० योगेश भट्ट ०
नई दिल्ली -राजधानी दिल्ली के 360 गांव के मूल निवासियों के साथ लगभग सभी सरकारों ने सौतेला व्यव्हार किया है। मूल निवासियों की कृषि योग्य भूमि का औने - पौने दामों पर अधिकग्रहण कर राजधानी के शहरी इलाको का तो भरपूर विकास किया गया है, मगर एक के बाद एक शहरीकृत गांव को भयावह स्लम में तब्दील कर दिया गया। अब समय आ गया है, कि गांव कि 36 बिरादरी एक मंच पर आकर इस अन्याय के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ें। यह कहना है पूर्व कुलपति एवं दिल्ली मूल ग्रामीण पंचायत के अध्यक्ष प्रो डॉ राजबीर सोलंकी का।
उन्होंने कहा कि दिल्ली के 360 गांव शहर के विस्तार और गांव के कागजी शहरीकृत गांव अपने मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। बिना ग्राम विकास योजना के गांव की स्थिति एक जेल की भांति हो गयी है। चारों ओर से गांव को घेरकर विकास किया गया और गांव में आने जाने तक के रास्ते बंद हो गए। दिल्ली के गांव की विकास योजना माननीय न्यायलय की फटकार के बाद भी नहीं की गयी। दिल्ली नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण और राज्य सरकार सभी एक दूसरे पर कीचड उछालते जा रहें हैं। मूल ग्राम निवासी पिसते जा रहे हैं।
ग्रामीण लाल डोरे से बाहर नहीं निकल सकते जो अधिकतर गांव में 1950 - 1951 में निर्धारित किया गया था। निगम हाउस टैक्स, शहर की सुविधा की कॉलोनी के आधार पर निर्धारित कर रहा है। गांव में रहने वाली 36 बिरादरी जिसमें दलित और पिछड़े शामिल हैं , वे शैंटी में रहने को मजबूर हैं।दिल्ली मूल ग्रामीण पंचायत के महासचिव पारस त्यागी ने ग्रामसभा की गांव के शामलात भूमि जिसपर विभिन्न सरकारी एजेंसियां गैर कानूनी तरीके से हथिया रही हैं उसका प्रयोग गांव में मूल निवासी की सुविधा के लिए होना चाहिए। त्यागी ने ग्राम सभा के सैंकड़ो करोड़ रुपये का गांव के विकास के लिए इस्तेमाल करने की मांग की। दिल्ली विकास प्राधिकरण की नीति की निंदा करते हुए डॉ सोलंकी ने आह्वान किया कि जबतक लैंड पालिसी ग्राम हितैषी नहीं होगी, किसान के साथ - साथ सभी जातियों के हित को ध्यान में रखकर नहीं बनाई जाएगी तब दिल्ली के मूल ग्रामवासियों की स्वंतत्रता प्राप्ति से लेकर अबतक हो रही लूट यूँ ही चलती रहेगी। अतः ग्राम केंद्रित विकास योजना ही एकमात्र रास्ता है। अब गांव को जातियों में बांटकर और अधिक समय तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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