रीवा. बाल मजदूर विरोधी दिवस के अवसर पर नारी चेतना मंच के द्वारा कोरोना काल में शारीरिक आर्थिक सामाजिक चुनौतियों से जूझते घर परिवार बच्चे और सरकार की भूमिका पर विषय पर एक अंतर्राज्यीय कॉल कांफ्रेंसिंग की गई जिसमें वरिष्ठ समाजसेविका वाणी मंजरी दास पटनायक भुवनेश्वर (उड़ीसा) , सरस्वती दुबे पटना (बिहार) , वीणा सिन्हा इलाहाबाद (उत्तरप्रदेश) , विभा जैन जयपुर (राजस्थान) , लीला पंवार इंदौर (मध्यप्रदेश) , शकुंतला सिंह शहडोल (मध्यप्रदेश) , सुशीला मिश्रा ग्राम पिपरा जिला रीवा एवं अजय खरे रीवा (मध्यप्रदेश) ने अपनी सक्रिय भागीदारी निभाते हुए अपने विचार रखे . वक्ताओं ने कहा कि कोरोना काल में स्कूल बंद होने एवं आर्थिक कारणों से बाल श्रम को काफी बढ़ावा मिला है . इसके कारण बच्चों के भविष्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है .
कॉल कांफ्रेंसिंग में अपनी बात रखते हुए वाणी मंजरी दास पटनायक ने कहा कि कोरोना काल की शुरुआत में आम आदमी की बुनियादी जरूरतों की परवाह किए बिना अचानक लगाए गए लॉकडाउन से सामान्य जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया . किसी भी कड़े से कड़े नियम में बुनियादी आवश्यकताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है . करोड़ों लोगों की आजीविका चली गई . शारीरिक आर्थिक सामाजिक और मानसिक रूप से लोग प्रभावित हुए . राज्य की प्रबंधन संबंधी विसंगतियों के चलते हुई बद इंतजामी से लोग परेशान हुए .
इसी कड़ी में विचार रखते हुए सरस्वती दुबे ने कहा कि कोरोना काल एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने है . सरकार अपने कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रही है . इस दौरान सरकारी कार्यक्रमों पर नौकरशाही पूरी तरह हावी रही है . कोरोना काल के दौरान बच्चों की सारी गतिविधियां प्रभावित हुई हैं . लंबे समय तक उनको घर में बांधकर नहीं रखा जा सकता है . बाहर जाने की बंदिश के चलते वे चिड़चिड़े भी हुए हैं . इस दौरान घरेलू हिंसा का शिकार भी बने हैं .
वीणा सिन्हा ने कहा कि कोरोना काल में कुछ समय बाद बाजार खुलने की व्यवस्था बना दी गई लेकिन स्कूल कॉलेज पूरी तरह से बंद हैं . छात्र-छात्राओं की पढ़ाई एवं रोजगार संबंधी व्यवस्था को लेकर सरकार का रवैया अत्यंत निराशाजनक और आपत्तिजनक है . पढ़ाई पूरी तरह बंद होने से बच्चों की उसके प्रति अभिरुचि खत्म हुई है . सरकार को यदि बच्चों के भविष्य की चिंता होती तो कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए स्कूल कालेज खोले जा सकते थे . कोरोना काल में सबसे ज्यादा बुरा हाल महिलाओं और बच्चों का है .
विभा जैन ने कहा कि कोरोना काल के मनमाने लॉकडाउन से लोग अभी तक नहीं उबर पाए हैं . लोगों की आर्थिक सामाजिक ऐसी चीज बुरी तरह खराब हुई है . खानपान सही तरीके से उपलब्ध नहीं होने से लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर हुआ है . कोरोना के नाम पर जनजीवन भयाक्रांत चल रहा है . बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है . ऑनलाइन पढ़ाई का कोई भविष्य नहीं है . वह बेहद खर्चीली और उबाऊ भी है . छात्र-छात्राएं चाहते हैं कि कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए स्कूल कॉलेज खोले जाएं . पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं कि सही आपूर्ति न होने से प्रधानमंत्री शौचालय योजना भी प्रभावी नहीं बन पाई है . पानी के अभाव में अधिकांश घरेलू शौचालय काम नहीं कर रहे हैं या फिर चारों तरफ गंदगी मची हुई है .
लीला पंवार ने कहा कि बच्चों का टीकाकरण कराते हुए स्कूल कॉलेज जल्दी से जल्दी खोला जाना चाहिए . स्कूलों में अनुशासन रहता है जिसके चलते बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहेगा . उन्होंने कहा कि बच्चों के हाथ में मोबाइल नहीं किताब कलम और कागज होना चाहिए . स्कूलों में पर्याप्त जगह है इसलिए वहां बच्चों की भीड़ का कोई सवाल ही नहीं उठता है . सरकार को बाजार की भीड़ की चिंता होना चाहिए . कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए स्कूल कॉलेज चलाए जा सकते हैं . स्कूल कॉलेज खोलने में अब और विलंब नहीं किया जाना चाहिए . कोरोना के नाम पर आखिरकार लोगों को कब तक घर में बंद रखा जाएगा . घर बंदी कोरोनावायरस का इलाज नहीं है . 2 मीटर दूरी मॉस्क जरूरी का पालन कराया जाए .
शकुंतला सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कोरोना काल में सबसे अधिक तनाव में बच्चे हैं . अधिकांश घरों की माली हालत काफी खराब हो गई है जिसके चलते बच्चों की आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पा रही हैं . बच्चों की पढ़ाई का माहौल भी खराब हो चुका है . यदि घर में ही पढ़ाई संभव होती तो बच्चों को स्कूल में क्यों भर्ती कराया जाता है . बच्चों की पढ़ाई में किसी तरह का विभेदीकरण नहीं किया जाना चाहिए . सरकार को स्कूल कॉलेज खोलने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए . बच्चे इधर उधर घूमते हैं , बेहतर है कि स्कूल कॉलेज में जाने पर पढ़ाई करेंगे .
सुशीला मिश्रा ने कहा कि कोरोना काल में ग्रामीण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है . गांव के जो लोग शहरों में रोजगार कर रहे थे , काम बंद हो जाने से उनकी आजीविका चली गई है . ऐसे सारे लोग गांव में काफी खराब हालत में रहने को मजबूर हैं . इनका नाम गरीबी रेखा में भी नहीं जोड़ा जा सका है . ग्रामीण क्षेत्रों के सभी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है . जिन घरों में सरकारी नौकरी नहीं है वहां खर्च चलाना बेहद कठिन हो गया है . गांव में मजदूरी भी नहीं मिल रही है क्योंकि लोगों के पास उन्हें देने के लिए पैसे भी नहीं है .
समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने कहा कि कोरोना काल में जीवन मूल्यों का बहुत तेजी से क्षरण हुआ है . कोरोना महामारी के नाम पर फैलाया गया मृत्यु भय समाज के लिए बहुत अहितकारी साबित हुआ है . लोगों के बीच सामाजिक दूरी बहुत तेजी से बढ़ी है . कोरोना मरीजों के प्रति सेवाभाव की जगह घृणा का माहौल अत्यंत आपत्तिजनक चिंताजनक है . आपदा को अवसर बनाकर जनसाधारण को खूब लूटा गया है . बाजार के दाम आसमान छू रहे हैं . महिलाओं के लिए घर चलाना एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने है . बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं . नई पीढ़ी के लिए रोजगार का कोई सृजन नहीं हो पा रहा है . शराब की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है . इस दौरान अधिकांश घरों में कोई रोजगार नहीं होने से बच्चे भी पैदल और साइकिलों पर साग सब्जी लेकर बेचने को मजबूर हैं .
भुखमरी के हालात में बाल श्रम को काफी बढ़ावा मिला है . कई स्थानों पर बच्चों को भीख मांगते हुए भी देखा जा रहा है . स्कूल कॉलेज व्यवस्था बनाकर खोले जा सकते हैं . बुरी संगत के चलते बच्चों में आवारागर्दी का माहौल पनप रहा है . नशे की आदतें भी देखने को मिल रही हैं . बच्चे इधर उधर बाजार जा रहे हैं लेकिन स्कूल कॉलेज के नाम पर उन्हें रोक दिया गया है . सरकार को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए स्कूल कॉलेज खोलने की शुरुआत करना चाहिए . बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो , इस संबंध में काफी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है .
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