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कविता //समय

डॉ० मुक्ता ० 

समय कहीं ठहरता नहीं

नदी की भांति निरंतर

प्रवाहमय व गतिशील है

और परिवर्तन ही जीवन है

रात्रि के पश्चात् दिन 

अमावस के पश्चात् पूनम

दु:ख के पश्चात् फ़कत

सुख का आना निश्चित है

क्योंकि यह एक सिक्के के

दो पहलू हैं,

इनका चोली-दामन का साथ है

दुनिया एक रंगमंच है

जहां सबको अपना क़िरदार

अदा कर चले जाना है

यह एक मुसाफिरख़ाना है

जहां चंद लम्हे गुज़ार 

सबको रुख़्सत हो जाना है


हास्य व रूदन की जनक हैं 

परिस्थितियां...जो मन:स्थिति के

अनुसार निरंतर बदलती रहती

यह हास्य व रुदन की जनक हैं

निर्माण व विनाश का क्रम

सृष्टि में निरंतर चल रहा

जीवन व मृत्यु प्रकृति का

अकाट्य व शाश्वत् सत्य है

जो इस जहान में आया है

उसका जाना निश्चित् है

क्योंकि यहां किसी का

सदा के लिए स्थिर रहना

सर्वथा अनिश्चित् है

नामुमक़िन है

इसलिए ऐ भ्रमित मानव!

अंतर्मन में झांक और

अहं को त्याग कर प्रभु से

लौ लगा….यह जीते जी

मुक्ति पाने का सर्वोत्तम मार्ग है

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