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दिव्यांग विमर्श पर स्वावलंबन शब्दसार की काव्य गोष्ठी आयोजित

० संवाददाता द्वारा ० 

गुरुग्राम , स्वावलंबन ट्रस्ट’ के साहित्यिक प्रकोष्ठ, स्वावलंबन शब्द-सार  द्वारा विकलांग-विमर्श विषय पर ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर २४ रचनाकारों के प्रेरणादायक व मर्मस्पर्शी काव्य पाठ ने मंत्र मुग्ध कर दिया। दिव्यांगता केंद्रित इस गोष्ठी का शुभारम्भ स्वावलंबन शब्द-सार की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती परिणीता सिन्हा ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। श्रीमती चंचल ढींगरा जी ने माँ शारदे का वंदन-गान किया | 

राष्ट्रीय सह-संयोजिका, भावना सक्सैना ने स्वागत संबोधन करते हुए कहा कि समाज में आवश्यकता विकलांगों के प्रति सहजता और समदर्शिता की है, अपना हाथ बढ़ाकर अपने आसपास के विकलांजनों का जीवन सहज बनने का प्रयास करने की है। कवि व लेखक का दायित्व है कि वह समाज को प्रेरित करें कि अपने आसपास के विकलांगजनों की ओर हाथ बढ़ाएँ और उनके जीवन को सहज बनाने में सहयोग दें।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मउ के अभिषेक पांडे, मुख्य अतिथि के रूप में  गौरी सेन और कार्यक्रम अध्यक्ष  एस जी एस सिसोदिया रहे। स्वावलंबन ट्रस्ट की अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव व स्वावलंबन ट्रस्ट के महामंत्री राघवेंद्र मिश्रा की उपस्थिति में हुए रचना पाठ ने सभी को निरंतर बांधे रखा।

 विशिष्ट अतिथि अभिषेक पांडे ने अपने साथ हुई दुर्घटना का विस्तार से वर्णन  किया और  सभी को बताया कि किस तरह वह पीड़ा व बाधाओं से जूझते रहे। अभिषेक का कहना है कि, इस संघर्ष के दौरान उन्हें एहसास हुआ कि यदि वह जीवित बचे हैं तो किसी खास मकसद के लिए, और तभी से उन्होंने समाज सेवा को अपना ध्येय बना लिया और कोविड काल मे अपने बिस्तर पर रहकर ही कई लोगों की सहायता की। 

मुख्य अतिथि श्रीमती गौरी सेन ने कहा कि असली समस्या उन लोगों की होती है जो दुर्घटनावश विकलांग हो जाते हैं। उन्होंने अभिषेक सहित ऐसे सभी लोगों से हौसला बनाये रखने की अपील की और आग्रह किया कि इस प्रकार के कार्यक्रमों को  यूट्यूब चैनल पर प्रसारित होना चाहिए।  गौरी सेन जी ने विकलांगों पर केंद्रित काव्य संग्रह प्रकाशित करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा विकलांग व्यक्तियों को भी परस्पर सहयोग करना चाहिए।

 एस जी एस सिसोदिया का कहना था कि उनके कोई भी अंग दिव्य नहीं होते अतः उनके लिए दिव्यांग संबोधऩ उचित नहीं है। उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें दिव्यांग समझ कर नहीं सामान्य व्यक्ति समझकर सुना जाए। उनका कहना था कि विकलांग व्यक्ति भी सभी कार्य करता है, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें विकलांगों ने नाम न कमाया हो, इसलिए उन्हें अलग नहीं समझना चाहिए। उनकी कविता की पंक्तियों ने सभी की आंखें नम कर दीं -हमें लाचार कहते हैं ज़माने के सारे लोग, ये बदला कब का लेते हैं , ज़माने के सारे लोग, क्या ये पूर्ण हैं सारे जो हमे अक्षम बताते हैं, बड़े नादान हैं यारों ये ज़माने के सारे लोग।

स्वावलम्बन ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव का कहना था कि विकलांगजन हम सभी के लिए प्रेरणा है हमें जिजीविषा का संघर्ष का पाठ पढ़ाते हैं। हमारे जीवन में साहित्य बदलाव की कड़ी है। स्वावलम्बन ट्रस्ट के महामंत्री राघवेंद्र मिश्र ने स्वावलम्बन ट्रस्ट के साहित्यिक प्रकोष्ठ स्वावलम्बन शब्द सार के कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए, इस महत्वपूर्ण विषय के चयन पर बधाई दी।

इस विशिष्ट विषय पर हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक डॉ. मुक्ता, वरिष्ठ कवयित्री शकुंतला मित्तल, सुषमा भंडारी, लता अग्रवाल ,मोना सहाय, सीमा सिंह, स्वीटी सिंघल, निवेदिता सिन्हा, श्रुतिकृति अग्रवाल, चंचल ढींगरा, अभिलाषा विनय, शालिनी तनेजा, रचना निर्मल आदि की गरिमामय उपस्थिति ने कार्यक्रम को भव्यता प्रदान की। कार्यक्रम का सुचारू संचालन कवयित्री चंचल हरेन्द्र वशिष्ट (दिल्ली प्रांत सह - संयोजिका) और उत्तर प्रदेश प्रांत की सह-संयोजिका मोना सहाय ने किया। 

गोष्ठी के अंत में राष्ट्रीय संयोजिका परिणीता सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। अध्यक्षीय संबोधन में श्री सिसोदिया ने सभी के काव्य-पाठ की सराहना की और हृदयतल से आभार प्रकट करते हुए स्वावलंबन शब्दसार परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना की। सभी कलमकारों ने विकलांगता की पीड़ा का मर्मस्पर्शी चित्रण किया और उनकी शक्ति को भी बखूबी उकेरा जिनमे से कुछ अंश यूँ हैं -


माना तन कमजोर है,मन से कब कमजोर।                                                                                                 अपनी हिम्मत का परचम, लहराता चहुं ओर।।                       -                                                                   सरिता गुप्ता


सहसा यूँ लगने लगा कि मेरा कोश

मेरा शब्दकोश हो गया बिल्कुल रिक्त

न जाने कैसे और क्यूँ हो गई निशब्द

-मोना सहाय, नोयडा


डुगडुगी ले किस्सागो आया लेकर नई कहानी

बरगद के नीचे आ बैठो छोटे बड़े सब परानी

-श्रुत कीर्ति अग्रवाल, बिहार


हाथों से बोलते और आँखों से सुनते हैं

सभी की तरह हम भी एक सपना बुनते हैं

मन के भावों को शब्दों में नहीं कह पाते बस

अपने अंतर्मन में इस दर्द की कहानी गुनते हैं।

-चंचल हरेंद्र वशिष्ट, नई दिल्ली


जिसके पैर नाप लेते थे 

          मैदान कोई केवल क्षण में

जीवन उसका सिमट गया 

   बस दो पहियों की एक कुर्सी में

-शालिनी तनेजा, दिल्ली


नर मन को ! करो न उदास

हृदय में बनाये रखो उल्लास,

जरा सीखो! कुछ उनसे

जिनके इरादे कभी न डिगते।

-अंशिका श्रीवास्तव, जौनपुर उत्तर प्रदेश

               

विश्व इतिहास का नियंता मानव

बन रहा आज आत्म हंता मानव

-पूनम श्रीवास्तव 


दिव्य अंगों से पूर्ण हूँ मैं

कैसे कह दूँ अपूर्ण हूँ मैं

मुझमे नहीं दिखता है, मुझको, कोई दोष 

मेरे माता_पिता को भी, नहीं है कोई रोष 

-सुषमा भंडारी, दिल्ली


दिखे जब कोई सहारे को खड़ा

हाथ एक तुम अपना बढ़ाए रखना

-भावना सक्सैना, फ़रीदाबाद 


तन से हैं  दिव्यांग ,पर मन से नहीं। 

इनके बुलंद हौंसलों का अंत नहीं ।

विश्वास अटल रख अपने इरादों पर।।

कुछ भी असंभव  इनके लिए नहीं। 

-शकुंतला मित्तल, गुरुग्राम 


माना हाथ बढ़ाती नही

माना पैर अपने चलाती नहीं

मन की बात बताती नहीं

फिर भी परी तो है न वो मेरी

-रचना निर्मल, दिल्ली


इंद्रियां अंगों की अभिव्यक्ति में

दिव्यता का प्रभाव हो 

अलौकिक व्यक्तित्व, अलग पहचान 

ये है दिव्यांग

-सीमा सिंह, ग़ाज़ियाबाद 


ख़्वाबों की उड़ान भरते हैं

हौसलों से इतिहास रचते हैं

कमी जो है उसकी कसक दबा

बदल देते हैं किस्मत का लिखा

-रीना सिन्हा, बिहार


सीख लो दिव्यांग से जो, कर्म पोथी बाँचते, 

अग्रसर हो कर्म पथ पर ,पाठ श्रम का जाँचते।।

-चंचल पाहुजा, दिल्ली


विश्वास की बैसाखी के सहारे खुद ही खड़ी हुई

जहाँ हूँ, जितनी भी हूँ, अपने दम से हूँ 

थामी नहीं ऊंगलियाँ किसी की मैंने।

-डॉ लता अग्रवाल


जो बिन बोली, बोली समझ जाते । 

जो बिन दृष्टि, अर्न्तदृष्टि पाते । 

जो बिन पाँव, घूमे सपनों के गाँव । 

-परिणीता सिन्हा, गुरुग्राम


माँ तो कहती है ईश्वर का अनमोल तोहफ़ा हूँ मैं,

हाँ आप सबसे अलग हूँ सबसे अनोखा हूँ मैं।

-स्वीटी सिंघल ‘सखी’, बेंगलुरु कर्नाटक


ईश्वर की बेमिशाल रचना इंसान

करता है वो कॊशिश पूरी संरचना बनाने में

पर कभी भूलवश रह जाती कुछ कमी

-निवेदिता सिन्हा, बिहार


हादसे घटित हो जाते सहसा/ऐ मन! 

कभी निराश न होना।

यह समां सदा रहेगा नहीं/

अपना आपा कभी न खोना।।

-डॉ मुक्ता, गुरुग्राम 


कंधे से कंधा मिला तन कर चलेगें आज

रुढिवादी सोच की बदलेगें हम सुर ताल

-चंचल ढींगरा, गुरुग्राम


ना जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है 

परम्पराओं के नाम पर 

हम अपनी बेटियों को 

कहीं ना कहीं दब्बू बना रहे हैं। 

-जूली सहाय, झारखंड


अपने मनोबल और साहस से

विकलांगता स्वीकार करता हूं

मैं प्रतिभाशाली ससक्त हूं बहुत 

इतिहास भी बदल सकता हूं।।

-प्रतिभा दुबे, ग्वालियर मध्य प्रदेश


मुझे दिव्यांग मत समझो, नहीं तुमसे फरक हूँ मैं।

मेरे भी स्वप्न सपनीले, सुबह जैसी महक हूँ मैं।।

-अभिलाषा विनय, नोयडा


मानसिक बल से वक्त की 

दी कमी को जीत लेगा।

-सुनीता चढ्ढा, दिल्ली

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