0 परिणीता सिन्हा 0
सज गया है बाजार, सज गया है आचार ।
वस्तुएं जो बन कर सँवर गई,
वस्तुएं जो प्रदर्शित करने को हो गई तैयार ।
वह करीने से, साफ सफोई से सजा दी जाएंगी ।
फिर उसके ऊपर कीमत अंकित की जाएगी ।
बिकने वाली वस्तु का भी होता है दो बाजार ।
एक होती है वस्तु नयी
और एक होती है पुरानी,
जिसे खरीदने में खरीदार की होती है मनमानी ।
वह लगाता है वही कीमत ,
जो उसने किसी की जानी ।
कभी कौड़ियों के दाम बिकती है ममता,
तो कभी महँगी बिक जाती है कोई वस्तु बेमानी ।
बाजार है एक क्रय विक्रय का संसार,
जिसमें हमेशा कम कीमत में बिकती है ,
कभी कोई वस्तु तो कभी कोई लाचार ।
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