पुस्तक -महार्हं रत्नमम्बेडकरः (जीवन चरितम् ) ० लेखक डाॅ • महेश चन्द्र शर्मा गौतम
० प्रकाशक -निर्मल पब्लिकेशन्स, कबीर नगर ,शाहदरा,दिल्ली।
० प्रथम संस्करण --2020 ० पृष्ठ संख्या -217 ० मूल्य --700/-
० प्रकाशक -निर्मल पब्लिकेशन्स, कबीर नगर ,शाहदरा,दिल्ली।
० प्रथम संस्करण --2020 ० पृष्ठ संख्या -217 ० मूल्य --700/-
दूरमपसर , सम्पूर्णं जलं त्वयाशुचि कृतम्। दूरमपेहि । "
"दूर हो जा, तूने सारा पानी अपवित्र कर दिया । दूर निकल। "
"दूर हो जा, तूने सारा पानी अपवित्र कर दिया । दूर निकल। "
अपने सहपाठियों से ऐसी फटकार सुन एक प्यासा विद्यार्थी दूर हटकर चुपचाप खड़ा हो जाता है ।" यह पंक्तियाँ संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार व उन्नयन के लिए समर्पित , पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि संस्कृत साहित्यकार सम्मान से सम्मानित ,हिन्दी , पंजाबी व संस्कृत भाषा के अनेक ग्रंथों के रचयिता प्रख्यात उपन्यासकार डॉक्टर महेशचन्द्रशर्मा गौतम द्वारा अपनी सिद्ध लेखनी से रचित डाक्टर भीमराव अंबेडकर के जीवन चरित पर आधारित " महार्हं रत्नमम्बेडकरः" उपन्यास से ली गई हैं।
देखा जाए तो भारत के गौरव डाॅ भीमराव अंबेडकर के महान जीवनचरित पर अनेक लेखकों ने अपनी लेखनी चलाई है। उनके द्वारा अनेक पुस्तकें लिखी गई । पर संस्कृत भाषा में यह पहला अद्भुत सफल प्रयास है। संस्कृत भाषा में डॉक्टर अम्बेडकर के महान व्यक्तित्व का वर्णन करना दुरुह व श्रमसाध्य कार्य था , जिसे डाॅ महेश चन्द्र शर्मा गौतम ने इस गुरुत्तर कार्य का सत्यनिष्ठा पूर्वक निर्वाह किया।
प्रबुद्ध साहित्यकार गौतम की नवीनतम कृति "महार्हं रत्नमम्बेडकरः" अम्बेडकर के ऐतिहासिक एवं जीवन चरित की परतों को खोलने मेंं पूूूर्णतः सफल रही है। अपने दीर्घकालीन अनुभव व चिन्तन क आधार पर कृति का प्रणयन किया है। उपन्यास में लेखक ने उस समय में हो रही सवर्ण वर्ग द्वारा समाज में अमानवीय कुरीतियों का खुलकर वर्णन तो किया ही है साथ-ही साथ आधारहीन व तर्कपूर्ण साबित कर भरपूर निंदा भी की है। लेखक द्वारा उनका मार्मिक चित्रण पाठक को मर्मांतक पीड़ा देने के साथ सोचने पर भी विवश करता है ।
लेखक ने डा• अम्बेडकर की सम्पूर्ण जीवन यात्रा को आठ अध्यायों में क्रमानुसार व प्रामाणिक तथ्यपरक घटनाओं का सुनियोजित ढंग से वर्णन किया है। प्रत्येक आयाम विषय वस्तु की दृष्टि से अपना अस्तित्व व महत्व संरक्षित रखता है। पाठक इसे आद्योपांत बिना किसी कठिनाई के जिज्ञासा एवं कौतूहल के साथ पठन कर ग्रहण करेंगे ।
सर्वविदित है कि भीमराव का परिवार महार जाति से संबंध रखता था जो हिन्दू परम्परानुसार अस्पृश्य मानी जाती थी। उस समय इन्हें अस्पृश्य मानकर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था जबकि मालोजी सकपाल भीमराव के दादा सेवानिवृत्त सैनिक थे।भीमराव के पिता रामजी सकपाल ने भी सेना में नौकरी स्वीकार कर ली थी । भीमराव अपने माता - पिता की धीर-गंभीर व प्रतिभाशाली संतान थे। जिनके लिए जन्म से पहले ही एक सन्यासी ने उनके विषय में उनके माता-पिता को भविष्यवाणी सुनायी थी --" अपने प्रशंसनीय कार्यों से इतिहास रचने वाला,समाज का उद्धार करने वाला,अद्वितीय बुद्धि से संपन्न और दूरदर्शी पुत्र शीघ्र प्राप्त होगा ।" भविष्यवाणी सिद्ध हुई ।
सर्वविदित है कि भीमराव का परिवार महार जाति से संबंध रखता था जो हिन्दू परम्परानुसार अस्पृश्य मानी जाती थी। उस समय इन्हें अस्पृश्य मानकर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था जबकि मालोजी सकपाल भीमराव के दादा सेवानिवृत्त सैनिक थे।भीमराव के पिता रामजी सकपाल ने भी सेना में नौकरी स्वीकार कर ली थी । भीमराव अपने माता - पिता की धीर-गंभीर व प्रतिभाशाली संतान थे। जिनके लिए जन्म से पहले ही एक सन्यासी ने उनके विषय में उनके माता-पिता को भविष्यवाणी सुनायी थी --" अपने प्रशंसनीय कार्यों से इतिहास रचने वाला,समाज का उद्धार करने वाला,अद्वितीय बुद्धि से संपन्न और दूरदर्शी पुत्र शीघ्र प्राप्त होगा ।" भविष्यवाणी सिद्ध हुई ।
यद्यपि भीमराव ने सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाई की जहां पर जातीय भेदभाव का सामना कदम-कदम पर करना पड़ा।सभी के द्वारा तिरस्कार पूर्ण व्यवहार भीमराव को अत्यधिक पीड़ा देता रहा।वर्णित व्यवस्था ने भीमराव के हृदय में बाल्यावस्था में विद्रोह तो पैदा कर ही दिया था और एक अमानुषिक घटना ने तो विद्रोही बनाने के साथ- साथ साहसी व दृढ़ संकल्पी भी बना दिया । बालक की अध्ययन में निष्ठा देखते हुए 'पेण्डसे' नाम के शिक्षक ने प्रसन्न होकर सहानुभूति पूर्ण व्यवहार किया तबसे भीमराव का शिक्षकों के प्रति व्यवहार शिष्टतापूर्ण और विनम्र हो गया । अपने अध्ययन काल में कठिनाईयों का सामना करते हुए मैट्रिक परीक्षा पास की।भीमराव की प्रतिभा से प्रभावित होकर प्रख्यात चिन्तक केलुसकर ने मराठी भाषा में रचित अपना ग्रंथ उपहार स्वरूप दिया ।इस पुस्तक ने भीमराव के जीवन को एक नयी दिशा दी। उनका जीवन अत्यंत संघर्षपूूूर्ण रहा। उस समय की परम्परानुसार बाल्यावस्था में ही विवाह करना पड़ा।
प्रतिभाशाली भीमराव को शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश जाने का सुअवसर मिला।अमेरिका में रहते हुए उन्होंने अस्पृश्यता के लिए उद्धार का उपाय सोचा और पिता को पत्र लिखकर बताया कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार द्वारा ही इस दुर्दशा से छुटकारा मिलेगा । अध्ययन के दौरान ही अमेरिका में लाला लाजपत राय से भेंट हुई । आजादी का आन्दोलन तेजी से भारत में फैल रहा था ।अमेरिका के संविधान के चौदहवें संशोधन ने अम्बेडकर को बहुत प्रभावित किया । सन् 1949 फरवरी माह में डाॅ अम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप संविधान सभा के अध्यक्ष डाॅ राजेंद्र प्रसाद महोदय को सौंपा दिया । अस्वस्थ होने के कारण उन्हें उपचार के लिए मुंबई जाना पड़ा ।
इसी समय उनका ' दी अनटचेबल्स्' नाम का शोधग्रंथ प्रकाशित हुआ ।जिसने बुद्धिजीवियों के चिन्तन की दिशा को ही बदल दिया । इसी कालखंड में उन्होंने संविधान के प्रारूप का संशोधन किया। समिति के अनेक सदस्यों द्वारा संविधान के शिल्पी डाॅ• अम्बेडकर की भरपूर प्रशंसा की गयी । गुणों से परिपूर्ण उत्कृष्ट विद्वान डाॅ •अम्बेडकर ने निरन्तर अस्वस्थ होने पर भी परिस्थितियों की विषमता का सामना करते हुए जिस कुशलता से संविधान के निर्माण जैसे महान कार्य को जिस आश्चर्यजनकरूप से संपन्न किया उसके लिए भारत का प्रत्येक नागरिक उनका सदैव ऋणी रहेगा।
इसी समय उनका ' दी अनटचेबल्स्' नाम का शोधग्रंथ प्रकाशित हुआ ।जिसने बुद्धिजीवियों के चिन्तन की दिशा को ही बदल दिया । इसी कालखंड में उन्होंने संविधान के प्रारूप का संशोधन किया। समिति के अनेक सदस्यों द्वारा संविधान के शिल्पी डाॅ• अम्बेडकर की भरपूर प्रशंसा की गयी । गुणों से परिपूर्ण उत्कृष्ट विद्वान डाॅ •अम्बेडकर ने निरन्तर अस्वस्थ होने पर भी परिस्थितियों की विषमता का सामना करते हुए जिस कुशलता से संविधान के निर्माण जैसे महान कार्य को जिस आश्चर्यजनकरूप से संपन्न किया उसके लिए भारत का प्रत्येक नागरिक उनका सदैव ऋणी रहेगा।
अस्पृश्यता के कलंक से मुक्त करवाने वाले 11 वें अनुच्छेद की स्वीकृति के साथ ही संविधान सभा का सत्र समाप्त हो गया था । प्रतिभाशाली एवं संघर्षशील अम्बेडकर ने विपरीत परिस्थितियों में भी निरन्तर प्रगति पथ पर बढ़ते हुए अनेक भाषाओं में विद्वता प्राप्त कर अनेक उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की ।भारत के संविधान की रचना कर वे राष्ट्र के गौरव बने। सवर्णों के रूढ़िवादी, अयुक्तिसंगत,अन्यायपूर्ण व्यवहार ने धर्म परिवर्तन के लिए विवश कर दिया था । ऐतिहासिक साक्ष्यों को आधार बनाकर लेखक ने इस कृति में मानवीय मूल्यों एवं संवेदनाओं को उभारने का प्रयास किया है । स्वतंत्रता संग्राम के गौरवपूर्ण इतिहास को रेखांकित करते हुए और उस समय के देशकाल के चित्रण में पूर्णतया सफलता हासिल की है । संपूर्ण उपन्यास की भाषा संस्कृत होने के बावजूद सहज संप्रेषणीय है । लेखक ने संस्कृत भाषा का हिन्दी अनुवाद कर उपन्यास को और अधिक उपयोगी व रोचक बना दिया है । कथानक (कथ्य) एवं शिल्प दोनों दृष्टियों से यह एक विशेष उपलब्धि है। प्रौढ़ परिष्कृत भाषा का प्रयोग किया है । संप्रेषणीयता का विशेष ध्यान रखा गया है जो उपन्यास की रोचकता का एक कारण है। यही कृति की सार्थकता भी है।वास्तविकता तो यह है कि आज इस प्रकार की कृतियों की बहुत आवश्यकता है ।
सन् 1956 दिसंबर महीने की 4 तारीख को अस्वस्थ होने पर भी डाक्टर अंबेडकर दिल्ली में आयोजित परिषद् में उपस्थित हुए । ज्ञान के महान दीपक ने संपूर्ण विश्व को प्रकाशित किया पर 6 दिसम्बर की रात में अपने पंचभौतिक
शरीर को छोड़ सबको शोकाकुल कर दिया ।
"ज्ञानदीपो महानेष दीपयित्वाखिलं जगत्
परिनिर्वाणमाप्येदं शोकमग्नं भृशं व्यधात्।"
परिनिर्वाणमाप्येदं शोकमग्नं भृशं व्यधात्।"
'महार्हं रत्नमम्बेडकर: (जीवनचरितम्)' उपन्यास राजनीतिक ,सामाजिक व सामान्य से लेकर प्रबुद्ध पाठकों के लिए अत्यधिक उपयोगी साबित होगा। निश्चित ही साहित्य जगत की अमूूूल्य धरोहर होगी । मैं इस मूल्यवान कृति के लिए लेखक को ह्रदय से बधाई देती हूँ ।
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