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भोजन पकाने और तलने की सामग्री की कीमतों में भारी वृद्धि से चूल्हे ठंडे पड़ रहे हैं - वाणी पटनायक

० आशा पटेल ० 

रीवा- महंगी होती जा रही भोजन और ईंधन सामग्री को लेकर नारी चेतना मंच ने एक अंतर्राज्यीय कॉल कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सवाल उठाए हैं . सरकार से कहा है कि वह महंगाई रोकने के लिए दाम बांधो जैसे कार्यक्रमों को तत्काल अमल में लाए . बढ़ती जा रही महंगाई से आम जनजीवन बेहाल हो गया है . देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनको आसानी से भोजन भी नसीब नहीं हो रहा है , 

वहीं रसोई गैस काफी मंहगी होने और खाद्य तेल में मनमानी वृद्धि के चलते खाना पकाना भी गंभीर समस्या बन गया है . आयोजित कॉल कॉन्फ्रेंसिंग में उड़ीसा के भुवनेश्वर से समाज सेविका वाणी मंजरी दास पटनायक , राजस्थान के जयपुर से पत्रकार आशा पटेल एवं विभा जैन , उत्तरप्रदेश के बिजनौर से प्रोफ़ेसर सुनीता त्यागी ,  बिहार के पटना से सरस्वती दुबे , गुजरात के अहमदाबाद से भारती त्यागी , मध्यप्रदेश के सतना जिले के इटमा कोठार ग्राम से सुधा सिंह बघेल एवं रीवा से अजय खरे ने अपने विचार एवं सुझाव रखे

वाणी पटनायक ने कॉल कांफ्रेंसिंग की शुरुआत करते हुए कहा कि वर्तमान महंगाई का दौर अत्यंत भयावह है . गरीबों की हालत तो पहले से ही खराब थी जो कोरोना काल में और बदतर हो गई . इधर मध्यमवर्ग उसकी चपेट में बुरी तरह आ गया है . भोजन पानी मनुष्य की सबसे मूलभूत जरूरत है लेकिन महंगाई के चलते यह संकट बढ़ता जा रहा है . अच्छे दिन के नाम पर बुरे दिन देखने को मिल रहे हैं . यह दुर्भाग्यपूर्ण चिंताजनक स्थिति है पर सरकार का इस पर जरा भी नियंत्रण नहीं है . गरीबों के घर के चूल्हे ठंडे पड़ते जा रहे हैं और उन्हें इधर उधर मांग कर किसी तरह गुजारा करना पड़ रहा है . यह स्थिति विस्फोटक बनती जा रही है .

सुनीता त्यागी ने कहा कि देश की हालत बेहद खराब है . कोरोना के नाम पर लोगों के जुबान पर ताला लगा दिया गया है और महंगाई जैसे सवाल के खिलाफ भी लोग आवाज नहीं उठा पा रहे हैं . लोगों को भयभीत करके गुलामी की ओर धकेला जा रहा है . मध्यम वर्ग बड़ी तेजी से गरीबी रेखा के नीचे जा रहा है लेकिन उसे गरीब के रूप में चिन्हित नहीं किया जा रहा है . इधर यह देखने को मिल रहा है कि चिन्हित गरीब वर्ग को मिलने वाला अनाज उनके पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं है . खाना पकाने के लिए ईंधन और तेल इतना अधिक महंगा हो गया है कि गरीब की रसोई ठंडी पड़ी हुई है . लोग खराब और कच्चा भोजन खाने को मजबूर हो रहे हैं .

आशा पटेल ने कहा कि बढ़ती महंगाई का सबसे गलत लाभ देश के पूंजीपतियों को मिल रहा है वहीं गरीब तबका दाने-दाने को मोहताज हो रहा है .ऐसा लगता है कि देश की सरकार को जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि पूंजीपति चला रहे हैं . कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है , जहां महंगाई का असर न हुआ हो . महंगाई ने बड़े पैमाने पर लोगों को कर्जदार बना दिया है . महंगाई के चलते लोगों को सही तरीके से भोजन नहीं मिल पा रहा है . आम आदमी के स्वास्थ्य पर इसका गंभीर असर हो रहा है . गर्भवती स्त्रियों को पोषण आहार नहीं मिल पा रहा है और बड़े पैमाने पर बच्चे कुपोषित हो रहे हैं . कालाबाजारी को भारी बढ़ावा मिल रहा है . इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होना अत्यंत चिंताजनक एवं आक्रोश का विषय है .

विभा जैन ने कहा बताया कि बढ़ती महंगाई से पूरे देश में भुखमरी जैसे हालात बन गए हैं . लोगों की भोजन की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पा रही है . देश की बड़ी आबादी के लिए पेट भरना काफी मुश्किल हो रहा है . सरकारी व्यवस्थाएं निकम्मी और भ्रष्ट हैं जिसके चलते गरीब वर्ग का व्यक्ति मारा मारा फिर रहा है . भूख से कमजोर हुआ शरीर अनेक व्याधियों का शिकार भी होता है जिससे हुई एमपी मौतों को सरकार हमेशा से नजरअंदाज करती आई है . सरकार चाहे तो महंगाई पर आसानी से नियंत्रण कर सकती है लेकिन वह पूंजी पतियों को मालामाल करने में लगी हुई है .

सरस्वती दुबे ने कहा कि एक समय ऐसा था जब विपक्षी दल के लोग यह नारा लगाते थे यह देखो इंदिरा का खेल , खा गई राशन पी गई तेल लेकिन आज जब उनकी सरकार केंद्र और विभिन्न राज्यों में है तो महंगाई और बेलगाम हो गई है . नारे लगाने वाले लोग सरकार में बैठने के बाद बेजुबान हो चुके हैं बल्कि देश को ही लूटने में लगे हुए हैं . एक हिसाब से पूरे देश का तेल निकाला जा रहा है . आज यह नारा लगाया जाना चाहिए कि यह देखो मोदी का खेल ,  पूरा देश बन गया जेल . महंगाई का असर गांव और शहर चारों और पड़ रहा है . मौजूदा विकास के चलते ग्रामीण अर्थव्यवस्था बिखर गई है और उसे हर छोटी छोटी बात के लिए भी शहर की ओर देखना पड़ता है . महंगाई को रोकने के लिए पूंजीवादी विकास के खिलाफ आंदोलित होने की जरूरत है . इसके लिए किसान आंदोलन को मजबूती देना होगा .

भारती त्यागी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि गरीब वर्ग के लिए भोजन सामग्री का प्रबंधन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है और वहीं मध्यम वर्ग के सामने भोजन पकाने के लिए मंहगी ईंधन गैस और खाद्यान्न तेल की समस्या है . उज्जवला योजना के अंतर्गत गरीबों को दिए गए गैस के चूल्हे ठंडे पड़े हुए हैं . ग्रामीण क्षेत्रों में खास तौर से गरीब तबके के लोग लकड़िया तलाश कर मिट्टी के चूहे पर फिर से खाना बनाने को मजबूर हुए हैं . ईंधन गैस और खाने का तेल को महंगा करके बड़े बड़े पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाया जा रहा है . पूंजीपतियों के उत्पादों को बाजार में बहिष्कार करके , गांव की व्यवस्था को प्रोत्साहन देना पड़ेगा . गांव की तेल पेरने की व्यवस्था को फिर से पुनर्जीवित करना होगा . बड़े पूंजीपतियों के हाथ में तेल उत्पादन जाने से उसके दामों में मनमानी वृद्धि हुई है . बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना होगा ताकि आने वाले समय पर खाना पकाने के लिए लकड़ियां भी मुहैया हो सकें .

सुधा सिंह बघेल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि महंगाई के चलते गांव के मजदूर और किसान सभी बेहाल हैं . किसानों को अपनी फसल का उचित लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाता है . उसके पास खेती की जमीन है लेकिन उसका जीविकोपार्जन नहीं हो पा रहा है . धीरे-धीरे उसके हाथ से जमीन भी जा रही है . जिन परिवारों में सरकारी नौकरियां नहीं है , उन परिवारों की हालत बेहद खराब है . सरकार द्वारा कोरोना काल में महंगाई भत्ता और वेतन वृद्धि रोक दिए जाने से ईमानदार कर्मचारी और पेंशनर भी बेहद परेशान है . कर्मचारियों का हाथ तंग हो जाने से बाजार की रौनक खत्म हो गई है . महंगाई से परेशान कर्मचारियों के घरों में बर्तन पोछा करने वाले भी बेरोजगार हो गए हैं . सरकार को महंगाई पर तत्काल नियंत्रण करना चाहिए .

समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने कहा कि महंगाई अंतर्राष्ट्रीय पूंजीवाद का हथकंडा है जिसे विभिन्न देशों की सरकारों में बैठे हुए लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए प्रश्रय देते रहते हैं . देखने को मिल रहा है कि कोरोना काल में पूंजीपति मालामाल और आम आदमी फटेहाल हुआ है . अंतर्राष्ट्रीय कर्ज के बोझ में दबे जा रहे भारत की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक है वहीं देश के कुछ पूंजीपति सरकारी संरक्षण में आपदा को अवसर में बदलते हुए दुनिया के बड़े पूंजीपतियों में शुमार हो गए हैं . देश को गरीबी की ओर झोंककर पूंजीपतियों का मालामाल बनना अत्यंत चिंताजनक एवं आपत्तिजनक बात है . वर्तमान समय में सरकार के लिए महंगाई को सबसे पहले नियंत्रित करना चाहिए .

 सरकार ने गरीबों की हालत मरे न मुटाए वाली बना दी है . लोक कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर खर्च होने वाली राशियों में भारी भ्रष्टाचार है . सरकार को महंगाई रोकने के लिए दाम बांधो नीति को प्रभावी बनाना होगा . कृषि उत्पादों को किसानों से सस्ता खरीदकर पूंजीपतियों द्वारा मनमाने दामों पर बेचे जाने का गंदा खेल रोकना होगा . किसानों को उचित मूल्य दिलाते हुए बाजार पर नियंत्रण बेहद जरूरी है . महंगाई को रोकने के लिए बाजार की लूट बंद होना चाहिए . मोदी सरकार यदि महंगाई पर नियंत्रण नहीं करती है तो उसके खिलाफ जनता को सड़कों पर उतरना होगा . डॉ राम मनोहर लोहिया कहते थे कि जिंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं किया करती हैं .

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