जयपुर - एक साधक की साधना का साधन बन गया नीरू के हाथ में में आते ही वो कैनवास बन गया। एक नन्हा सा चावल उनकी तूलिका से अक्षरधाम बन गया।
वैश्विक महामारी कोरोना के बढ़ते प्रकोप से संपूर्ण मानव जगत प्रभावित है | सकारात्मक सोच और सही जीवन शैली ही हमे इस कठिन समय से निकाल सकती है। इसी कामना के साथ सूक्ष्म लेखन की कलाकार नीरू छाबड़ा ने 131 चावलों पर 'मंगल भावना' लिखी है । इस कलाकृति को बनाने में लगभग 4900 चावलों का प्रयोग किया गया है।
सबका मंगल , सबका मंगल, सबका मंगल होय ।
इस धरती पर जितने प्राणी सबका मंगल होय ।
दुखिया कोई रहे ना जग में सुखिया सब संसार हो।
रोग - शोक , दुःख- दारिद्र भागे घर घर मंगलाचार हो ।
रत्नत्रय आधार हो , सुखी सभी नर नार हो।
इस धरती पर जितने प्राणी सबका मंगल हो ।
जलचर , थलचर और गगनचर सब का ही कल्याण हो ।
जनम - मरण के बंधन टूटे , कर्म कटे निर्वाण हो ।
सबको सम्यक ज्ञान हो सभी जीव भगवान हो।
सबका मंगल ,सबका मंगल, सबका मंगल हो ।
जन- जन मंगल ,मन-मन मंगल, भव - भव मंगल होय ।
दृश्य - अदृश्य सभी जीवो को समता संबल हो।
पाप नशे पुण्योदय होय सम्यक दर्शन हो ।
इस धरती का कण - कण पावन और मंगलमय हो
सबका मंगल ,सबका मंगल, सबका मंगल होय।
नीरू ब्रुश से चावल पर लेखन कर कलाकृतियां बनाने वाली भारत की पहली कलाकार है। नीरू को राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय स्तर के अवार्ड मिल चुके हैं।
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