जयपुर . गुलाबी नगरी जयपुर को अपने ज्योतिचरणों से ज्योतित कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ बरड़िया कॉलोनी से मंगल विहार को गतिमान हुए तो सर्वप्रथम तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के स्मारक स्थल ‘साधना का प्रज्ञापीठ’ पहुंचे। वहां अपने पूर्वाचार्य का स्मरण कर पुनः जयपुर नगर में गतिमान हुए तो श्रद्धालुओं में आस्था की लहरें उठने लगीं और श्रद्धालुगण जगह-जगह अपने आराध्य के दर्शन व मार्ग में जुटने लगे।
जयपुर के कई ऐतिहासिक स्थलों के सामने से गुजरती आचार्यश्री की धवल सेना जन-जन को आकर्षित कर रही थी। अनेकानेक श्रद्धालुओं को अपने-अपने घरों व प्रतिष्ठानों के आसपास आचार्यश्री के दर्शन और श्रीमुख से मंगलपाठ सुनने का अवसर मिला। आचार्यश्री लगभग छह किलोमीटर का विहार कर शास्त्रीनगर की सीमा में पधारे तो श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी शिक्षा समिति द्वारा संचालित संत जयाचार्य महिला महाविद्यालय व श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सीनियर सेकेण्ड्री स्कूल के विद्यार्थियों, विभिन्न वाद्ययंत्रों और एनसीसी के कैडर तथा शिक्षा समिति से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भव्य स्वागत किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री संत जयाचार्य महिला महाविद्यालय में पधारे।
प्रवचन में समुपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों और श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान अवसर्पिणी में 24 तीर्थंकर हुए। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर। भगवान पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर हुए। आज पौस कृष्णा दसमी उनकी जन्म जयंती है। वे सबसे लोकप्रिय तीर्थंकर हैं। जगह-जगह उनके कितने-कितने मंदिर दिखाई देते हैं। उनके अनेकानेक स्तोत्र हैं। आचार्यश्री ने उसग्गहर स्तोत्र का पाठ किया। आचार्यश्री ने ‘प्रभु पार्श्वदेव चरणों में शत-शत प्रणाम हो’ गीत का भी आंशिक संगान किया।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस विद्या संस्थान में आना हुआ है। शिक्षक तो मानों निर्माता होते हैं। वे विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान करने वाले होते हैं। इसके साथ ही शिक्षक का चरित्र भी ऐसा हो, जिसे देख विद्यार्थी भी उसे ग्रहण कर सकें और संस्कारों और चरित्र से भावित हो सकें।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस विद्या संस्थान में आना हुआ है। शिक्षक तो मानों निर्माता होते हैं। वे विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान करने वाले होते हैं। इसके साथ ही शिक्षक का चरित्र भी ऐसा हो, जिसे देख विद्यार्थी भी उसे ग्रहण कर सकें और संस्कारों और चरित्र से भावित हो सकें।
आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा प्रणीत जीवन-विज्ञान द्वारा विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ-साथ संस्कार का विकास हो। ईमानदारी, अहिंसा और नैतिकता के भाव पुष्ट रहें। जयपुर में हमारे धर्मसंघ के पूर्वाचायों के नाम से कितने-कितने शिक्षण संस्थान संचालित किए जा रहे हैं। सभी में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकास हो। आचार्यश्री के आह्वान पर सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों व श्रद्धालुओं आदि ने अपने स्थान पर खड़े होकर अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया।
आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचे राजस्थान के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के मंत्री श्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि आज मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। दर्शन के साथ-साथ प्रवचन सुनने का लाभ भी सहज मिल गया। मैं अपने विधानसभा क्षेत्र तथा राजस्थान सरकार व समस्त जनता की ओर से आपका हार्दिक स्वागत करता हूं। परमाणु हथियारों से लैस दुनिया को आपके संदेश नया मार्ग दिखा रही है। मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई की आप 51 हजार किलोमीटर की यात्रा करने के बाद ही जन-जन के कल्याण के निरंतर गतिमान हैं। आप जैसे पुण्यात्मा के दर्शन कर मेरा जीवन धन्य हो गया।
आचार्यश्री ने उन्हें आशीष प्रदान करते हुए कहा कि राजनीति एक सेवा का अवसर है। इसमें भी नैतिकता, ईमानदारी, स्वच्छता बनी रहे, खूब अच्छी सेवा की भावना का विकास होता रहे। इसके पूर्व आचार्यश्री के स्वागत में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी शिक्षा समिति व तेरापंथी सभा-जयपुर के अध्यक्ष श्री नरेश मेहता व महामंत्री प्रदीप डोसी, कोआर्डिनेटर श्री राजेश नागौरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रीमती मीनाक्षी पारख, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं तथा विद्यालय की शिक्षिकाओं द्वारा पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया गया। विद्यालय के छात्रों द्वारा वाद्ययंत्रों के साथ नमस्कार महामंत्र का गायन किया गया। ज्ञानशाला जयपुर व मिलाप भवन के ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों द्वारा अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से आचार्यश्री की अभिवंदना की गई।
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