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० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली, भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी को टॉप रैंकर्स मैनेजमेंट क्लब द्वारा मीडिया शिक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'टॉप रैंकर्स एक्सीलेंस अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया। मॉरीशस गणराज्य की उच्चायुक्त शांति बाई हनुमानजी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बीपी सिंह और जेके टायर एंड इंडस्ट्रीज के निदेशक एके बाजोरिया ने नई दिल्ली में आयोजित 22वीं नेशनल मैनेजमेंट समिट में प्रो. द्विवेदी को यह सम्मान दिया। इस अवसर पर नई दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के चेयरमैन वी एम बंसल, केरमाइन एनर्जी के चेयरमैन डॉ. एके बाल्यान एवं टॉप रैंकर्स मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स के प्रबंध निदेशक वीएसके सूद भी उपस्थित थे
प्रो. संजय द्विवेदी देश के प्रख्यात पत्रकार, मीडिया प्राध्यापक, अकादमिक प्रबंधक एवं संचार विशेषज्ञ हैं। डेढ़ दशक से अधिक के अपने पत्रकारिता करियर के दौरान वह विभिन्न मीडिया संगठनों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुके हैं। प्रो. द्विवेदी माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रभारी कुलपति भी रहे हैं। वह कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर में पत्रकारिता विभाग के संस्थापक अध्यक्ष भी रह चुके हैंप्रो. द्विवेदी वर्तमान में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई), पुणे की सोसायटी एवं गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हैं। वह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा; विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन; मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद एवं असम विश्वविद्यालय, सिलचर के 'बोर्ड ऑफ स्टडीज' के सदस्य हैं।
राजनीतिक, सामाजिक और मीडिया के मुद्दों पर उनके 3000 से ज्यादा लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने 32 पुस्तकों का लेखन एवं संपादन किया है। वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा अनुमोदित शोध पत्रिकाओं 'कम्युनिकेटर' एवं 'संचार माध्यम' के प्रधान संपादक हैं। प्रो. द्विवेदी 'राजभाषा विमर्श' एवं 'संचार सृजन' के प्रधान संपादक तथा 'मीडिया विमर्श (त्रैमासिक)' के मानद सलाहकार संपादक भी हैं। मीडिया क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

० योगेश भट्ट ० 

हैदराबाद,। मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (एमएएनयूयू) के जनसंचार और पत्रकारिता विभाग (एमसीजे) द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से साक्ष्य आधारित स्वास्थ्य पत्रकारिता पर दो दिवसीय कार्यशाला का  यहां समापन हुआ। एमएएनयूयू, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के 120 से अधिक छात्रों और स्वास्थ्य पत्रकारों ने यूनिसेफ के क्रिटिकल अप्रैजल स्किल्स (CAS) के माध्यम से स्वास्थ्य पत्रकारिता में साक्ष्य-आधारित रिपोर्टिंग और तथ्य-जांच के महत्व को सीखा। कार्यशाला के माध्यम से नियमित टीकाकरण, कोविड-19 टीकाकरण, एंटीबायोटिक्स, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल जैसे क्षेत्रों में साक्ष्य-आधारित पत्रकारिता के महत्व पर चर्चा करने के लिए सीएएस के चिकित्सकों, पत्रकारिता के छात्रों और विषय विशेषज्ञों को एक साथ लाया गया।
2014 में यूनिसेफ द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, थॉमसन रॉयटर्स और आईआईएमसी के सहयोग से काम करने वाले स्वास्थ्य पत्रकारों और पत्रकारिता एवं जन संचार के छात्रों के लिए विकसित सीएएस कार्यक्रम को बाद में आईआईएमसी और एमएएनयूयू द्वारा अपने पाठ्यक्रम में एक वैकल्पिक मॉड्यूल के रूप में शामिल किया गया था। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए एमएएनयूयू के कुलपति, प्रो सैयद ऐनुल हसन ने कहा, “हाल की महामारी ने दुनिया का ध्यान स्वास्थ्य संचार के महत्व की ओर आकर्षित किया है। टीकाकरण पर जागरुकता बढ़ाने के लिए मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालाँकि, हमारे कई पत्रकार गैर-चिकित्सा पृष्ठभूमि से आते हैं, इसलिए सीएएस कार्यक्रम के

कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए एमएएनयूयू के कुलपति, प्रो सैयद ऐनुल हसन ने कहा, “हाल की महामारी ने दुनिया का ध्यान स्वास्थ्य संचार के महत्व की ओर आकर्षित किया है। टीकाकरण पर जागरुकता बढ़ाने के लिए मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालाँकि, हमारे कई पत्रकार गैर-चिकित्सा पृष्ठभूमि से आते हैं, इसलिए सीएएस कार्यक्रम के माध्यम से पत्रकारों को स्वास्थ्य पत्रकारिता में प्रशिक्षित करने और जनता के बीच वैज्ञानिक मानसिकता को प्रोत्साहित करने में मदद मिलती है। ”

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए यूनिसेफ इंडिया के एडवोकेसी, कम्युनिकेशन एंड पार्टनरशिप के प्रमुख जाफरीन चौधरी ने कहा, “यूनिसेफ लंबे समय से मीडिया के साथ मिलकर सर्वसम्मति और लोगों को शिक्षित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका पर काम कर रहा है। गलत सूचना से बचाव के लिए सटीक, संतुलित, विश्लेषणात्मक रिपोर्टिंग और तथ्य जांच के लिए मीडिया पेशेवरों में कौशल को मजबूत करने के लिए 2014 में महत्वपूर्ण ' क्रिटिकल अप्रैजल स्किल्स पाठ्यक्रम' विकसित किया गया था। इसका उद्देश्य बच्चों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर सटीक और विश्वसनीय मीडिया रिपोर्ट्स को बढ़ावा देना है, जैसे टीकाकरण, माता-पिता को अपने बच्चों का टीकाकरण करवाने और उन्हें बचपन की बीमारियों से बचाने के लिए सही जानकारी और आत्मविश्वास प्रदान करना है।"

जागरूकता की कमी, भय के माहौल और टीकाकरण के बारे में गलत धारणाएं कोविड-19 और नियमित टीकाकरण के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौतियाँ रही हैं। प्रो. एहतेशाम अहमद खान, डीन, जनसंचार और पत्रकारिता विभाग, एमएएनयूयू ने कहा “भ्रामक धारणाएं, मिथक एवं गलत सूचना और सूचना की

० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली  । 
आंग्ल भाषा में एक कहावत है - ' ए मैन इज़ नोन वाई हिज़ कंप़नी दैट हि कीप्स ' - यह सुभाषित सीएसयू के लिए इसलिए भी लागू होता दिखता है कि विगत कुछ मासों से यहां सक्रिय अकादमिक गतिविधियां दिख रही हैं ।इसी क्रम में नैक के निदेशक प्रो एस सी शर्मा जैसे चर्चित शिक्षाविद्, वैज्ञानिक , टेक्नोक्रेट , व्यूरोक्रेट तथा नियमविद् का केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के लोकप्रिय तथा विजनरी कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी से मिलना भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाना चाहिए 

।इसका बहुत बडा़ कारण यह भी माना जा सकता है कि स्टैनर्ड विश्वविद्यालय, यू एस ए ने हिन्दुस्तान के विश्व के लब्धप्रतिष्ठ दो प्रतिशत वैज्ञानिकों में प्रो शर्मा को स्थान दिया है। इन्होंने ग्रीन टेक्नोलॉजी की विद्या के क्षेत्र में महनीय अनुसंधान किया है । अन्तरराष्ट्रीय थेमरेक सम्मान - 2013,लौस वेगाज, यू एस ए से सम्मानित प्रो शर्मा को संगीत विद्या में योगदान देने के लिए भी सम्मानित किया गया है ।

अब दुनिया का ध्यान संस्कृत में गुंफित विज्ञान तथा पर्यावरण संरक्षण की बातों की ओर भी जा रहा है ।अतः नैक के निदेशक तथा सीएसयू के कुलपति का ,वह भी अपने विश्वविद्यालय प्रांगण में पधारने से यह आशा की जा सकती है कि संस्कृत की पारंपरिक ज्ञान व्यवस्था को लेकर वेदों ,पुराणों या उपनिषदों आदि में जो इन्भौरमेंटल जस्टिस के रुप में की गयी है उसको प्रो शर्मा के ग्रीन टेक्नोलॉजी चिन्तन के माध्यम से एक अभिनव वातायन खुल सकता है । कुलपति प्रो वरखेड़ी स्वयं भारतीय शास्त्र परंपरा के विद्वान् तथा कम्प्यूटेशनल लिंग्विस्टिक के जाने माने विद्वान् हैं । अतः इन दोनों के समन्वित दृष्टि से संस्कृत विद्या के क्षेत्र में नवाचार की संभावना और बढ़ ही गयी है ।

 संस्कृत संगीत के लिए माईट्रौकौन्ड्रिया की तरह जीवनदायिनी रही है । अतः इस क्षेत्र में भी अभिनव वितान खुल सकता है । संस्कृत का विश्वविद्यालय परिवार यह आशा करता है कि प्रो शर्मा जी का बहुआयामी ज्ञान फलक विश्वविद्यालय के परम उत्साही, दूरद्रष्टा तथा नदीष्ण कुलपति प्रो वरखेड़ी जी के लिए बौद्धिक ऊर्जा गृह का काम करेंगे । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति ने भी इस महत्त्वपूर्ण भेंट को लेकर तोष जताया है ।

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