0 सुषमा भंडारी 0
पाश्चात्य सभ्यता को , न दें कोई महत्व l
भारतीय नववर्ष ही, खुशियों का अस्तित्व ll
भारत में घर - घर दिखे , हर्ष और उल्लास l
मना रहे नव वर्ष सब, नवसंवत्सर खास ll
राधा हो गई ये धरा, गगन हुए घनश्याम l
नव वर्ष में याद रहे , नव सृजन नव धाम ।।
नव -नूतन नव वर्ष में, खुशियां मिलें अपार l
महामारी का दूर तक, ना हो अब आसार ll
सखमय हो संसार सब, कोरोना हो दूर l
नव वर्ष अब दे रहा, खुशियां सब भरपूर ll
नव हर्ष लेकर यहाँ, आये ये नव वर्ष ।
खुशियों की सौगात से, चहक उठे सहर्ष ।।
स्वागत है नव वर्ष का, दूर सभी हों क्लेश ।
नव दुर्गा आराधना, सुखी रहे परिवेश ।।
नववर्ष अब आ गया , नव सृजन के संग ।
घर घर बजते ही रहें, खुशियों के मृदंग।।
मात भवानी दे रही सबको आशिर्वाद।
खुशियाँ चहुँदिश घूम कर फैलायें आह्लाद ।।
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