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राष्ट्र विकास में युवा है महत्वपूर्ण कड़ी, इन्हें उचितअवसर व दिशा देने की आवश्यकता

० श्याम कुमार कोलारे ० 

“युवाओं के बाजुओं में छिपा प्रचूर तूफान, कन्धों में ले सकते है पूरा ऊँचा आसमान,
पैरो की चोट से धरती में छेद ये कर दे, गर आ जाये अपने में दुनिया में नया रंग भर दे”

युवा वर्ग वृद्धि व परिवर्तन के द्योतक के रूप में विकास का महत्वपूर्ण स्त्रोत व उद्देश भी है । युवाओं को किसी भी समाज में आशा, कल्पना उत्साह, उर्जा, आदर्श व धमनियों में उफनते रक्त का पर्याय माना जाता है । भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का गौरवमयी इतिहास युवा अभिव्यक्ति के सुनहरे वृतान्तों से भरा पड़ा है । यह विभिन्न स्वरूपों में, युवा दिलों की आदर्शवादिता ही थी जिसने समूचे राष्ट्र को आजादी का प्यासा बना दिया । तब से आज तक युवाओं के आकार व अनुपात में गुणात्मक वृद्धि हुई है । युवा वर्ग के लिए बाल्यकाल से युवाकाल तक के सफर को निर्विधन व क्षमतादायी सुनिश्चित करने हेतु उत्तरोत्तर सरकारों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, दक्षता विकास व मनोरंजक खेल सुविधाओं में सुधार का निरन्तर प्रयास किया है । लेकिन युवाओं से सम्बन्धित क्षेत्रों के लिए समन्वित प्रयास, एक लम्बे समय से संजोया स्वप्न है

स्वतन्त्रता प्राप्ति से राष्ट्रीय विकास में युवाओं की महत्वपर्ण भूमिका को स्वीकारा गया है । राष्ट्र निर्माण में युवाओं की सक्रिय प्रतिभगिता व व्यक्तित्व विकास योजनाओं पर विषेश बल दिया गया । आठवें दशक के प्रारम्भ में राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर युवा सेवाओं का प्रादर्भाव हुआ । सातवीं पंचवर्शीय योजना के राष्ट्रीय युवा नीति तथा 1992 में कार्य योजना के निर्माण ने युवा मुद्दों को सम्मुख पंक्ति में ला खड़ा किया । राष्ट्रीय स्तर पर नौंवा दशक युवा क्षेत्रों में युवाओं की दावेदारी को स्वीकारा गया । राज्य युवा नीति में दसवीं पंचवर्शीय योजना की परिकल्पना को अपनाया गया है । मुख्यतः युवा सशक्तिकरण, बेरोजगारी उन्मूलन, लिंग समानता, युवा स्वास्थ्य, उत्तरदायी जीवन निर्वहन व योजना एंव विकास में युवाओं को केन्द्र बिन्दु बनाए जाने के मील पत्थरों को प्राप्त करना है । राज्य खेल नीति के माध्यम से भी सम्बद्ध क्षेत्रों में युवा महत्व के मुद्दों को परोक्षतः सुलझाने का प्रयास किया गया है । राज्य युवा नीति को लोकतन्त्र, धर्म निरपेक्षता, आत्मनिर्भता, राष्ट्रीय विकास तथा राष्ट्र की एकता के महत्वपूर्ण सिद्वान्तों पर आधारित किया गया है । समानता, भागीदारी व पहुंच, युवा विकास के प्रयासों व युवाओं के साथ कार्य करने में, बीज मन्त्र रहेगें ।

विकास प्रक्रिया में युवा महत्वपर्ण कड़ी है । समक्ष व सकारात्मक सोच वाले युवा ही अपनी क्षमताओं को विकसित कर राष्ट्रीय विकास में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं । राज्य युवा नीति में ऐसे दिशा-निर्देश निहित हैं जो युवा सम्बद्ध मुद्दों पर सम्भावित कार्य योजना को विकसित करने में सहायक होगें । यह दिशा निर्देश राष्ट्रीय एवं व्यैक्त्कि स्तर सहित समस्त युवा मुद्दों में युवाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में सुविधाजनक होगें । युवा, समाज, सरकार तथा गैर-सरकारी संगठनों के संयुक्त प्रयास अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण में सहायक होगें । युवा काल परिवर्तन, ज्ञान व निपुणता अर्जित करने, दृश्टिकोण व व्यवहार के संवारने व आशा का द्योतक है । समाज युवा वर्ग की अनौपचारिक शिक्षा स्थली है, फलतः युवा महत्व के क्षे़त्र विस्तृत व व्यापक है, किसी भी मुद्दे को टटोलें युवा हित अथवा अहित किसी न किसी रूप में विद्यमान होगा ।

सामान्यतः युवा मुद्दों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता हैः संरचनात्मक पथमार्ग एवं वैयक्तिक संरचनात्म्क पथमार्ग, वाल्यकाल से युवाकाल तक के बदलाव /विकास तथा निर्भरता से स्वावलम्बन तक के सफर में सहायक विशय है जबकि वैयक्तिक मुद्दे नागरिकता, निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी व राष्ट्र की मुख्यधारा में सक्रिय प्रतिभागिता से सम्बन्धित है । युवा वर्ग के सन्दर्भ में, शिक्षा एवं आर्थिक उत्पादक गतिविधि कर सकने की क्षमता भविष्य की तैयारी में दो महत्वपूर्ण मानक हैं । राज्य युवा नीति प्रत्येक युवा के उपयुक्त शिक्षा के अधिकार को मानती है जो शिक्षा युवा वर्ग को आर्थिक रूप से स्वावलम्बी व सामाजिक रूप से उपयोगी बनाने में सहायक बन सके । यथार्थ में अधिकांश के लिए स्कूली शिक्षा एक विलासिता है जबकि जीवन यापन के लिए रोजगार एक अनिवार्यता । वर्तमान विद्यमान शिक्षा प्रणाली के सम्मुख दो चुनौतियां हैं । प्रथम निःसन्देह, शिक्षा प्रणाली के रोजगार के प्रति प्रसांगिक होना व युवा वर्ग के लिए वयस्कता के बदलाव में उपयोगी होना है । ग्रामीण वर्ग, युवा महिला घुमन्तु, शरणार्थी, अल्पसंख्यक व शारीरिक एवं मानसिकता रूप से ग्रस्त युवाओं के लिए उपयुक्त एंव समान शिक्षा सुविधाऐं प्रदान करना भी सर्वोपरि है ।

राज्य स्तरीय युवा नीति का यह प्रयास होना चाहिए कि निर्णायक अवस्था मे युवाओं को अकुशल मजदूर सेना के बजाय शिक्षण एंव प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रोत्साहित किया जाये । शिक्षा व तकनीकी शिक्षा विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पंचायती राज तथा स्थानीय निकायों एवं अन्य संस्थाओं के सहयोग से निम्न क्षेत्रों में बल दिया जायेगा । ज्ञान अर्जन प्रक्रिया आनन्ददायक होनी चाहिए व विद्यार्थियों, विषेशतः कम उम्र में, पर व्याप्त दबाव को न्यूनतम करने का प्रयास करना अति आवश्यक है । बाह्य ज्ञान अर्जन शिक्षा प्रक्रिया का अभिन्न अंग हो । शारीरिक शिक्षा,खेल एवं प्रसार शिक्षा को शिक्षा प्रणाली के अंग के रूप में लोकप्रिय किया जाऐ । युवा वर्ग को अपेक्षित अर्थिक चुनौतियों से जूझने में उपयुक्त रूप से सक्षम बनाने हेतु माध्यमिक व उपरी स्तर की शिक्षा के व्यावसायीकरण को सुनिश्चित किया जाना नितान्त आवश्यक है । व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों व अन्य औपचारिक तकनीकी शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों को रोजगार बाजार की मांगों के अनुरूप ढाला जाता रहेगा । संस्थान विषेश आधार पर शिक्षण संस्थानों व भावी नियोक्तओं के मध्य निकट सम्पर्क विकसित किए जाएंगें । कारीगर निपुणताओं के उन्नयन हेतु कार्यक्रम विकसित करने व गैर पारम्परिक नये व्यवसायेां में प्रशिक्षण सुविधओं को प्रारम्भ करने हेतु प्रयास । पर्यटन व जैविक प्रौद्योगिकी के प्रोत्साहन के क्षेत्र में आवश्यक सुविधाअें का विकास । युवाओं के लिए जीविकोपार्जन के क्षेत्र में उपयुक्त जानकारी के प्रसार हेतु कार्यक्रम तय किया जायेगा । अकुशल युवा वर्ग का शहरी बस्तियों व पड़ोसी राज्यों की ओर पलायन की चुनौति से निपुणता कार्यक्रमों को सशक्त बना कर निपटा जायेगा ।

"युवाओं तुम थाम लो, शिक्षा हुनर की मजबूत ऊँगली,
अपने कौशल को बढ़ाओं, आसमान की बनेगी सीढ़ी,
स्वावलंबन की दीक्षा से, हुनर रहेगा हरदम हाथ,
गर आत्मनिर्भर हाथ बनेगे, किस्मत भी देगी साथ"

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