गुड़गांव - स्वावलंबन शब्द सार (साहित्यिक प्रकोष्ठ स्वावलंबन ट्रस्ट) के उत्तर प्रदेश प्रांत द्वारा ऑनलाइन काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अठारह रचनाकारों की विभिन्न विषयों पर लिखित रचनाओं ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इस गोष्ठी का शुभारंभ स्वावलंबन शब्द सार की राष्ट्रीय संयोजिका परिणीता सिन्हा ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। सीमा सिंह (प्रांत संयोजिका उत्तर प्रदेश )ने मधुर कंठ से माँ शारदे का वंदन-गान किया | राष्ट्रीय सह -संयोजिका भावना सक्सेना ने अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया l
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में रेणु भाटिया ( प्रदेश सचिव, भारतीय जनता पार्टी ) और कार्यक्रम अध्यक्ष राजेन्द्र निगम 'राज ' ( संस्थापक 'परम्परा ' )रहे। उन्होने अपनी गजलों से कार्यक्रम में ऐसा समां बाँधा कि श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गये ।स्वावलंबन ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव और महामंत्री राघवेन्द् की विशेष उपस्थिति रही। उन्होंने स्वावलंबन ट्रस्ट की विभिन्न गतिविधियों के बारे में सबको अवगत कराते हुए स्वावलंबन ट्रस्ट की साहित्यिक शाखा की प्रशंसा करते हुए कहा कि "स्वावलंबन शब्द सार" पूरी निरंतरता के साथ साहित्य जगत में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रही है । इतनी सुंदर कार्यशैली के लिए पूरी कार्यकारिणी की टीम बधाई की पात्र है।
मुख्य अतिथि रेणु भाटिय ने कहा कि आज की नारी वीरांगना है ,वो अबला नही है l स्वावलंबन शब्द सार के सदस्यों की रचनाएं , इस सच को बयां कर रही है।कार्यक्रम के अध्यक्षीय संबोधन में राजेन्द्र निगम ' राज ' ने सभी के काव्य-पाठ की सराहना की और हृदयतल से आभार प्रकट करते हुए स्वावलंबन शब्दसार परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना की ।"हाथों को धोना है, मॉस्क भी साथ रहे, कमबख्त करोना है ।" विशिष्ट अतिथि श्रीमती इंदु 'राज ' निगम ने कोरोना सजगता के लिए सुन्दर गीत सुनाया l
वरिष्ठ साहित्यकार एवम् शिक्षाविद् डा०लता अग्रवाल ने महिलाओं की मानसिक गुत्थी और उसके निदान पर प्रकाश डालाl "मन में कई भाव घाव लिए , दिल से भरी ये औरते आ बैठती थी चौबारे में "
यशपाल सिंह ने गीता सार ही दोहे में रच डाला ।
"अविनाशी है आत्मा, मिटता सिर्फ शरीर
फिर क्यों मरने से डरें, युद्ध करो तुम वीर"
इस अवसर पर शकुंतला मित्तल, ऋचा सिन्हा ,दर्शनी प्रिया, मोना सहाय, सीमा सिंह, निवेदिता सिन्हा, श्रुतकृति अग्रवाल, चंचल ढींगरा, अंशिका श्रीवास्तव स्वीटी सिंगल ' सखी ' ,रीना सिन्हा, शशिकांत श्रीवास्तव, पूनम श्रीवास्तव , प्रतिभा दूबे आदि की उपस्थिति रही । कार्यक्रम का सुचारू संचालन उतर प्रदेश प्रांत संयोजिका सीमा सिंह जो कि स्वयं एक योगाचार्य है और सह-संयोजिका डा० मोना सहाय , जो मैनेजमेंट कॉलेज की प्राध्यापिका है ,ने किया। गोष्ठी के अंत में राष्ट्रीय संयोजिका परिणीता सिन्हा ने स्वावलंबन शब्द सार के मूल उद्देश्य को बताया कि वे कैसे संस्था के सदस्यों को साहित्य जगत में स्थापित करने में योगदान दे रही है । इसके साथ ही उन्होने प्रबुद्ध मंच एवम् प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
काव्यपाठ की चंद पंक्तियां :-
१ उजाले जो उधारी के,चंद दिन ही चमकते हैं
कि बाती हो नहीं जिसमें, वो दिया ही नहीं जलता।
भावना सक्सैना
२ आशा की उस प्रथम किरण से,
जन्म हुआ इक नये दिवस का ।
शशि कांत श्रीवास्तव
३ अविनाशी है आत्मा, मिटता सिर्फ शरीर
फिर क्यों मरने से डरें, युद्ध करो तुम वीर
यशपाल सिंह
४ आज भी सभा है सजी, जिसमें मौजूद है,
सभी अंर्तविरोधी ।
ऊपर से सजी सुंदर मुस्कान,
अंदर समेटे धकेलने के अरमान ।
परिणीता सिन्हा
५ सूरज को भी कभी बादलों के आगे छिपना पडता है ।
हमेशा चमकने वाले तू भी
अपनी रोशनी का गुमान न कर ।
चंचल ढींगरा
६ नन्हा बिरवा कब वृक्ष बन गया,
कैसे उपवन में फूल खिला
क्यों है इतना गर्वोन्मत्त सागर,
कैसे बनी कठिन-कठोर शिला?
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
७ ना परिवारवाद ना समाजवाद
ना रंग भेद ना लिंग भेद
चाहिए एक स्वच्छंद उड़ान
अपनी अपनी उड़ान अपना अपना आसमान
सीमा सिंह
८ ऊब गयी इस उतार चढ़ाव से अब और भी
उतर जाने दो धोखे का नशा आज और भी।।
मोना सहाय
९ पुरुषत्व है, अपनों को साथ लेकर चलने में,
पुरुषत्व है, सदियों पुरानी मान्यताएँ बदलने में!
स्वीटी सिंघल ‘सखी’
१० ना पूछ मुझसे क्या हो , हो तुम?
प्रकृति का अनुपम वरदान हो तुम।
रीना सिन्हा
११ जीवन में एक ऐसा पल भी आयेगा,
ना अपना ना पराया कुछ समझ में न आयेगा।
अंशिका श्रीवास्तव
१२ तुम प्रेम मेरे जीवन के ,जलतरंग से बजते हो
ऋचा सिन्हा
१३ मैं भारत की वीर बाला ,
जाने कैसे आज बन गई, अबला ?
जाने किसने कैसे मेरे जीवन की
हर परिभाषा बदल डाला
निवेदिता सिन्हा
१४ दीवारें तोड़नी है तो , मोह की उन दीवारों को तोड़ो
जो 'स्व' के बाहर झांकने ही नहीं देती।
शकुंतला मित्तल
१५ घर से भागी हुई लड़कियां छोड़ आती आंगन सूना,
सिली भीत पर उकेर आती है बचपन
डॉ दर्शनी प्रियl
१६ अहो देव, हे हरि विशेषओ चक्रपाणि तू जाग जाग
यहां डूब रही मानवता छल-जल
अब शैय्या शेष की त्याग त्याग
लता सिन्हा ज्योतिर्मय
१७ दीवाली ,आई दादी,पर आज भी अंधकार में
रखी गई है धरा की आधी आबादी।
डा० पूनम श्रीवास्तव
१८ भारतीय नारी है ,सबसे न्यारी ।
नहीं कहो उसे अबला नारी ।
प्रतिभा दूबे
एक टिप्पणी भेजें
Click to see the code!
To insert emoticon you must added at least one space before the code.