० संवाददाता द्वारा ०
गुरुग्राम -महिला काव्य मंच गुरुग्राम इकाई ने महिला काव्य मंच हरियाणा राज्य की वरिष्ठ उपाध्यक्षा इंदु राज निगम की अध्यक्षता में डिजिटल काव्य गोष्ठी का बेहतरीन आयोजन किया। गोष्ठी का शुभारम्भ गुरुग्राम इकाई की अध्यक्षा दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप' द्वारा माँ शारदे को माल्यार्पण व गुरुग्राम इकाई की उपाध्यक्षा रश्मि चिकारा द्वारा सुंदर आराधना के साथ किया गया। गोष्ठी के प्रारंभ में महिला काव्य मंच की राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्षा तथा हरियाणा राज्य की प्रभारी डॉ विनय गौर के दिवंगत पति की आत्मा की शांति के लिए लिए 2 मिनट का मौन रखा गया I गुरुग्राम इकाई की उपाध्यक्षा रश्मि चिकारा ने गोष्ठी का लाजवाब संचालन किया।
इस गोष्ठी में महिला काव्य मंच गुरुग्राम इकाई की महासचिव अंजू सिंह, वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्र निगम 'राज', वरिष्ठ साहित्यकारा आभा कुलश्रेष्ठ, प्रीति मिश्रा, शकुंतला मित्तल, सुशीला यादव, मोनिका शर्मा 'मणि', अर्चना सिन्हा, एकता कोचर रेलन, सुजीत कुमार व चांदनी केशरवानी ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई।आज की परिस्थिति को देखते हुए सभी साहित्यकारों ने अपनी मनमोहक रचनाओं से गोष्ठी में समा बांध दिया।
अंत में गुरुग्राम इकाई की अध्यक्षा दीपशिखा श्रीवास्तव'दीप' ने सभी साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए गोष्ठी का समापन किया।
कविता की पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार हैं-
इन्दु “राज" निगम-
फूलों को मुस्काने दो , कलियों को खिल जाने दो ।
आज सुहाने मौसम को , गीत ख़ुशी के गाने दो ।
दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप'-
जीवन का आधार है,
ईश्वर का उपहार है ।
जो हार कर अपनों को जिताता-
पिता ऐसा उम्मीदों का संसार है।।
रश्मि चिकारा-
इक पाती तेरे नाम लिखी है
सबसे छुपकर ये बात लिखी है,
इन नयनों के कोरों पर
आंसू की बरसात लिखी है||
अंजू सिंह-
हर झुकी नजर में करार हो जरूरी तो नहीं।
तुम्हें होगा तो हो मुझे प्यार हो जरूरी तो नहीं।।
आभा कुलश्रेष्ठ-
आग की लपटें बुझाता
कहीं तूफ़ां से टकराता
आदमी आज हैरान हैं
आदमी की जिंदगी संग्राम है।
प्रीति मिश्रा-
नयन नमी में भीगे, ख़्वाब लिए जो बैठा है!
इंसा सच्चा सच्चा है,पर आग लिए ये बैठा है... !!
राजेन्द्र निगम "राज"-
नहीं अमर होने का मन में पाला कोई भ्रम,
मिट्टी के गुल्लक जैसे हैं हम"!!
अर्चना सिन्हा-
मैं बलशाली हूँ, अधीर हूँ,
थम ना सकूँ बहता नीर हूँ।
शकुंतला मित्तल-
स्नेह भरा वात्सल्य घटा, घटे हैं जीवन मूल्य।
सिकुड़े वनों को देख कर समझें अपनी भूल।।
सुशीला यादव-
आओ हम तुम मिलकर सारे पर्यावरण बचाएंगे।
खूब घने हो जंगल अपने मिलकर वृक्ष लगाएंगे !!
मोनिका शर्मा "मणि"-
ज़रा सी भूल रिश्तों को निभाने में मैं कर बैठी।
ज़रा दिखती थी जैसी मैं ज़रा वैसी ही दिख बैठी।।
एकता कोचर रेलन-
मुझे मायके भेजने की सोच रहे तुम पिया!
पर पछताओगे जब रहना होगा अकेले मियाँ!!
चांदनी केशरवानी-
किस्मत का रोना क्यों रोना,
यह तो एक बहाना है,
तेरे हौसलों के आगे ,
इसे मुट्ठी में दब जाना है।
सुजीत कुमार-
ये कैसे ख्वाब इन आँखों में सजाए हमने,
अपनी पलकों पे ये पत्थर भी उठाए हमने।
मेरे जख्मों के खरीदार संगदिल थे बहुत-
अपनी नींदों से कई दाम चुकाए हमने।।
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