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नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्‍यार्थी के जन्‍मदिन पर ‘‘सुरक्षित बचपन दिवस’’ मनाया


० नूरुद्दीन अंसारी ० 

नयी दिल्ली - नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित बाल अधिकार कार्यक्रता कैलाश सत्‍यार्थी के जन्‍मदिन को देशभर में “सुरक्षित बचपन दिवस” के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर पूरे देश में बाल अधिकार के मुद्दे पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। बाल श्रम और गुलामी से मुक्‍त बच्‍चों ने एक ओर जहां श्री सत्‍यार्थी को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं देते हुए उनके साथ अपने अनुभवों को साझा किया, वहीं श्री सत्‍यार्थी ने भी उनके सवालों के जवाब दिए। 

इस अवसर पर सत्‍यार्थी की पुस्तक “कोविड-19:  सभ्यता का संकट और समाधान” पर चर्चा हुई तो उनके शीघ्र प्रकाशित होने वाले कविता संग्रह ‘‘चलो हवाओं का रुख मोड़ें’’ से चुनिंदा कविताओं का भी पाठ किया गया। जिसकी दमदार प्रस्‍तुति प्रसिद्ध लोकगायिका मालिनी अवस्‍थी, कवि, लेखक और कलाविद् यतींद्र मिश्र,अभिनेता और फिल्‍म निर्देशक आदित्‍य ओम और सोलो ट्रेवेलर, लेखिका व फोटोग्राफर डॉ कायनात काजी ने की।

अगले कार्यक्रम में बाल अधिकार के 4 युवा नेताओं ने बाल मित्र ग्राम  की उन कहानियों और संस्‍मरणों को सबके साथ साझा किया जो प्रेरणास्‍पद हैं। ‘‘सुरक्षित बचपन संवाद’’ कार्यक्रम के अंतर्गत श्री कैलाश सत्‍यार्थी के बचपन से जुड़ी उन स्‍मृतियों को उनके बाल सखाओं ने याद किया, जिनसे बाल अधिकार के एक बड़े योद्धा के तार जुड़ते हैं। इस अवसर पर नुक्कड नाटकों, रंगारंग सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों और संगीत संध्या का भी आयोजन किया गया। बाल अधिकारों के प्रति जागरुक करने वाले इन कार्यक्रमों की विशेषता यह रही कि इन्‍हें राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर उभरते युवा और बाल कलाकारों ने प्रदर्शित किया।

 इनमें बाल मित्र मंडल के बच्‍चों ने नुक्‍कड़ नाटक के साथ अपनी विशेष संगीतमय प्रस्‍तुति दी। वहीं गायिका मैथिली ठाकुर ने अपने दोनों छोटे भाईयों के साथ मैथिली, भोजपुरी और हिंदी में लोकगीतों और भजन गाकर सबका मन मोह लिया। दिल्‍ली घराने के संगीतकार और तबलावादक  सूरज निर्वाण ने तबले की थाप और अपनी सुरीली आवाज से सबको मंत्रमुग्‍ध किया। वहीं अस्तित्‍व बैंड, दिल्‍ली के कलाकारों के प्रदर्शन ने सबको थिरकने पर मजबूर कर दिया। सुरक्षित बचपन दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों और खासकर युवाओं को बच्‍चों के शोषण के खिलाफ जागरुक करना और उन्हें दुनिया को बच्‍चों के लिए अनुकूल और सुरक्षित स्‍थान बनाने के लिए प्रेरित करना है।

सुरक्षित बचपन दिवस की सबसे बड़ी उपलब्धि बाल श्रम और गुलामी से मुक्‍त बच्‍चों का अपने अनुभवों को साझा करने के नाम रही। बच्‍चों के अनुभवों से पता चला कि आजाद बचपन की राह में कितनी कठिनाइयां हैं? बच्‍चों ने बताया कि श्री सत्‍यार्थी द्वारा स्‍थापित बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के कार्यकर्ताओं ने यदि उन्‍हें अभ्रक व पत्थर खदानों, कारखानों, होटलों-ढाबों आदि से नहीं छुडाया होता तो उनकी भी आज वही स्थिति होती जो अन्‍य बाल मजदूरों की हैं। वीरेंद्र सिंह ने बताया कि यदि उन्‍हें बाल मजदूरी से मुक्‍त नहीं कराया गया होता और राजस्‍थान के विराटनगर स्थित बाल आश्रम में पढ़ने-लिखने की सुविधाएं नहीं उपलब्‍ध कराई होतीं, तो आज वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं कर रहे होते। श्रीमती सुमेधा कैलाश से शास्‍त्रीय संगीत की तालीम भी हासिल नहीं कर रहे होते। बिहार से मोहम्‍मद छोटू ने बताया कि बीबीए के कार्यकर्ताओं ने यदि उन्‍हें बाल मजदूरी से मुक्‍त नहीं कराया होता और “बाल आश्रम” की पढ़ाई-लिखाई उन्‍हें हासिल नहीं हुई होती, तो वे बतौर युवा नेता “मुक्ति कारवां” का संचालन नहीं कर रहे होते।

राजस्‍थान से बाल पंचायत की राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष ललिता दुहारिया के अनुसार बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) और कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन (केएससीएफ) के बगैर सहयोग के वह सोच भी नहीं सकती थी कि वह स्‍वयं को और आपने आसपास के गांवों के लोगों को छुआछूत से मुक्ति दिला पाएंगी। न तो वह बच्‍चों को बाल मजदूरी से मुक्‍त कराकर उसका स्‍कूलों में दाखिला दिलवा सकती हैं और न ही  अन्‍य सामाजिक कार्यों को अंजाम दे सकती हैं। बाल मित्र मंडल (बीएमएम) दिल्‍ली की नुजहत ने बताया कि केएससीएफ के अधिकारियों के मार्गदर्शन और सहयोग से ही उनके इलाके की लड़कियां आज सुरक्षित महसूस कर रही हैं और कहीं भी आने-जाने से झिझकती नहीं हैं। बीएमएम की ही काजल ने बताया कि यदि आज उन्‍हें भी अमेरिकन एंबेसी की वजह से ऑनलाइन पढ़ाई का अवसर मिल रहा है, तो इसका श्रेय केएससीएफ के पदाधिकारियों को जाता है। बाल श्रम से मुक्‍त बच्‍चों ने बाल मित्र ग्रामों में बाल मजदूरी, बाल दुर्व्‍यापार, बाल विवाह, छुआछूत और शराब के सेवन को रोकने से संबंधित अपने अनुभवों को सुनाए। बच्‍चों को बाल मजदूरी से मुक्‍त कराकर बड़े पैमाने पर स्‍कूलों में नामांकन करवाने से संबंधित अनुभवों को भी उन्‍होंने सबके साथ साझा किया।

पूर्व बाल मजदूरों और बच्‍चों के अनुभवों को कैलाश सत्‍यार्थी ने गौर से सुना और उनकी जमकर हौसला अफजाई की। श्री सत्‍यार्थी ने उनके सवालों का जवाब देते हुए कहा कि दुनिया में जब तक एक भी बच्‍चा गुलाम है, तब तक उसको मुक्‍त कराने की उनकी बेचैनी बनी रहेगी। उनको गुलाम बच्‍चों को मुक्‍त कराकर खुद को मुक्‍त कराने का अहसास होता है। सत्‍यार्थी ने कहा कि बच्‍चों के लिए काम करने का बीज उनके अंदर उसी दिन बो दिया गया था जिस दिन उन्‍होंने स्‍कूल के बाहर एक मोची के बच्‍चे को जूते पॉलिस करते हुए पाया था। एक बच्‍चे को स्‍कूल जाने की सुविधा हासिल हो और एक बच्‍चे को जूते पॉलिस करने का काम, इसी सवाल का जवाब पाने के लिए उन्‍होंने बाल मजदूरों को मुक्‍त कराना शुरू किया। और यह काम तब तक चलता रहेगा जब तक उनकी सांस चलती रहेगी। सत्‍यार्थी ने बच्‍चों के और भी सवालों के जवाब दिए और उन्‍हें आगे बढ़ने की शुभकामनाएं।

बाल मित्र ग्राम और बाल मित्र मंडल दुनिया को बच्चों के अनुकूल और सुरक्षित बनाने की सत्यार्थी की अभिनव पहल है। बाल मित्र ग्राम का मतलब ऐसे गांवों से है जिनके सभी बच्‍चे बाल मजदूरी से मुक्‍त हों और वे स्‍कूल जाते हों। उनका शोषण नहीं होता हो और उनमें नेतृत्‍व के गुण विकसित किए जाते हों। बाल मित्र मंडल भी शहरी स्लम क्षेत्रों में ऐसा ही प्रयोग है। जबकि बाल आश्रम मुक्‍त बाल बंधुआ मजदूरों का पुनर्वास केंद्र है। सत्यार्थी की पत्‍नी श्रीमती सुमेधा कैलाश इसका संचालन करती हैं। यह राजस्‍थान के जयपुर जिले के विराटनगर में स्थित है। यहां मुक्‍त बाल मजदूरों को अनौपचारिक शिक्षा के साथ-साथ बाल आश्रम के आस-पास स्थित सरकारी स्कूल-कॉलेजों में भर्ती कराकर आगे की शिक्षा ग्रहण कराई जाती है। बाल आश्रम में रहकर कई पूर्व बाल-बंधुआ मजदूर वकील, इंजीनियर, समाज-सेवी बने हैं।

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