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राजकमल के 75वें स्थापना दिवस पर 28 फरवरी को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित होगा 'भविष्य के स्वर'

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली। राजकमल प्रकाशन अपनी स्थापना की 75वीं वर्षगांठ पर, 28 फरवरी को अपने सालाना जलसे में एक विशेष आयोजन करेगा जिसमें साहित्य समेत विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े सात चर्चित युवा अपने अनुभव और विचार पेश करेंगे। इस अवसर पर, देश खासकर हिंदी भाषाभाषी समाज के साहित्यिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक परिवेश को उन्नत बनाने में राजकमल प्रकाशन की भूमिका पर भी चर्चा होगी। राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने  यह जानकारी दी। 

उन्होंने बताया कि राजकमल प्रकाशन के 75वें स्थापना दिवस का समारोह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में होगा। इसके तहत आयोजित 'भविष्य के स्वर' में सात चर्चित ऐसी युवा प्रतिभाएँ वक्तव्य देंगी जिन्होंने अपने काम से सबका ध्यान आकर्षित किया है और भविष्य के लिए बड़ी संभावनाएँ जगाई हैं। इन युवाओं में शामिल हैं यायावर-लेखक अनुराधा बेनीवाल; अनुवादक, यायावर-लेखक अभिषेक श्रीवास्तव; लोकनाट्य अध्येता, रंग-आलोचक अमितेश कुमार; अध्येता-आलोचक चारु सिंह; लोक-साहित्य अध्येता, कथाकार जोराम यालाम नाबाम; कथाकार, गीतकार-गायक नीलोत्पल मृणाल और चित्रकार, फैशन डिजाइनर मालविका राज।

 अशोक महेश्वरी ने कहा, लगातार बदल रहे परिदृश्य में राजकमल सकारात्मक हस्तक्षेप करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहा है। हमारी इसी प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति है 'भविष्य के स्वर'। यह हमारा विचारपर्व है। नई पीढ़ी की रचनात्मकता ही समाज का भविष्य है। युवा आवाजों को समेकित रूप में सामने लाना हमारी प्राथमिकता है। 'भविष्य के स्वर' के जरिये हमारा मकसद साहित्य समेत विभिन्न क्षेत्रों में नई लकीर खींच रहे युवाओं के अनुभवों और सपनों को स्वर देना है। हमें उम्मीद है कि इस आयोजन से हम सब युवा रचनात्मकता के नये आयामों से परिचित होंगे। हमें विश्वास है कि विभिन्न क्षेत्रों और विषयों से जुड़े हमारे युवा वक्तागण समाज के वर्तमान का मूल्यांकन करते हुए इसके भविष्य को लेकर अपना अपना दृष्टिकोण साझा करेंगे। जो निश्चय ही प्रेरक होगा। 

गौरतलब है कि राजकमल प्रकाशन की स्थापना 28 फरवरी 1947 को हुई थी। राजकमल का स्थापना दिवस, प्रकाशन दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेखकों, पाठकों और बौद्धिकों ने इसको अपने सालाना जलसे के रूप में अपनाया है। इस बार का आयोजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बार राजकमल प्रकाशन अपने 75वें वर्ष की शुरुआत करेगा। राजकमल आरंभ में एक प्रकाशन था। अपनी 75 वीं वर्षगांठ मनाते समय यह ऐसे  एक प्रकाशन समूह के बतौर स्थापित हो चुका है, जिसके पास एक ओर स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन का सुदीर्घ अनुभव है, तो दूसरी ओर आने वाली पीढ़ियों की मानसिक-बौद्धिक जरूरतों को पूरा करने का दृढ़ संकल्प।

राजकमल अपनी शुरुआत से लेकर आजतक स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन के क्षेत्र में अपनी मिसाल यह आप है। माना जाता है कि राजकमल का इतिहास और आजादी बाद के आधुनिक हिंदी साहित्य का ही इतिहास है। 75वें वर्ष में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में इसकी पूरे वर्ष कार्यक्रम करने की योजना है। राजकमल प्रकाशन अब तक दो बार 'भविष्य के स्वर'  का आयोजन कर चुका है। पहली बार 'भविष्य के स्वर'  का आयोजन 2019 में राजकमल के स्थापना दिवस पर किया गया था। जिसमें कथाकार अनिल यादव, कवि अनुज लुगुन, कवि-कथाकार गौरव सोलंकी, कलाकार-डिजाइनर अनिल आहूजा, मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार, आर जे सायमा और पत्रकार अंकिता आनंद ने वक्तव्य दिया था।

 अगले वर्ष, 2020 में, राजकमल के स्थापना दिवस पर भी सात युवा प्रतिभाओं ने भविष्य के स्वर के तहत अपने अपने क्षेत्र व विषय के अनुभव और विचार पेश किये थे। इन युवाओं में कवि सुधांशु फिरदौस, कवि जसिंता केरकेट्टा, किस्सागो हिमांशु वाजपेयी, सिने आलोचक मिहिर पांड्या, कथाकार चंदन पांडेय, वंचित बच्चों में कलात्मक कौशल के विकास के लिए सक्रिय जिज्ञासा लाबरु और कवि-आलोचक मृत्युंजय शामिल थे। वर्ष 2021 में कोरोना से उपजी अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण ‘भविष्य के स्वर’ का आयोजन करना संभव नहीं हो सकता था।

राजकमल प्रकाशन सिर्फ एक प्रकाशन नहीं है बल्कि हिंदी भाषा-साहित्य और समाज के लिए गौरव है। अपनी 75 वर्ष की यात्रा में एक प्रकाशन से आगे बढ़ कर यह राजकमल प्रकाशन समूह बन चुका है।इसने अब तक 20 से अधिक विधाओं में लगभग 50 विषयों की किताबें प्रकाशित की हैं। पचीस से भी अधिक भारतीय और भारतीयेतर भाषाओं की चुनिंदा कृतियों को हिंदी में प्रकाशित करने का श्रेय इसको है। 

राजकमल ने ऐसे अनेक लेखकों की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें पहले पहले प्रकाशित किया जो आगे चलकर  हिंदी साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर बने। हिंदी से इतर भारतीय भाषाओं के अनेक प्रतिनिधि लेखकों की कृतियों को हिंदी में सबसे पहले लाने की पहल भी राजकमल ने की। इसकी ऐसी पहलों की अहमियत इसी तथ्य से जाहिर हो जाती है कि साहित्य अकादेमी पुरस्कार के 68 साल के इतिहास में हिंदी के लिए पुरस्कृत कृतियों में से 32 कृतियां राजकमल से प्रकाशित हैं। इसने आठ भारतीय भाषाओं की 16 से ज्यादा उन कृतियों को भी हिंदी में प्रकाशित किया है जिन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 

राजकमल से प्रकाशित लेखकों में 29 ऐसे हैं जिन्हें  भारतीय साहित्य का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इनमें 10 लेखक हिंदी के हैं जबकि बाकी आठ अन्य भारतीय भाषाओं के। राजकमल प्रकाशन समूह अब तक दस हजार से अधिक किताबें प्रकाशित कर चुका है। इसके सम्मानित लेखकों में नोबेल पुरस्कार विजेता बीस, पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता दो और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त छह लेखक शामिल हैं। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से विभूषित चार शख्सियतें भी राजकमल के सम्मानित लेखकों में शुमार हैं।

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