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तीन कहानियां - तीन समीक्षक श्रंखला का आयोजन : पाठक ही लेखक का सच्चा आलोचक होता है

० रूपेंद्र राज तिवारी ० 

भोपाल -अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की राष्ट्रीय इकाई द्वारा तीन कहानियां - तीन समीक्षक कहानी श्रंखला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ सुषमा सिंह ने की तथा विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध पत्रकार व कहानीकार नीलम कुलश्रेष्ठ तथा साहित्यकार डॉ भावना शुक्ला थीं कहानीकार अरुण अर्णव खरे, डॉ विनीता राहुरीक तथा डॉ संध्या तिवारी की कहानियों क्रमशः सहयात्री, एक समानांतर दुनिया‌, तथा खिड़की का पाठ किया गया।

गोष्ठी का शुभारंभ अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की संस्थापक संतोष श्रीवास्तव के बीज वक्तव्य से हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि कहानी लेखन एक मानसिक श्रम का कार्य है जो कि शारिरिक श्रम से भी अधिक कठिन होता है। कहानी निजी व दूसरे के अनुभवों को मूर्त रूप देना है। दूसरों के अनुभवों को साक्षात अनुभव कर परकाया प्रवेश के माध्यम से पाठक तक पहुंचाना एक कहानीकार का कर्तव्य है। पाठक ही लेखक का सच्चा आलोचक होता है और पाठक तक ही एक लेखक की अंतिम पहुंच होती है। एक अच्छी कहानी पाठक को स्वयं से जुड़ी हुई लगती है।

इसके पश्चात अरुण अर्णव खरे ने अपनी कहानी सहयात्री का बेहतरीन पाठ किया। समीक्षा करते हुए कहानी के सभी पहलुओं तथा कहानी में प्रयुक्त संवादों के बीच के कथानक को बहुत सूक्ष्मता से उकेरते हुए नीलम कुलश्रेष्ठ ने कहा कि जब इंजीनियर ने ये कहानी लिखी है तो इसमें घर से दूर बैठे प्रोफ़ेशनल्स की घर पहुँचने की जद्दोजेहद सामने आई है।नए प्रयोग सामने आएं हैं। अक्सर कहानियों की नायिकाएं ख़ूबसूरत होतीं हैं लेकिन इस कहानी में अरुण  ने नायिका को साँवले रंग की ,थोड़ी मोटी ,चश्मा लगाने वाली --एक आम प्रोफेशनल लड़की की तरह चित्रित करके विश्वसनीयता दी है। इस कहानी की विशेषता ये है कि आज के बदलते बेबाक स्त्री पुरुष सम्बन्ध को व्यक्त किया है।ये कहानी अलग हटकर मुझे इसलिए लगी क्योंकि इसका कथानक भले ही प्रेमकथा हो लेकिन इसका ट्रीटमेंट बहुत अलग ढंग से किया है। कहानी अंत तक आर. ए. सी. टिकट के सन्दर्भ में ,आर जे के सन्दर्भ लेते हुए पुरे मुकम्मल तरीके से कथानक का निर्वाह करने में सफ़ल हुई है। अरुण अर्णव खरे जी को एक मुक्कमल ,समय का सच दिखाती कहानी के लिए बधाई दी।

गोष्ठी की दूसरी कहानी *खिड़की * बड़े ही रोचक ढंग से डाॅ संध्या तिवारी जी द्वारा सुनाई गई। कहानी की समीक्षा करते हुए डॉ भावना शुक्ला जी ने कहा कि खिड़की बड़े कलेवर की कहानी है ,कहानी का कथानक सभी को बांध के रखा है कहानी के कथानक में खिड़की के माध्यम से लेखिका ने अपनी बात खूबसूरत अंदाज यह बात कही कि आज की खिड़की इतनी समृद्ध है।यह कथानक कौतूहल को जगाता है और चरमोत्कर्ष पर पहुंचता है . आपने कालेज का खूबसूरत चित्र खींचा है।अद्भुत चित्रण किया है।कहानी पढ़ते समय आंखों के सामने चलचित्र चल रहा हो।

इसमें जो वातावरण उपस्थित है वह आज का आधुनिक युग का आधुनिक परिवेश का है कहानी मन: स्थिति के आधार पर घूमती है .प्रस्तुत कहानी में कथोकथन या संवाद कहानी को गतिशील एवं विकसित करने में अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं। कहानी की भाषा उत्कृष्ट है।सहज सुंदर और आकर्षक है। बढ़िया शब्दावली। अद्भुत सौंदर्य।कोई रचनाकार रचना को अपनी दृष्टि से लेखन करता है और समीक्षक उसे अपनी दृष्टि से समझता है, दोनों की दृष्टि एक भी हो सकती है और अलग भी, कहानी रोचक है प्रभावी और प्रवाहमय है। कहानी का दृष्टिकोण पूरी तरह से स्पष्ट है। युग में चाहे कितना भी परिवर्तन हो जाए लेकिन परिवार की विचारधारा और दृष्टिकोण और लड़की के प्रति नजरिया नही बदलेगा चाहे कितनी ने सही निर्णय लिया।खूबसूरत कहानी के लिए संध्या तिवारी को शुभकामनाएं प्रेषित कीं।

इस कहानी गोष्ठी की अंतिम व तीसरी कहानी एक समानांतर दुनिया सधे ढंग से डॉ विनीता राहुरीकर जी द्वारा प्रस्तुत की गई।कहानी की समीक्षा आयोजन की अध्यक्ष डॉ सुषमा सिंह ने कहा यथार्थ की संवेदना और पीड़ा का ,ग़रीबी -दरिद्रता -दुर्भाग्य और बदनसीबी का जीता जागता दस्तावेज़ है जिसे बड़ी आत्मीयता के साथ ,संवेदना के साथ विनीताजी ने अभावों की पराकाष्ठा की सच्चाई को बयान किया है । पुरुष मनोविज्ञान के कटु यथार्थ को भी उजागर करती है । पाठक का मन करुणा की जगह वितृष्णा से भर जाता है ।सिपाहियों द्वारा ग़रीब महिलाओं का यौन शोषण मन को वितृष्णा से भर देता है और उनकी प्रवृत्ति के प्रति गहरा क्षोभ उत्पन्न करता है।यह कहानी विनीता की संवेदनशीलता के साथ -साथ उनकी चित्रण शैली की उत्कृष्टता का भी एक उदाहरण है ।कहानी के संवादों और उनकी भाषा ने पात्रों को जीवंत कर दिया है और वातावरण में जान फूँक दी है ।चित्रात्मकता इस कहानी की जान है ।दृश्यात्मकता ने कहानी को गत्यात्मक बना दिया है जिसके लिए विनीता जी को बधाई दी।

इसके साथ ही अध्यक्षीय उद्बोधन में अरुण अर्णव खरे की कहानी पर कहा कि एक के बाद दूसरे इत्तफ़ाक़ पर आधारित अरुण अर्णव खरे की कहानी ‘सहयात्री ‘लेखक की कल्पना पर आधारित प्रतीत होती है । कहानी में आर.ए.सी. और रेडियो जॉकी की कल्पना ने कहानी को रोचक बना दिया है ।कहानी की बुनावट आकर्षक है,किन्तु अंत का पाठक को पूर्वानुमान हो जाता है,हाँ उसका कलात्मक रूप सराहनीय है ।भाषा की आलंकारिकता भी आकृष्ट करती है।समसामयिक समस्या का सही निरूपण किया गया है ।
डॉ संध्या तिवारी की कहानी पर अध्यक्ष ने कहा कि आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई संध्या तिवारी की कहानी ‘खिड़की ‘संस्मरण जैसी लगी,जिसकी भाषा की कलात्मकता कहीं-कहीं कथ्य से अधिक रोचक है ।अत्यंत सधी हुई यह मनोवैज्ञानिक कहानी लेखनीय प्रतिभा का निदर्शन है ।एक क्षण के लिए भी पाठक का ध्यान इधर-उधर नहीं होता ।

आयोजन में लेखिका नीलिमा मिश्रा ने उपस्थित सभी का आभार व्यक्त किया तथा भविष्य में ऐसे सार्थक आयोजन के लिए शुभकामनाएं दीं। संतोष श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की। कार्यक्रम में राज बोहरे, रामगोपाल भावुक , मुजफ्फर सिद्दीकी, सरस दरबारी,जया केतकी सहित लगभग तीस लेखक जुड़े रहे। आयोजन का संचालन रूपेंद्र राज तिवारी ने किया।
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