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अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा आॅनलाइन "जून काव्य महोत्सव"

० संवाददाता द्वारा ० 

भोपाल -अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा आॅनलाइन "जून काव्य महोत्सव" का आयोजन  पर्यावरण विषय पर किया गया. विश्व मैत्री मंच की संस्थापिका,अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव  ने कोरोना की दूसरी वेव से दिवंगत हुए साहित्यकारों को यह गोष्ठी समर्पित की कार्यक्रम का आरंभ कार्यक्रम की अध्यक्ष ज्योति गजभिये तथा विशिष्ट अतिथि डॉ मंजुला श्रीवास्तव के स्वागत से हुआ. तत्पश्चात ईरा पंत ने सुमधुर स्वर में  इस संकट काल से सभी को उबारने की प्रार्थना करते हुए सरस्वती वंदना गाई. 

संतोष श्रीवास्तव ने स्वागत भाषण में पर्यावरण विषय का महत्व बताते हुए सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम को गति प्रदान की. कार्यक्रम में  अमर त्रिपाठी, विद्या सिंह,साधना वैद्य,डॉ.सुषमा सिंह, डा. साधना तोमर,संतोष झांझी, प्यारेलाल साहू,मनवीन कौर,निहाल चन्द्र शिवहरे,शोभना श्याम,मधूलिका सक्सेना,विद्या गुप्ता दुर्ग,डॉ मंजुला पांडेय, डॉ. मीता माथुर,शेफालिका श्रीवास्तव,पारमिता षड़गीं,राजेन्द्र श्रीवास्तव,लता तेजेश्वर रेणुका,अनिता मंदिलवार सपना,रेखा कक्कड़ ने पर्यावरण विषय पर स्वरचित रचना, कविता, गीत, नवगीत, दोहे, हाइकु  आदि का पाठ किया.

अमर त्रिप ने अपनी कविता में समुद्र की व्यथा कही... 

महुआ के पेड़ से शुरू हुआ बचपन

समुद्र के किनारे आकर थम सा गया हैं।

समुद्र की चिग्घाड़ सुनकर

नही होता द्रवित

मेरा मन 

बहरा हो चुका हूं मै भी

संतोष श्रीवास्तव ने बहुत सुन्दर कविता में विषय पर अपने भाव प्रकट किये.. 

इस बार पलाश के फूलने की चर्चा 

जंगल ने नहीं सुनी

न कोयल कुहकने की 

न मंजरी महकने की हताश निराश जंगल खोज रहा है 

खुद को हैरान-परेशान कहीं वह रास्ता तो नहीं भटक गया 

यहां तो शहर घुस आया है

मनवीर कौर ने वृक्षों का महत्व बताते हुए कहा.. 

पर्यावरण 

वृक्ष ने कहा, सुनो पवन

तुम अब स्वतन्त्र हो

नहीं रोकेंगे तुम्हें मेरे परिवार जन

कट चुके हैं सभी, नहीं रहे जीवंत।साधना वैद्य की पर्यावरण चिंतन में

दूरियाँ बढीं 

तो वाहन भी बढे 

धुंआ भी बढ़ा 

घुला ज़हर 

घुटने लगी साँस

पारा भी चढ़ा 

चन्दा सूरज 

धुएं की चादर में 

धुँधले दिखें 

मानवी भूलें 

गंभीर खतरों की 

कहानी लिखें

अनिता मंदिलवार सपना की कविता की पंक्तियों में

वृक्ष हैं जीवन का आधार 

यही है धरती का श्रृंगार 

शोभना श्याम ने विषय पर शानदार दोहे कहे.. 

धरा द्रौपदी की तरह,भर आँखों मे नीर।।

कातर होकर मांगती, हरियाली का चीर।।

-मधूलिका सक्सेना ने प्रदूषण पर कहा .. 

अब बंद करो पॉलीथिन को,

इज्ज़त दो फिर से थैले को।

राजेंद्र श्रीवास्तव जी का मार्मिक गीत जिसके बोल रहे.. 

पूछ रही सूखी नदिया से, प्यासी मछली रानी

कहाँ हुई गुम रेत तुम्हारी, कहाँ हुआ गुम पानी

शेफालिका श्रीवास्तव की कविता.. 

पहाड़ों कर पर विस्फोटक वार,

डाला पृथ्वी पर इतना भार !

प्रकृति से हम करें खिलवाड़ ,

रो रही प्रकृति जार जार !!

डॉ. मीता माथुर ने विषय पर इन पंक्तियों में  अपने भाव प्रकट किये.. 

दोष न दो प्रकृति को, दो उसे सम्मान।

करो न और उसका अब अपमान।

पर्यावरण को शुद्ध बना दो

प्रकृति का वही रूप लौटा दो।

पारमिता षड़गीं ने गहन संवेदना से कविता कही.

पृथ्वी की कोक में

अंकुरित भ्रुण को 

बचाने के लिए

क्या‌ कोई अवतार 

को आना पड़ेगा

हमारे बुद्धि , विवेक 

कैसी निंद में है की जो

खुलने के नाम ही नहीं लेती

वहीं डॉ मंजुला पाण्डेय जी ने अपनी लम्बी कविता कही जिसका एक अंश.. 

मैं खोदती हूं मिट्टी 

बोती हूं बीज 

अंकुरित हो उठता है 

नन्हे शिशु सम

प्यारा सा नाजुक सा 

एक नर्म मुलायम पौधा 

लता तेजेश्वर रेणुका की कविता की पंक्तियों में पर्यावरण के प्रति चिंता व्याप्त रही.     

अब न दिखती चिड़िया रानी

नहीं अब वह बात नूरानी

अब तालाब में नहीं स्वच्छ पानी

जहां खेलती थी मछली रानी

पोखर जलाशय सूख रहे हैं

पीड़ा उसकी जीव भोग रहे हैं।

रेखा कक्कड़ की कविता में पर्यावरण का उल्लेख इस तरह हुआ.. 

केवल एक पैर पर सदा से  खड़ा वृक्ष देता है शीतल छाया 

नहीं मांगता मोल फलों का नित नित पूंजी लुटाता

धूप सहता,वर्षा सहता,उफ न करता।सबको बिठाता अपनी घनी छांव में 

किसी मां से कम नहीं, प्रेम सबके लिए।

निहाल चन्द्र शिवहरे की कविता.. 

झर झर   बहने लगे   झरने 

सुरभित मुखरित पर्यावरण

वसुधा   इतरा  रही    पहन 

नव    हरियाली     आवरण 

विद्या गुप्ता दुर्ग से जुड़ी उनकी कविता की कुछ पंक्तियाँ.. 

गीदड़ की मौत मारा गया जंगल का वनराज

टंग गया तुम्हारे दीवानखानों की दीवारों पर जंगल का जांबाज तुम लौटा …

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