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सैकड़ों पत्रकारों ने सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ संसद तक मार्च किया

नयी दिल्ली - देश के जाने-माने संपादक, पत्रकार, फोटो जर्नलिस्ट और संसद के दोनों सदनों को कवर करने वाले रिपोर्टर अपनी मांगों को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एकत्र हुए। उन्होंने संसद के स्थायी पास धारक पत्रकारों के संसद परिसर तथा दोनों सदनों की प्रेस गैलरी में प्रवेश की मांग को लेकर पुरजोर आवाज़ उठाई। प्रेस क्लब से बाहर जब सैकड़ों पत्रकार तख्तियां लिए आगे बढ़े तो संसद के गोल चक्कर के पास पुलिस ने नाकेबंदी कर दी जिससे पत्रकार संसद के गेट के पास नहीं जा सके। वहां पर पत्रकारों ने जमकर नारेबाजी की।

इससे पहले पत्रकारों ने प्रेस क्लब के भीतर एक सम्मेलन भी किया जिसमें प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, महासचिव विनय कुमार, भारतीय महिला प्रेस कोर की विनीता पांडेय, दिल्ली पत्रकार संघ के एस के पांडे, वरिष्ठ पत्रकार सतीश जैकब, राजदीप सरदेसाई, आशुतोष आदि ने सरकार के इस रवैये की तीखी आलोचना की और पत्रकारों का आंदोलन छेड़ने का आह्वान किया।

वक्ताओं का कहना था कि कोविड के नाम पर सरकार पत्रकारों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा रही है ताकि विपक्ष की खबरें न आयें और केवल सरकारी खबरें ही आयें। उनका कहना था कि पहले सरकार ने सेंट्रल हाल का पास बंद किया ताकि पत्रकार सांसदों-नेताओं से मिलकर सरकार विरोधी खबर न दे सकें। अब वे पत्रकारों को संसद में पहले की तरह प्रवेश नहीं दे रहे जबकि सांसद और संसद के कर्मचारी आ रहे हैं। एक तरफ तो सरकार ने सिनेमा हॉल, रेस्तरां, मॉल खोल दिये दूसरी तरफ पत्रकारों पर रोक लगा दी है। गिने-चुने पत्रकार कोरोना का टेस्ट कराकर जा रहे हैं तो सबको प्रवेश क्यों नहीं?

वक्ताओं का कहना था कि लोकसभा और राज्यसभा की दर्शक दीर्घा, राजनयिक दीर्घा और सभापति तथा अध्यक्ष की दीर्घाएँ खालीं हैं तो वहां पत्रकारों को बैठाया जा सकता है लेकिन सरकार की मंशा कुछ और है। सरकार ने पहले ही पीटीआइ और यूनआइ की सेवाएं बंद कर रखी हैं। उसे केवल सरकारी खबरें चाहिए। इसलिए पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगाई है। इतना ही नहीं प्रेस सूचना कार्यालय द्वारा पत्रकारों के कार्ड का नवीनीकरण नहीं हो रहा है। पत्रकारों का कहना था कि यह केवल संसद में प्रवेश की लड़ाई नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है क्योंकि बिना मीडिया के लोकतंत्र जिंदा नहीं रह सकता।

पत्रकारों ने सभा के अंत में एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें इस लड़ाई को अंजाम देने तक लड़ने की सबसे अपील की गई। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी आदि के बाद आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने किया पत्रकारों का समर्थन करते हुए राष्ट्रपति को लिखा पत्र।
० आशा पटेल ० 
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