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स्कूलों के लगातार बंद रहने से दिव्यांग बच्चों की शिक्षा पर काफी बुरा असर पड़ा

० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली : दिव्यांगों के लिए काम करने वाले प्रमुख गैर-लाभकारी संस्थान,नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपुल (एनसीपीईडीपी) ने नई दिल्ली में यूनेस्को के सहयोग से वैश्विक दिव्यांगता शिखरसम्मेलन (ग्‍लोबल डिसैबिलिटी समिट/जीडीएस) की मुख्य थीम में से एक समावेशी शिक्षापर वर्चुअल साइड-इवेंट का आयोजन किया। वर्चुअल रूप सेऑनलाइन आयोजित इस कार्यक्रम का लक्ष्य दक्षिण एशियाई परिपेक्ष्य में दिव्यांगबच्चों को समग्र रूप से शिक्षा प्रदान करने पर कोरोना के प्रभाव को समझना था। 

इसकाउद्देश्य दिव्यांगों समेत सभी को समावेशी शिक्षा देने के क्षेत्र में आने वाली तमामपरेशानियों और चुनौतियों की पहचानना था। इस संक्षिप्त सम्मेलन में दिव्यांगों कोऑनलाइन शिक्षा देने के लिए तकनीक तक पहुंच के समान अवसर सुनिश्चित करने पर मुख्यरूप से ध्यान केंद्रित किया गया। इस कार्यक्रम में दिव्यांगों को शिक्षा देने केमामले में क्षेत्रीय तंत्र बनाने और दक्षिण एशिया में एसडीजी 4 के लक्ष्यों कोप्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ने के सुझाव और सिफारिश की गई। यूनेस्को, नई दिल्ली में शिक्षा विभाग के प्रमुख जॉयस पोआन ने बताया, “स्कूलों के लगातार बंद रहने से पढ़ाई के नुकसान को देखते हुए दिव्यांग बच्चों की शिक्षा पर काफी बुरा असर पड़ा है। 

अगर हमें एसडीजी 4 केलक्ष्यों की ओर से बढ़ना है और शिक्षा को वास्तविक अर्थों में सभी के लिए सुलभबनाना है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह समावेशी हो और शिक्षा तक पहुंच केलिए सभी को समान अवसर उपलब्ध कराए जाएं।” आज के मौजूदा समयमें समावेशी शिक्षा प्रणाली की अहमियत काफी बढ़ जाती है, जिसमें सभी शामिल हों और जिससे सभी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए समान भागीदारी के अवसर सुनिश्चित किए जाएं। हमें उम्मीद है कि जीडीएस 2022 के लिए होने वाले साइड इवेंट में अनगिनत दिव्यांग छात्रों को उनकी पढ़ाई पूरी करने के लिए आवाज उठाई जाएगी। अब जब हममहामारी के प्रकोप से उबर रहे हैं, हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि दुनिया भर मेंशिक्षा का विजन फिर से तय करने और शिक्षा प्रणाली का नया ढांचा तैयार करने मेंसमावेशी और सभी के लिए सुलभ शिक्षा ही मुख्य पैमाना हो।

एनसीपीईडीपी के कार्यकारी निदेशक अरमान अली के स्वागत भाषण से इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई।उन्होंने कहा, “महामारी ने हमेंदशकों पीछे धकेल दिया है। इस नाजुक मौके पर हमें समावेशी या समग्र शिक्षा प्रणालीके बारे में फिर सोचना होगा, जिसमें सभी को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर मिलेऔर सभी की समान रूप से भागीदारी हो। जीडीएस 2022 ने हमें साथ आने और एसडीजी 4 के लक्ष्योंकी ओर बढ़ने के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय तंत्र बनाने का अवसर दिया है।” नेशनल प्रोग्रामिंग ऑफीसर सुश्री हुमा मसूद ने इस चर्चा को संक्षिप्त रूप मेंपेश करते हुए कहा, “समावेशी शिक्षा के लिए बनाए गए रोडमैप के लक्ष्यों को हासिलकरने के लिए प्रतिबद्धताओं को ठोस कार्यों के रूप में बदलने की जरूरत है। यूनेस्कोदुनिया भर में सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल (एसडीजी) की अगुवाई कर रहा है और इसलक्ष्य को हासिल करने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच समन्वय बनाने के लिए भीजिम्मेदार है।

 यूनेस्को साझेदारी, नीति निर्माण के क्षेत्र में मार्गदर्शन, क्षमतानिर्माण, निगरानी और पैरवी से यह जिम्मेदारी पूरी करता है। शिक्षा के क्षेत्र मेंआने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने और समावेशी शिक्षा के लिए एक ऐसा तंत्र बनाने,जिसमें सभी छात्रों को समान अवसर मिले और जो सभी के लिए प्रासंगिक हो, के लिएक्षेत्रीय साझेदारी की जरूरत है। इस संदर्भ में हमारी सिफारिशों में से एक यह होगी कि ऐसी संस्था की स्थापना की जाए या इस दिशा में काम करने वाले संगठनों और संस्थाओंके विशेषज्ञों के मौजूदा संघ में शामिल होना चाहिए।”

 इस कार्यक्रम के वक्ताओं में बांग्लादेश के प्रतिबोंधी नागोरिक शांगथानेर परिषद के संस्थापक और महासचिव मिस सलमा महबूब, भूटान में शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा विभाग में समावेशी और विशेष शिक्षा विभागमें उपमुख्य कार्यक्रम अधिकारी पेमा छोग्येल, भारत में स्वाभिमान संस्था कीमुख्य कार्यकारी अधिकारी मिस श्रुति महापात्रा, मालदीव में मालदीव असोससिएशन ऑफपर्संस विद डिसएबिलिटीज के अध्यक्ष अहमद मोहम्मद और आईडीईए के लिए नेपाल मेंग्लोबल नेटवर्क कॉर्डिनेटर अमर बहादुर तिमलसिना शामिल थे।
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