नई दिल्ली - दिल्ली के युवा नवोदित हिन्दी उर्दू के रचनाकार आरिफ़ सैफ़ी देहलवी की शादी के मौक़े पर दावत ए वलीमा रिसेपशन में मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया ।सैफ़ी क़लमकार के अंतर्गत आयोजित इस मुशायरे की सदारत मशहूर शायर राज़ सिकन्दराबादी ने की तो निज़ामत असलम जावेद ने की । मुशायरे व कवि सम्मेलन के कन्वीनर हिन्दी उर्दू के लेखक कवि पत्रकार तथा विभिन्न सामाजिक शैक्षिक व सरकारी संस्थाओं से जुड़े सोशल एक्टीविस्ट इरफान राही सैदपुरी सैफ़ी ने सभी मेहमानों का बैज लगा कर व फूल माला पहना कर ज़ोरदार इस्तक़बाल किया । कन्वीनर इरफान राही ने सभी मेहमानों का तआर्रूफ़ कराया और वलीमे में मुशायरे की इस ख़ुसूसी दावत में उर्दू अदब से मुहब्बत रखने वाले नौजवान शायर आरिफ़ सैफ़ी देहलवी को और उनकी दुल्हन यास्मीन सैफ़ी को मुबारकबाद पेश की ।
मुशायरे का आग़ाज़ मास्टर शादाब सैदपुरी सैफ़ी की नात शरीफ़ से हुआ। मुशायरे व कवि सम्मेलन में शायरों और कवयित्रियों ने महफ़िल में रंग जमा दिया ।वरिष्ठ लेखक मुमताज़ सादिक़ साहब ने अपनी तीन पुस्तकें उपहार स्वरूप आरिफ़ देहलवी को भेंट कीं। स्टेज पर मेहमान ए ख़ुसूसी के तौर पर उर्दू एकेडमी दिल्ली के एडवाइजरी मेम्बर व आप पार्टी के माइनारिटी विंग के साऊथ लोक सभा अध्यक्ष जनाब महमूद ख़ान, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग मुस्लिम एडवाइजरी सदस्य जनाब नूर मुहम्मद सैफ़ी, ख़ान पुर के मशहूर समाज सेवी कांग्रेस पार्टी के नेता हाशिम सैफ़ी साहब मौजूद रहे ।
इस मौक़े पर मशहूर शायर राज़ सिकन्दराबादी, वरिष्ठ साहित्यकार मुमताज़ सादिक़, नरेन्द्र सिंह नीहार,शकील बरेलवी, फ़ैज़ बदायूनी, असलम बेताब, राजेन्द्र निगम राज, सरिता जैन, इन्दु राज, सुनैना, शादाब सैदपुरी सैफ़ी , निज़ामत कर रहे असलम जावेद ,मुशायरे व कवि सम्मेलन के कन्वीनर इरफान राही सैदपुरी सैफ़ी व दूल्हे आरिफ़ सैफ़ी देहलवी ने अपना कलाम पेश किया ।
पेश हैं कुछ अशआर --
दिल को ये तकलीफ़ पहुंचाते हैं लोग, बात कहते हैं और मुकर जाते हैं लोग,
- राज़ सिकन्दराबादी
तन में हलचल हो जाती है,मन में हलचल हो जाती है,
जो बात दिलों तक जाती है वो बात ग़ज़ल हो जाती है,
-- मुमताज़ सादिक़
तुम्हारी गुफ़्तगू से प्यार की ख़ुशबू नहीं आती,
तुम्हारा लहजा कहता है तुम्हें उर्दू नहीं आती,
- शकील बरेलवी
इस मौक़े पर मशहूर शायर राज़ सिकन्दराबादी, वरिष्ठ साहित्यकार मुमताज़ सादिक़, नरेन्द्र सिंह नीहार,शकील बरेलवी, फ़ैज़ बदायूनी, असलम बेताब, राजेन्द्र निगम राज, सरिता जैन, इन्दु राज, सुनैना, शादाब सैदपुरी सैफ़ी , निज़ामत कर रहे असलम जावेद ,मुशायरे व कवि सम्मेलन के कन्वीनर इरफान राही सैदपुरी सैफ़ी व दूल्हे आरिफ़ सैफ़ी देहलवी ने अपना कलाम पेश किया ।
पेश हैं कुछ अशआर --
दिल को ये तकलीफ़ पहुंचाते हैं लोग, बात कहते हैं और मुकर जाते हैं लोग,
- राज़ सिकन्दराबादी
तन में हलचल हो जाती है,मन में हलचल हो जाती है,
जो बात दिलों तक जाती है वो बात ग़ज़ल हो जाती है,
-- मुमताज़ सादिक़
तुम्हारी गुफ़्तगू से प्यार की ख़ुशबू नहीं आती,
तुम्हारा लहजा कहता है तुम्हें उर्दू नहीं आती,
- शकील बरेलवी
आपका नाम इस हथेली पर,
लिखते लिखते ही शायरी आई,
- असलम बेताब
सताना है हमें जितना सता लो,
हमें सहने की आदत हो गई है,
- फ़ैज़ बदायूनी
लिखते लिखते ही शायरी आई,
- असलम बेताब
सताना है हमें जितना सता लो,
हमें सहने की आदत हो गई है,
- फ़ैज़ बदायूनी
शायरी सिर्फ़ लफ़्ज़ों का करतब नहीं
इक तड़प चाहिए शायरी के लिए ,
- सरिता जैन
सच सुना जाता नहीं है, झूठ मुझे आता नहीं है,
आप बताईये क्या करूँ मैं, मुझसे रूका जाता नहीं है,
- नरेन्द्र सिंह नीहार
आईने लेकर बैठे हो, दीवाने हो क्या,
अंधों की नगरी में ये व्यापार नहीं करते ,
- राजेन्द्र निगम राज
जिनके दर्शन में है तीरथ,
उन चरणों में बैठा जाए,
- सुनैना
दिल से अब नफरतों को फना कीजिए
जिंदगी और भी खुशनुमा कीजिए ,
- असलम जावेद
महविश ओ महजबीं हो गई,
ये शाम कितनी-कितनी हसीं हो गई
हम सफ़र हम हम नशीं हो गई
लो आरिफ़ की यास्मीं हो गई
-इरफान राही
तेरे ख्र्यालों में तेरे ज़हन में रहना चाहता हूँ,
मैं अपने दिल की बात तुझ से कहना चाहता हूँ,
-आरिफ़ सैफ़ी देहलवी (दूल्हा)
इस मौक़े पर सैंकड़ों मेहमानों ने इस मुशायरे को जम कर ख़ूब इन्जाॅय किया । और शादी के वलीमे में डीजे ना बजा कर मुशायरे को उर्दू अदब व तहज़ीब को ज़िन्दा रखने का जुदा और रोचक अंदाज़ क़रार दिया इस को सभी ने पसंद किया ।
इक तड़प चाहिए शायरी के लिए ,
- सरिता जैन
सच सुना जाता नहीं है, झूठ मुझे आता नहीं है,
आप बताईये क्या करूँ मैं, मुझसे रूका जाता नहीं है,
- नरेन्द्र सिंह नीहार
आईने लेकर बैठे हो, दीवाने हो क्या,
अंधों की नगरी में ये व्यापार नहीं करते ,
- राजेन्द्र निगम राज
जिनके दर्शन में है तीरथ,
उन चरणों में बैठा जाए,
- सुनैना
दिल से अब नफरतों को फना कीजिए
जिंदगी और भी खुशनुमा कीजिए ,
- असलम जावेद
महविश ओ महजबीं हो गई,
ये शाम कितनी-कितनी हसीं हो गई
हम सफ़र हम हम नशीं हो गई
लो आरिफ़ की यास्मीं हो गई
-इरफान राही
तेरे ख्र्यालों में तेरे ज़हन में रहना चाहता हूँ,
मैं अपने दिल की बात तुझ से कहना चाहता हूँ,
-आरिफ़ सैफ़ी देहलवी (दूल्हा)
इस मौक़े पर सैंकड़ों मेहमानों ने इस मुशायरे को जम कर ख़ूब इन्जाॅय किया । और शादी के वलीमे में डीजे ना बजा कर मुशायरे को उर्दू अदब व तहज़ीब को ज़िन्दा रखने का जुदा और रोचक अंदाज़ क़रार दिया इस को सभी ने पसंद किया ।
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