0 परिणीता सिन्हा 0
सहा न जाए सर्दी का सितम,
जब पूरा न हो वसन ।
सहा न जाए सर्दी का सितम,
जब खुले आसमां के नीचे रहते है हम ।
कइयों के लिए सर्दी बड़ी सुहानी,
जिनके स्नानागार में हो गरम पानी ।
कइयों के लिए सर्दी का मौसम है बड़ा सुहाना,
जिनकी थाली में हो गरम खाना ।
जिनके घर है उष्मारोधी, वो नहीं सर्दीविरोधी ।
जिनके बटुए में समुचित विस्तार,
वो सर्दियो में जाते चौहदी पार ।
जिनके पास सर्दी के घनेरे उपाय,
वो सर्दी में खूब बनाते कॉफी, चाय ।
हम झेलते है, सर्दी का सितम ।
हम नहीं गुनगुनाते सर्दी में मलहार सनम् ।
हमें गीली लकड़ियां है जलानी ।
हमें क्षुधा की भूख मिटानी ।
हम लगाते प्रभु से आस ।
इस सर्दी में दान में मिल जाए कुछ वसन खास
ताकि हड्डियां न कँपकँपाए ,
ताकि दाँत न किटकिटाए ।
जब जब सर्दी का मौसम आए,
खुले छ्तोंवालों को खूब सताए ।
इन बेबसो पर रहम करो भगवान,
कितने भी बादल हो
लेकिन उदित होते रहे सूर्य भगवान ।
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