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आलोचक एवं समीक्षक अपनी जिम्मेदारी पुनः तय करें- संदीप तोमर

0 इरफ़ान राही 0

नई दिल्ली -लघुकथा शोध केन्द्र, दिल्ली के तत्वावधान में ऑनलाइन मासिक गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर दिग्गज़ लघुकथाकार और आलोचक संदीप तोमर ने अपने अतिथि वक्तव्य में कहा कि आज आलोचना का स्थान मात्र प्रशंसा ने ले लिया है। मैं अपने समकालीन आलोचकों एवं समीक्षकों को देखकर दुखी होता हूँ। उन्हें अपनी जिम्मेदारी पुनः तय करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि लघुकथा में अब वैविध्य देखने को मिल रहा है, नित नये विषय पर लेखन हो रहा है जो लघुकथा के लिए बहुत शुभ संकेत है।

प्रेम विषयक लघुकथाओं पर आधारित इस आयोजन में देश के जाने-माने लघुकथाकारों ने भाग लिया। साहिबाबाद के सुरेन्द्र अरोड़ा की लघुकथा ‘पासवर्ड’ दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी के प्रेम और भरोसे को नई ऊॅंचाईया प्रदान करती है। कथानक बताता है कि हर पति-पत्नी के रिश्ते की बुनियाद ही भरोसा है और जहॉं भरोसा है वहॉं गलत फहमियों और अविश्वास के लिए कोई जगह नहीं है। उज्जैन के वरिष्ठ लघुकथाकार संतोष सुपेकर की लघुकथा ‘बिना खाए ही’ घरेलू कामकाज के लिए पति-पत्नी के भेद को समाप्त करने की वकालात करती है। लघुकथा बताती है कि पति को भी घरेलू कार्यों में पत्नी का हाथ बंटाना चाहिए। इससे सम्बन्धों में मधुरता बनी रहती है। आगरा, की सविता मिश्रा अक्षजा की लघुकथा ‘प्यार की महक’ पति-पत्नी की खट्टी-मीठी नोंकझोंक में घर के वातावरण का यथार्थ चित्रण करती है।

 बरेली की ज्योत्सना कपिल की लघुकथा ‘प्रेम की बंद गली’ सेक्स वर्कर लड़की और एक युवक के प्रेम प्रसंग के अंत को बड़े मार्मिक, भावपूर्ण किंतु व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत करती है। बड़ौदा के आशीष दलाल की लघुकथा ‘प्रेम का रंग’ मंदिर के बाहर फूल और प्रसाद बेचने वाली मुस्लिम किशोरी और खरीदने वाली महिला भक्त के माध्यम से साम्प्रदायिक प्रेम और सद्भाव पर बल देती है। नोएडा से मीनू त्रिपाठी अपनी लघुकथा ‘चिंता’ के साथ प्रस्तुत थी, जिसमें नौकरानी और मालकिन की बातचीत से पता चलता है स्त्रियॉं अपने पति से कितना गहरा प्रेम करती है और उनकी छोटी-छोटी जरूरतों का कितना ध्यान रखती है।

  दिल्ली के सतीश खनगवाल की लघुकथा ‘ग्रीटिंग कार्ड’ अधूरे प्रेम की कसक को इंगित करते हुए बताती है कि अपने प्रेमी या प्रेमिका के बारे में कोई भी पूर्वानुमान नहीं करना चाहिए और ना कोई गलतफहमी पालनी चाहिए। बागपत की साधना तोमर की लघुकथा ‘प्रेम’ जड़ पारम्परिक, पारिवारिक और जातिमूल्यों के बीच दम तोड़ते युवा पीढ़ी के सपनों का कथानक है। भाटापार, छत्तीसगढ़ से अपनी लघुकथा ‘एॅंजाय’ के साथ वंदना गोपाल शैली जी ने विकलांग विमर्श के साथ-साथ भाई-भाई के बीच के प्रेम को परिभाषा देने की कोशिश की है।

 गाजियाबाद की रेनुका सिंह की लघुकथा ‘प्रेम’ पारिवारिक रिश्तों के मध्य प्रेम को बनाए रखने की सीख देती है, विशेषकर बुजुर्गोंं और युवा पीढ़ी के मध्य जिसमें माता-पिता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। गुना की नीलम कुलश्रेष्ठ की लघुकथा ‘प्रेम का प्रतिदान’ इस बात की ओर इंगित करती है कि प्रेम अपना प्रतिदान स्वयं मांगता है साथ ही यह लघुकथा दाम्पत्य जीवन की मधुरता का अहसास कराती है। ‘हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे की कयामत हो और तू आए’ कुछ इसी तर्ज पर डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे की लघुकथा ‘दुनिया’ प्रेम के आदर्श को छूती हुई दिखाई देती है।    

सदानंद कविश्वर के बेहतरीन संचालन में गोष्ठी लगभग ढाई घण्टे चली। केन्द्र की संयोजिका रेणुका सिंह ने आमंत्रित लघुकथाकारों एवं अन्य अतिथियों का स्वागत किया। केन्द्र के सचिव सतीश खनगवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर लघुकथा शोध केन्द्र की अध्यक्षा कांता राय विशेष रुप से उपस्थित रही।

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