० संवाददाता द्वारा ०
भोपाल -अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित सम्मान समारोह भोपाल शहर के साहित्यकारों, पत्रकारों एवं गण्यमान्य साहित्य प्रेमियों से भरे हिंदी भवन के महादेवी वर्मा कक्ष सभागार में संपन्न हुआ।आजादी का नाम लेते ही केवल क्रांतिकारी और सरहद पर देश के लिए शहीद हुए सैनिकों का ही स्मरण किया जाता है लेकिन कला जगत से जुड़े (साहित्य ,नाट्य कला ,संगीत कला, चित्र कला) कलाकारों ने देश की आजादी में अपने-अपने कला क्षेत्र से जो क्रांति की भूमिका निभाई है वह भी काबिले गौर है। जिसमें साहित्य की बहुत अहम भूमिका रही है। साहित्य ने जनमानस को गुलामी के कलंक को मिटाने के लिए एकजुट किया और तलवार से भी तीखी धार वाली कलम को अपना हथियार बनाया।
वरिष्ठ साहित्यकार, समाज से कैलाश चंद्र पंत ने अपना पूरा जीवन साहित्य के लिए समर्पित किया।जिन्हें " हिंदी सेवी सम्मान" से तथा डॉ संजीव कुमार कवि एवं प्रकाशक( इंडिया नेटबुक्स दिल्ली) को "महादेवी वर्मा साहित्य भारती "पुरस्कार से कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ देवेंद्र दीपक के कर कमलों द्वारा शॉल एवं स्मृति चिन्ह देकर नवाजा गया। मुख्य अतिथि नवनीत गोयल (मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ कस्टम्स के चीफ कमिश्नर )तथा हिंदी भवन के निदेशक जवाहर कर्णाव के प्रेरणादायक उद्बोधन ने कार्यक्रम के महत्व को प्रतिपादित किया कार्यक्रम का संचालन (विश्व मैत्री मंच मध्य प्रदेश इकाई के सचिव) मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी ने बहुत ही रोचक ढंग से किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में मुशायरा हुआ।जिसमें भोपाल के मशहूर शायर दिनेश प्रभात ,मनीष बादल ,किशन तिवारी, महेश अग्रवाल ,राजश्री राज और संतोष श्रीवास्तव ने अपनी गजलें सुना कर श्रोताओं का मन मोह लिया।डॉ राजश्री राज ने ‘‘करें कैसे भरोसा अक्स पर भी इस जमाने में, लगे हैं लोग सब इक-दूसरे को आजमाने में।’’मनीष बादल ने ‘‘नफ़रतों को काटती है, उल्फ़तों की धार बस, प्यार करिए, प्यार करिए प्यार करिए प्यार बस’’ किशन तिवारी ‘‘कब कहां फैसला हुआ कैसे, कोई छोटा-बड़ा हुआ कैसे’’
दिनेश प्रभात ने
"तीखे तीखे नैना भी आरपार होते हैं
कौन कहता चाकू ही धारदार होते हैं
हम तो रख नहीं पाते तर्क भी तरीके से
उनके हर गिले शिकवे बिंदुवार होते हैं ।’’
महेश अग्रवाल ने ‘‘समुंदर सोचकर इस बात पर हैरान रहता है, जमीं की एक चुल्लू में बहुत तूफान रहता है।’’
संतोष श्रीवास्तव ने
तालीम याफ्ता हुई है जबसे बेटियां
बस्ती में एक शख्स भी जाहिल नहीं रहा
ग़ज़ल सुनाकर तालियाँ बटोरीं।
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