प्रणेता साहित्य संस्थान दिल्ली का जुलाई काव्य महोत्सव
० संवाददाता द्वारा ०
नयी दिल्ली - प्रणेता साहित्य संस्थान दिल्ली द्वारा आॅनलाइन " जुलाई काव्य महोत्सव " का आयोजन किया गया। यह काव्य गोष्ठी प्रणेता साहित्य संस्थान' के संस्थापक और महासचिव एस. जी.एस. सिसोदिया के मार्गदर्शन और शकुंतला मित्तल के संयोजन में आयोजित की गई। संस्थान की संरक्षक पुष्पा शर्मा 'कुसुम' की गरिमामयी उपस्थिति ने गोष्ठी को विशिष्ट बना दिया।
यह काव्य गोष्ठी वरिष्ठ कवयित्री सुषमा भंडारी की अध्यक्षता में संपन्न हुई ।मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवयित्री दीपशिखा श्रीवास्तव "दीप" और विशिष्ट अतिथि के रूप में मशहूर शायरा अंशु कुमारी ने मंच की शोभा बढ़ाई । सुश्री सरिता गुप्ता ने अतिथि वृंद और सभी सम्मानित रचनाकारों का भावपूर्ण स्वागत किया। चंचल पाहुजा के कुशल संचालन ने काव्य गोष्ठी को सफलता के शीर्ष पर पहुँचा दिया। इस कार्यक्रम में देश के अनेक प्रांतों के रचनाकारों ने सम्मिलित होकर काव्य गोष्ठी का मान बढ़ाया। कार्यक्रम का आरंभ भावना शुक्ल जी ने दीप प्रज्ज्वलन से किया।।तत्पश्चात अशोक पाहुजा ने माँ शारदे के समक्ष अपनी सुमधुर वाणी में सरस्वती वंदना गा कर मंच पर भक्ति की मृदुल लहरों की सुर सरिता प्रवाहित की।
सर्वप्रथम एस जी एस सिसोदिया ने प्रणेता साहित्य संस्थान की कार्य शैली,उपलब्धियों और योजनाओं का विवरण देते हुए श्री मती एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान समारोह के विजेताओं के नामों की घोषणा करते हुए उन्हे बधाई दी और शीघ्र ही सम्मान समारोह आयोजित करने की घोषणा भी की। आयोजन की अध्यक्षा सुषमा भंडारी जी ने अपनी कविता से सबका मन मुग्ध कर दिया और अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी रचनाकारों के उज्ज्वल भविष्य की कामना व्यक्त की।
मुख्य अतिथि दीपशिखा श्रीवास्तव "दीप" और विशिष्ट अतिथि अंशु ने काव्य गोष्ठी में सम्मिलित सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ देते हुए प्रणेता द्वारा साहित्य के प्रति समर्पित कार्यों की सराहना की।
प्रतिभागी रचनाकारों की रचनाओं की एक झलक
गुमशुदा है इंसान तलाश अभी बाकी है!
सुना है, बुत में हैं भगवान तराश अभी बाकी है!!
(दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप')
प्यार जब भी किया करे कोई,
यूं न तड़पें खुदा करे कोई।
सच में हमसे अगर मुहब्बत है, उल्फते हक अदा करे कोई।
(अंशु कुमारी )
मैं दीपू हूंँ सूरज नहीं
यूं नहीं है सरल जलना....
यूं नहीं है सरल जलना
पर जरूरी है बहुत
(पवन कुमार, दिल्ली)
“जब से मेरी क़लम चली है,
जैसे दुनिया ही बदली है।”
(स्वीटी सिंघल ‘सखी’बेंगलुरु)
मै ही मैं करते हुवे गुज़रेगी सारी ज़िन्दगी
आप और हम भी कभी कह कर दिखाया किजिए।
(अर्चना पांडेय)दिल्ली
किताब
मेरी संगिनी तू
मेरा जीवन है तू
(चन्नी वालिया)
"जो मिल नहीं सका हमें, उसका है गम नहीं।
जो मिल गया हमें है, वह भी तो कम नहीं।"
(एस पी वर्मा, मुम्बई)
कृपा आप की हुई जो आपने अपना लिया
वरना हम डूब ही जाते संसार रुपी सागर मे।
(सीमा मदान)
मानवता का अस्तित्व है प्रकृति
प्रकृति ही हमें आक्सीजन देती।
(लाडो कटारिया गुरूग्राम)
तरू सच्चे साथी हमारे।
साथ सदा देते वो प्यारे।।
हम भी अपना फर्ज निभाये।
उनका हम हमदम बन जाए।।
(रीतु प्रज्ञा दरभंगा, बिहार)
कारे- कारे बदरा से, नन्हीं -नन्हीं बूँदें गिरी।
आतप प्रकोप तीक्ष्ण, ताप को भुला गई।
(पुष्पाशर्मा "कुसुम",अजमेर,राजस्थान)
वो कहते हैं हम 21वीं सदी में जी रहे हैं
वो.कहते हैं हम 21वीं सदी में जी रहे हैं
परंतु मिटा नहीं सके,
आज तक समाज में दहेज का कोढ़।
(नीरू पुरी नाभा (पटियाला)
मनु पुत्रों ने मानवता का संबंध भुला दिया,
अपने अहं की डोर में बंधते चले गए।
(डॉ शारदा मिश्रा ,नोएडा)
"सावन कहाँ से बरसेगा"
कैसा समय है आया
बादल पानी न लाया
सावन कैसे बरसेगा
(दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश")
राम के ही गाऊं गीत ,राम से लगाऊं प्रीत,
हर फल मिलता राम की ही भक्ति से।
(सरिता गुप्ता)
मैं शमा की तरहा जलती हूंँ
सूरज की तरहा ढलती हूंँ
ना लगेगा अंदाज़ तुम्हे
मैं फिर उठ -उठ चलती हूंँ
(नीतिका सिसोदिया)
रिश्तो की परख
रिश्तो को निभाना है
तो आजमाना छोड़ दें ।
(प्रेमलता कोहली )
मेघ न बरसे, मेह न बरसे ,
नैना बरसे दिन और रात।
(एस जी एस सिसोदिया )
प्रगति के पथ पर है
प्रणेता मेरा
साहित्यिक रथ पर है।
(सुषमा भंडारी )
पंचतत्व में हूँ विलीन या पंचतत्व मुझमें लय है
'आत्मोत्सव' के इस पल में,खूबसूरत पावन हर शय है।
(शकुंतला मित्तल)
झरने झील पहाड़ की ,करो न कोई बात।
याद मुझे आने लगी , वहीं सुहानी रात।।
(डॉ भावना शुक्ल )
जिंदगी गुम हो गई जिंदादिली गुम हो गई,
आदमी के दिल से जाने, क्यों खुशी गुम हो गई।
(चंचल पाहुजा )