग़रीब महिलाओं का यौन शोषण मन को वितृष्णा से भर देता है और उनकी प्रवृत्ति के प्रति गहरा क्षोभ उत्पन्न करता है।यह कहानी विनीता की संवेदनशीलता के साथ -साथ उनकी चित्रण शैली की उत्कृष्टता का भी एक उदाहरण है ।कहानी के संवादों और उनकी भाषा ने पात्रों को जीवंत कर दिया है और वातावरण में जान फूँक दी है ।चित्रात्मकता इस कहानी की जान है ।दृश्यात्मकता ने कहानी को गत्यात्मक बना दिया है जिसके लिए विनीता जी को बधाई दी।

इसके साथ ही अध्यक्षीय उद्बोधन में अरुण अर्णव खरे की कहानी पर कहा कि एक के बाद दूसरे इत्तफ़ाक़ पर आधारित अरुण अर्णव खरे की कहानी ‘सहयात्री ‘लेखक की कल्पना पर आधारित प्रतीत होती है । कहानी में आर.ए.सी. और रेडियो जॉकी की कल्पना ने कहानी को रोचक बना दिया है ।कहानी की बुनावट आकर्षक है,किन्तु अंत का पाठक को पूर्वानुमान हो जाता है,हाँ उसका कलात्मक रूप सराहनीय है ।भाषा की आलंकारिकता भी आकृष्ट करती है।समसामयिक समस्या का सही निरूपण किया गया है ।
डॉ संध्या तिवारी की कहानी पर अध्यक्ष ने कहा कि आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई संध्या तिवारी की कहानी ‘खिड़की ‘संस्मरण जैसी लगी,जिसकी भाषा की कलात्मकता कहीं-कहीं कथ्य से अधिक रोचक है ।अत्यंत सधी हुई यह मनोवैज्ञानिक कहानी लेखनीय प्रतिभा का निदर्शन है ।एक क्षण के लिए भी पाठक का ध्यान इधर-उधर नहीं होता ।

आयोजन में लेखिका नीलिमा मिश्रा ने उपस्थित सभी का आभार व्यक्त किया तथा भविष्य में ऐसे सार्थक आयोजन के लिए शुभकामनाएं दीं। संतोष श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की। कार्यक्रम में राज बोहरे, रामगोपाल भावुक , मुजफ्फर सिद्दीकी, सरस दरबारी,जया केतकी सहित लगभग तीस लेखक जुड़े रहे। आयोजन का संचालन रूपेंद्र राज तिवारी ने किया।

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली । वरिष्ठ लेखक गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ ने इंटरनेशनल बुकर प्राइज की लॉन्ग लिस्ट में अपना नाम दर्ज कराकर पूरी दुनिया का ध्यान हिंदी साहित्य की तरफ खींचा है। यह एक अभूतपूर्व परिघटना है, जिसने वैश्विक स्तर पर हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। ये बातें निकलकर आईं राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित ‘रेत समाधि : कृति उत्सव' में जिसमें अशोक वाजपेयी, हरीश त्रिवेदी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, वीरेन्द्र यादव और वंदना राग जैसे नामचीन लेखकों ने अपने विचार रखे। वरिष्ठ लेखक सईदा हमीद ने रेत समाधि के एक खास अंश का पाठ किया।
रेत समाधि राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है जिसके अंग्रेजी अनुवाद को पिछले दिनों इंटरनेशनल बुकर प्राइज की लॉन्ग लिस्ट में शामिल किया गया था। हिंदी की यह पहली किताब है जो इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की सूची में शामिल की गयी है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के उपलक्ष्य में राजकमल प्रकाशन ने रविवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के रोज गार्डन में एक समारोह का आयोजन किया जिसमें अनेक गणमान्य साहित्यकार और साहित्यप्रेमी शामिल हुए। कथाकार वंदना राग इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए कहा, रेत समाधि का ऐश्वर्य चंद बातों में नहीं समा सकता है। यह एक सियासी नॉवल भी है हम इसे यूँ ही ख़ारिज नही कर सकते कि यह रिश्तों की बात करता है । इस उपन्यास में सियासत पर टीका टिप्पणी भी सहजता से होती है। वरिष्ठ लेखक हरीश त्रिवेदी ने कहा, रेत समाधि का बुकर पुरस्कार की लॉन्ग लिस्ट में शामिल होना एक अभूतपूर्व घटना है,: वरिष्ठ लेखक हरीश त्रिवेदी ने कहा, रेत समाधि का बुकर पुरस्कार की लॉन्ग लिस्ट में शामिल होना एक अभूतपूर्व घटना है, यह एक नये जमाने की आहट है यह किताब जब 2018 में प्रकाशित हो कर आया तो लोग इसे देख कर अचम्भित हुए और इस उपन्यास का नाम तभी से लोगों की जुबां पर था।
आलोचक वीरेंद्र यादव ने इस अवसर पर कहा, बुकर पुरस्कार ने अपनी सूची में किसी कृति को शामिल करने के लिए कई सरहदें बना रखी थी। इन सरहदों को गीतांजलि श्री न केवल तोड़ा है बल्कि उन सरहदों को पार भी किया है। इस उपलब्धि ने वैश्विक स्तर पर हिंदी और अन्य दक्षिणी एशियाई भाषाओं के लिए मार्ग खोल दिए हैं’। वरिष्ठ लेखक पुरुषोतम अग्रवाल ने गीतांजलि श्री को शुभकामनाएं देते हुए कहा, यह गाथा हमारी संवेदना को समृद्ध करती है और दूसरी तरफ हमने जो पढ़ने की तरकीबें सीखी हैं और जो हमने भुला दी हैं उनको याद दिलाने की कोशिश करती है। बतौर पाठक यह उपन्यास मेरी संवेदना को समृद्ध करता है तो उसे चुनौती भी देता है’। गीतांजलि श्री को बधाई देते हुए वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने कहा, गीतांजलि ने यथार्थ की आम धारणाओं को ध्वस्त किया है और एक अनूठा यथार्थ रचा है और हमारे आस-पास के यथार्थ से मिलता जुलता है और उसके सरहदों के पार भी जाता है’।

राजकमल प्रकशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने इस अवसर पर कहा; ‘बुकर लॉन्ग लिस्ट में आकर रेत समाधि ने दुनिया की सभी भाषाओँ के सचेत पाठकों लेखकों प्रकाशकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। भारतीय भाषाओं ,विशेष रूप से हिंदी पाठकों को तो जैसे झकझोर कर जगा दिया है। हिंदी में हाल के बरसों में किसी बड़ी रचना का जो इन्तजार था उसको रेत समाधि ने समाप्त किया है’। रेत समाधि की लेखक गीतांजलि श्री ने उपन्यास की कुछ पंक्तिओं के साथ कार्यक्रम में एकजुट लोगों, वरिष्ठ साहित्यकारों, परिवार ,दोस्तों और राजकमल प्रकाशन का  धन्यवाद और आभार व्यक्त किया।

रेत समाधि की अंगेजी अनुवादक डेजी रॉकवेल ने इस अवसर पर भेजे अपने सन्देश में कहा, यह एक शानदार वाइन की तरह, एक प्रतिभाशाली कृति की प्रतिभा की पहचान कभी – कभी देर से आती है। रेत समाधि एक जटिल और समृद्ध उपन्यास है जिसे बार-बार पढ़ने पर भी आश्चर्य और रोमांच गहराता है .मैं यह निस्संदेह कह सकती हूँ क्योंकि अनुवाद करते करते मेने खुद इसे बार बार पढ़ा है. उसको पूरी तरह समझने मे देर लगती है इसलिए कि हमारे छोटे जलेबी –दिमाग यह काम अकेले में नही कर सकते हैं. इसका प्रकाशन 2018 में हुआ आज चार साल बाद भी लोग उसे अंग्रेजी और फ्रेंच में भी पढ़ रहे हैं।

रेत समाधि की फ्रेंच अनुवादक एनी मोताड ने अपने ऑडियो सन्देश में कहा ‘रेत समाधि की कहानी की गति एक और रहस्य है, कभी रुक जाती है पचास पृष्ठों तक, कभी अचानक बहुत तेज़ हो जाती है। कभी शांति नदी के तरह रहती है, कभी हाँफती है, कभी बहुत लम्बे वंशों के साथ तो कभी बहुत छोटे। जिस तरह ये कहा जाता है कि महाभारत मे सबकुछ मिलता है उसी ही तरह ये कहा जा सकता है कि सारा हिंदुस्तान रेत समाधि में निहित है’। गौरतलब है कि इंटरनेशनल बुकर प्राइज अंग्रेजी में अनूदित और ब्रिटेन या आयरलैंड में प्रकाशित किसी पुस्तक को प्रति वर्ष दिया जाता है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ' रेत समाधि' का अंग्रेजी अनुवाद 'टॉम्ब ऑफ़ सैंड' शीर्षक से डेजी रॉकवेल ने किया है। इस अनुवाद को ही इस वर्ष के इंटरनेशनल बुकर प्राइज की लॉन्ग लिस्ट में शामिल किया गया है।


० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली - उत्तराखंड लोक भाषा -साहित्य मंच दिल्ली द्वारा दिल्ली के गढवाल भवन में गढवाली,कुमाउनी एवम जौनसारी भाषा पर अखिल भारतीय स्तर पर दो दिवसीय भाषा कार्यशाला व साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें अधिसंख्य संख्या में आंचलिक विद्वान साहित्यकारों ने भाग लेकर भाषा पर सार्थक चर्चा की।
उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा यह सराहनीय व प्रशंसनीय आयोजन था, जिस काम को उत्तरराखंड की सरकार न कर सकी उस कार्य को उत्तराखंड भाषा साहित्य मंच ने करके दिखाया। सम्मेलन में भाग लेने व अपने विद्वान साहित्यकारों को सुनने के साथ-साथ हमें अपने विभिन्न वरिष्ठ साहित्यकारों को सम्मानित करने का सौभाग्य तो प्राप्त हुआ, साथ ही सम्मेलन में भागीदारी के लिए उत्तराखंड लोकमंच को भी सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके लिए लोक-भाषा साहित्य मंच के साथ-साथ सम्मेलन के मुख्य आयोजन कर्ता व वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी का भी धन्यवाद करते हैं।

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