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एलआइसी के आइपीओ को आखिर क्‍या चीज बनाती है सबसे बड़ी और बहुप्रतीक्षित लिस्टिंग

० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली -पिछले कुछ महीनों में कई कंपनियों के सार्वजनिक होने के साथ, भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी के सूचीबद्ध होने का फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है। हाल की रिपोर्टों से पता चलता है कि सरकार की योजना आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के माध्यम से भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) में 5% हिस्सेदारी को कम करने की है। हालांकि, आईपीओ के लिए मूल्य निर्धारण अभी तक तय नहीं किया गया है लेकिन इसके अब तक की सबसे बड़ी बीमा कंपनियों में से एक के सूचीबद्ध होने की उम्मीद है।

लिस्टिंग के लिए आवेदन दे चुकी एलआईसी अनुमोदन का इंतजार कर रही है और इसके अगले महीने लॉन्च होने की उम्मीद है और इस बीमा कंपनी का निजीकरण देश की कमजोर हो रही अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार की तरफ से उठाया गया एक रणनीतिक कदम है। आईपीओ की घोषणा के बाद अधिकांश खुदरा और कॉरपोरेट निवेशक अपने-अपने अनुमानों को लगाने में व्यस्त हैं। 10 अरब डॉलर के संभावित लक्ष्य के साथ देश के बजट घाटे को भरने के इरादे से, यह आईपीओ एलआईसी को रिलायंस और टीसीएस के बराबर सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों में से एक बना सकता है।

भारतीय बाजार में एलआईसी का मौजूदा पैर जमाना साल 1956 में स्थापित एलआईसी भारत के संपूर्ण घरेलू जीवन बीमा खंड की दो तिहाई हिस्सेदारी अपने पास रखता है। वित्त वर्ष 2020-21 में 64.1% बाजार हिस्सेदारी के साथ एलआईसी 530 अरब डॉलर की संपत्ति का प्रबंधन करता है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 16% के बराबर है। हालांकि,कंपनी का मूल्यांकन अभी निर्धारित नहीं किया गया है, लेकिन इसके पास लगभग 2,000कार्यालय और 1,500 दूरस्थ कार्यालय हैं, जिसमें देश भर में एक लाख से अधिक कर्मचारी और 1.3 मिलियन (13 लाख) एजेंट शामिल हैं। भारत सरकार की इस बीमा कंपनी में 100% हिस्सेदारी है, जिसकी बहरीन, बांग्लादेश, नेपाल, सिंगापुर और श्रीलंका में सहायक कंपनियों के साथ व्यापक वैश्विक उपस्थिति है। जीवन बीमा वर्ग में अन्य कंपनियों के बीच पांचवें उच्चतम शुद्ध प्रीमियम के साथ, एलआईसी 82% आरओई से अधिक का उपयोग करता है, जो कि इसके वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले सर्वाधिक है।

एलआईसी का आईपीओ भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे मजबूत करेगा भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों से धन की कमी का सामना कर रही है। महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को और अधिक मुश्किल में डाल दिया है, जिससे लाखों लोगों को बेरोजगारी, गरीबी और यहां तक कि दिवालियापन का सामना करना पड़ा। भारत सरकार निजीकरण के साथ बजट घाटे को फिर से भरने की महत्वाकांक्षा का आक्रामक रूप से समर्थन कर रही है, जो पहले से ही प्रारंभिक योजनाओं के अनुसार समय से पीछे है। सरकार ने वित्त वर्ष 2021-2022 के दौरान कई अलग-अलग नीतियों को अपनाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसई) में हिस्सेदारी बेचकर लगभग 120.3 अरब की राशि जुटाई। एलआईसी के आईपीओ की हालिया घोषणा बजट घाटे के लगभग 7.96 अरब डॉलर के अंतर को भरने के लिए की गई है।

लगभग 65 वर्षों से बाजार में, एलआईसी दक्षिण एशियाई बाजार में मजबूत उपस्थिति के साथ एक घरेलू नाम बन गया है। आगामी आईपीओ को देखते हुए सरकार खुदरा भागीदारी बढ़ाने के उपाय कर रही है। कई अऩ्य घटकों के साथ एक विशेष प्रबंध खुदरा निवेशकों को ब्रोकेरेज पर 0.35% की दी जाने वाली छूट है। इसके अलावा, एलआईसी पॉलिसीधारक उनके लिए अलग रखे गए 10% आरक्षित शेयरों का लाभ उठा सकते हैं, जो संभावित रूप से उन्हें रियायती दर पर पेश किए जाएंगे।

एक साल से अधिक समय तक स्थगित रहने के बाद, एलआईसी इंडिया की आईपीओ लिस्टिंग के लिए आवेदन दाखिल करने के बाद घरेलू और वैश्विक बाजारों में उम्मीदें बढ़ गई हैं। कंपनी के लाखों एजेंटों और पॉलिसीधारकों पर आधारित, एक शानदार लिस्टिंग निस्संदेह भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहद मजबूत गति से आगे बढ़ाएगी। भारत में 81 मिलियन इक्विटी निवेशक हैं, और एक सकारात्मक समर्थन देश के बजट को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हुए अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, जो पिछले कुछ वर्षों से पिछड़ रही है।
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