०:शकुंतला मित्तल ०
नयी दिल्ली - अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की दिल्ली इकाई द्वारा गूगल मीट पर आॅनलाइन "जून काव्य महोत्सव" का आयोजन 'पर्यावरण' विषय पर किया गया। यह काव्य गोष्ठी विश्व मैत्री मंच की संस्थापिका संतोष श्रीवास्तव की अध्यक्षता में संपन्न हुई ।वरिष्ठ कवयित्री और गायिका अर्चना पाण्डेय के संयोजन और वंदना रानी दयाल के मोहक संचालन ने काव्य गोष्ठी को सफलता के शीर्ष पर पहुँचा दिया।
कार्यक्रम का आरंभ कार्यक्रम की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ,मुख्य अतिथि सुरेखा जैन तथा विशिष्ट अतिथि डॉ मुक्ता के स्वागत से हुआ।तत्पश्चात डाॅ.भावना शुक्ल ने माँ शारदे के समक्ष दीप प्रज्वलित किया तथा वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती वीणा अग्रवाल ने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना गा कर मंच को रससिक्त कर दिया।
इस काव्य गोष्ठी में पर्यावरण के महत्व को बताते हुए जिन प्रतिभागियों ने प्रकृति और पर्यावरण के विविध विषयों को अपनी काव्य प्रस्तुति से मंच पर रखा उनके नाम हैं- डाॅ.दुर्गा सिन्हा 'उदार' ,पुष्पा शर्मा "कुसुम",शकुंतला मित्तल सविता स्याल,वीणा अग्रवाल ,अंजू दुआ जैमिनी,नीलम दुग्गल "नरगिस",संतोष कुमारी 'संप्रीति',पुनीता सिंह ,राधा गोयल,चंचल पाहुजा,डॉ. शुभ्रा,पुष्पा सिन्हा ,कल्पना पांडेय डाॅ मुक्ता,सुरेखा जैन,शारदा मितल,डाॅ भावना शुक्ल,वंदना रानी दयाल,मोनिका आनंद काव्य प्रस्तुति की एक झलक देखिए
वृक्ष हैं जीवन का आधार
सुरक्षित रखें सकल परिवार
नए नित नूतन,पालव से
करें ये ,प्रकृति का श्रृंगार।।
(डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार’)
काश! हमने भी परिंदों से
जीने का हुनर सीख
सारे जहान को
अपना समझा होता
तो इंसान को
दु:ख व पीड़ा व त्रास का
दंश न झेलना पड़ता'
(डॉ• मुक्ता)
तुलसी के चौरे सा पूजा जो मुझको,
घर आंगन पर आंच आने ना दूंगी।
सांसों में भर दूंगी इतनी सच्चाई,
आपदा को आतंक मचाने ना दूंगी।।
(सुरेखा जैन )
चहुँदिशि छाये हरितिमा,
धरती का शृंगार।
उत्तम वृक्ष लगाइये,
पर्यावरण सुधार।।
(पुष्पाशर्मा"कुसुम")
प्रकृति हमसे कह रही
पर्यावरण दिया तुम्हे उपहार
पर तुमने इसे रौंद डाला
पड़ कर अज्ञानता और अहंकार।
(पुष्पा सिन्हा)
अगर बरसात ना होती तो पेड़ों को कौन धोता
अगर आंख ना होती तो दर्द में फिर कौन रोता
परमात्मा की बनाई हुई हर चीज विलक्षण है
अगर मृत्यु ना होती तो बुढ़ापे को कौन ढोता
(वीणा अग्रवाल)
तप्त धूप में चलते चलते, पड़े पाँव में छाले हैं।
छाँव कहीं भी नजर न आए, सारे वृक्ष काट डाले हैं।
पंखी सारे तड़प रहे हैं, कहाँ बनाएँ घरौंदा,
स्वार्थपूर्ति की खातिर, मानव ने प्रकृति को रौंदा?
(राधा गोयल, दिल्ली)
हे!मानव, यूँ न बन नादान
मैं प्रकृति,धाय माँ हूँ तुम्हारी
देती तुझको रोटी ,कपड़ा और मकान.....
(डाॅ.शुभ्रा)
नदियाँ , पर्वत, पेड़ हैं ,प्रकृति के उपहार।
दोहन इनका कर रहा, जन-जीवन दुश्वार।।
(शारदा मित्तल )
सांस लेने दो मुझे भी जीना चाहती हूं ।
दो घूंट ,स्वच्छ हवा, पानी पीना चाहती हूं।
(नीलम दुग्गल'नरगिस')
पेड़ पखेरू विकल है,
जलती हुई जमीन।
आज आदमी हो गया,
बिन पानी की मीन।।
(डॉ भावना शुक्ल)
बाग का बैंच
मैं बाग का बैंच हूं
हरी भरी घास और
फूलों के बीच
अपना अस्तित्व बनाते
हुए ....
(सविता स्याल )
अधखिली अधसुप्त डाली डोलने तब फ़िर लगी
संग में शीतल हवा जीवन में रंग भरने लगी।
(कल्पना पाण्डेय)
समय रहते चेत जाओ
पत्थरों तले पेड़ों को
अब और न कुचलाओ।
(डॉ अंजु दुआ जैमिनी)
ऐ घटा, ज़रा झूम के बरसो,"
धरा की यही पुकार है!
सजा दो लाल गुलाबी हरे फूल पौधों से मुझे
कि वही मेरा श्रृंगार है!
(वन्दना रानी दयाल)
कंक्रीट का जाल है,जंगल का रहा ना नाम
छाया अमंगल हर जगह,कुंठा बढ़ी तमाम।
(शकुंतला मित्तल)
आज हमने एक पौधा लगाया
उधर किसी ने सदियों पहले लगे
नीम, बरगद पीपल जैसे बुर्जुग
वृक्षों को काट डाला
छायादार घनें पेड़ों को
रिहायशी इमारत, मॉल,ऑफिस के लिए काट डाला।
कुदरत का कहर जारी रहेगा
जब तक मनुज का पर्यावरण का दुश्मन बना रहेगा
(पुनीता सिंह )
कभी भी वृक्ष मत काटो, मिले हरियालियाँ इनसे,
फिजाओं में घुले रंगत ,हसीं खुशहालियाँ इनसे।
(चंचल पाहुजा)
संपूर्ण धरा सुंदरतम बनाने को
प्रकृति ने अपनी छटा बिखेरी है
प्राकृतिक उपादनो .. के सहारे
हमारे ह्रदय पर छवि उकेरी है
(संतोष कुमारी संप्रीति)
लुत्फ़-ऐ-कुदरत तेरी हर नेमत का दावेदार भी मैं हूँ
अस्मत लूटी आबो-औ-हवा की वो अय्यार भी मैं हूँ
तुम्हारी साँसें ले कर काटा है गिरेबां तेरा मैंने अक्सर
शर्म से क्यों न मर जाऊं के तेरा गुनेहगार भी मैं हूँ।
(मोनिका आनंद)
आयोजन की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने बहुत सुन्दर कविता में विषय पर अपने भाव प्रकट किये.. इस बार पलाश के फूलने की चर्चा जंगल ने नहीं सुनी न कोयल कुहकने की न मंजरी महकने की हताश निराश जंगल खोज रहा है खुद को हैरान-परेशान कहीं वह रास्ता तो नहीं भटक गया यहां तो शहर घुस आया है
संतोष श्रीवास्तव ने अपने उद्बोधन में बताया कि बिहार के भागलपुर के पास धरहरा गांव में एक परंपरा है कि बेटी के जन्म के साथ ही बेटी का पिता आम के 10 पौधे लगाता है। आम से हुई आमदनी बेटी की शिक्षा और विवाह आदि पर खर्च होती है । इस परंपरा के उल्लेख से उन्होंने पेड़ लगाने के महत्व पर जोर दिया और जानकारी दी कि इस परंपरा को अमेरिकन फिल्मकार ने दुनिया के सामने लाने के लिए फिल्म निर्मित की है।
आयोजन की मुख्य अतिथि सुरेखा जैन ने और विशिष्ट अतिथि डॉ मुक्ता " ने सभी प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन करते हुए उन्हें काव्य प्रस्तुति की बधाई दी और स्वस्थ पर्यावरण के महत्व को बताते हुए सभी को वृक्ष लगाने का संकल्प लेने को कहा। आयोजन के अंत में शकुंतला मित्तल ने सभी अतिथि वृंद और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए सफल आयोजन की बधाई दी। आयोजन का मोहक,सुव्यवस्थित और कुशल संचालन वंदना रानी दयाल जी ने किया।
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