० समीक्षक : गरिमा पांडेय ०
पुस्तक : राष्ट्र रत्न ओ.पी.मोहन जीवन-यात्रा , लेखक : अशोक लव , वर्ष : 2019, पृष्ठ :144, मूल्य : 350 ₹, संपर्क: अशोक लव, फ़्लैट-363, सूर्य अपार्टमेंट, सैक्टर-6, द्वारका, नई दिल्ली-110075,
हमारा जीवन कब किस दिशा की ओर बढ़ जाएगा, यह कोई नहीं जानता। एक सफल उद्योगपति एकाएक अध्यात्म की राह पकड़कर, सांसारिक आकर्षणों से मुक्त होकर संत-सी जीवन-शैली अपना लेगें, ऐसा बहुत कम सुनने में आता है। ‘राष्ट्र रत्न ओ.पी. मोहन जीवन यात्रा’ पुस्तक पढ़ते समय ऐसे ही व्यक्तितत्व के जीवन को जानने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस पुस्तक के लेखक अशोक लव उनके साथ तीस वर्षों तक समाज सेवा के कार्य करते रहे हैं। उन्होंने सौवें वर्ष में प्रवेश करने वाले राष्ट्र रत्न ओ.पी. मोहन की जीवन-यात्रा को हमारे समक्ष पुस्तक रूप में प्रस्तुत किया है। लेखक के अनुसार- ‘‘उम्र के जिस पड़ाव पर व्यक्ति वृद्धावस्था को दोष देकर असहाय से बैठ जाते हैं, श्री ओ.पी. मोहन सिद्धबाड़ी तपोवन (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) में गीता, उपनिषद् और वेदों का अध्ययन विद्यार्थी के सम्मान कर रहे हैं।’’
राष्ट्र रत्न ओ.पी.मोहन के जीवन के विषय में लेखक अशोक लव ने उनसे लंबी बातचीत की थी । यह 27 पृष्ठों में प्रकाशित हुई है। इसमें ओ.पी. मोहन के 6 अक्टूबर 1921 को जन्म लेने, लाहौर में शिक्षा ग्रहण करके नौकरी करने, स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर जेल जाने, जनरल मैनेजर तक की पदोन्नति प्राप्त करने, उद्योगपति बनने, समाज सेवा करने और चिन्मय मिशन के प्रभाव से अध्यात्म की ओर बढ़ जाने का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह ऐसा प्रेरणादायक साक्षात्कार है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ना चाहिए। इससे प्रेरणा मिलती है कि कैसे एक सामान्य व्यक्ति सफलताओं के शिखरों का स्पर्श कर सकता है।
ओ.पी.मोहन दो वर्ष के थे तो उनकी माता जी का देहांत हो गया। उनके पिता जी ने दूसरा विवाह कर लिया। आठ वर्ष के हुए तो पिता जी का भी देहांत हो गया। दूसरी माता ने ही उन्हें माँ का स्नेह देकर पाला-पोसा। ओ.पी. मोहन हेली कॉलेज लाहौर से बी.काम. करके नौकरी करने लगे। उनके संघर्षों और उपलब्धियों को जानकर आश्चर्य होता है।
उनके दीर्घायु होने का रहस्य जानने के लिए लेखक के प्रश्न का उत्तर ओ.पी. मोहन ने इन शब्दों में दिया है- ‘‘मैंने साधारण व्यक्ति के समान जीवन व्यतीत किया है। कभी भी किसी से झगड़ा नहीं किया। किसी के विरुद्ध कभी षड्यंत्र नहीं किया। इसका परिणाम यह हुआ कि मैं कभी भी तनाव में नहीं रहा। मैं सदा मर्यादा में रहा। खान-पान, रहन-सहन आदि सबमें संयम से रहा। कभी खाने में स्वादों के पीछे नहीं भागा। अपनी गतिविधियाँ नियमित रखीं। प्रातः चार बजे से मेरी दिनचर्या शुरू हो जाती थी। शाम को छह बजे के पश्चात् कोई काम नहीं करता था।’’
ओ.पी.मोहन ने सन् 1982 में नौएडा में अपना पैकेजिंग का उद्योग स्थापित किया। वे इस उद्योग के उत्तर प्रदेश संघ के अध्यक्ष रहे। वे जनरल मोहयाल सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे। मोहयाल मित्र पत्रिका के अंग्रेज़ी संपादक रहे। (लेखक अशोक लव हिंदी के संपादक थे।) 86 वर्ष की उम्र में कैलाश-मानसरोवर की यात्रा की। इसके साथ ही उन्होंने चारों तीर्थस्थानों और अन्य तीर्थों की यात्राएँ भी कीं। व्यापार के सिलसिले में उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, स्विटज़रलैंड, अफ्रीका, यू.ए. ई. आदि 20 से अधिक देशों की यात्राएँ कीं।
इस पुस्तक की विशेषता है कि यह आर्ट पेपर पर प्रकाशित हुई है जिसके कारण रंगीन फ़ोटोग्राफ़ जीवंत हो गए हैं। इनमें उनके पारिवारिक, सामाजिक और विभिन्न गतिविधियों के फ़ोटोग्राफ़ हैं। पुस्तक को उत्कृष्ट रूप प्रदान करने में लेखक अशोक लव का अद्भुत और प्रशंसनीय योगदान स्पष्ट दिखता है। यह पुस्तक है जिसे विद्यार्थियों को अवश्य पढ़नी चाहिए, युवाओं को अवश्य पढ़नी चाहिए ताकि वे संघर्षों से विचलित न होकर निरंतर परिश्रम करके सफलताएँ प्राप्त कर सकें। इस श्रेष्ठ कृति के लिए लेखक अशोक लव को साधुवाद ! यह पुस्तक संग्रहणीय है और प्रत्येक व्यक्ति को सकारात्मक चिंतन की प्रेरणा देती है।
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