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लोगों को "ऊंचे ब्याज़ दरों" के लालच में बैंकों में ज़्यादा पैसा रखने से बाज़ आना चाहिए

० आशा पटेल ० 

जयपुर -भारत के रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने  देश में बैंकिंग सेक्टर के भविष्य को लेकर बहुत ही चिंताजनक बात कही। उन्होंने कहा कि लोगों को "ऊंचे ब्याज़ दरों" के लालच में बैंकों में ज़्यादा पैसा रखने से बाज़ आना चाहिए।  खासकर शहरी कोऑपरेटिव बैंक्स के लिए सरकार नए नियम लाने जा रही है। यानी जोखिम और बढ़ेगा। दास के मुताबिक, इसमें जोखिम ज़्यादा है। साथ ही यह भी कहा कि बैंकों के डूबने पर 90 दिन में 5 लाख तक मिल जाएं, उसकी गारंटी नहीं है- अलबत्ता मोदीजी ने इसका वादा किया है। 

दास का यह भी कहना था कि 5 लाख तक की जमा राशि की वापसी सिर्फ़ अंतिम विकल्प है। मतलब आप समझ लें।  आप यह भी जान लें कि कल ही मोदीजी ने कुछ लोगों को उनके डूबे पैसे का एक लाख का चेक भी दिया। ऐसे 3 लाख से ज़्यादा लोगों को बरसों बाद अब ये चेक मिलेंगे।  ये भारत की आज की इकॉनमी है और इसमें रोज़ हवा भरने वाली पेडिग्री मीडिया ने दास के बयान को खास तवज़्ज़ो नहीं दिया- वरना इससे हाहाकार मच जाता।

  तो बैंक ग्राहक बटोरने के लिए हैसियत से ज़्यादा ब्याज़ का ऑफर दे रहे हैं। यानी वे अतिरिक्त ब्याज़ बाजार के जोखिम को अनदेखा कर दे रहे हैं।  RBI इसे सुधार सकता है, लेकिन नहीं सुधार रहा। बल्कि दोष जमाकर्ताओं पर डाल रहा है। वजह- सब जानते हैं।  यानी कुल मिलाकर RBI गवर्नर भारत के बैंकिंग सेक्टर और बाजार दोनों पर संदेह जता रहे हैं।  यही देश की इकॉनमी का सच है, जिसमें किसी का भी पैसा बैंकों में सुरक्षित नहीं है।  इससे अच्छे दिन की उम्मीद कभी की है?

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