0 परिणीता सिन्हा 0
अब हथेली पर बैठी है जिंदगी ,
अब एक पहेली बन गई है जिंदगी ।
कब और कब तक रहेगी ये जिंदगी ।
एक बंद किताब में सिमट गई है जिंदगी ।
चंद लम्हे ही सिमटे थे
और दूसरी पार हो गई है जिंदगी ।
कुछ गीत अधूरे थे
और वेवक्त पूरी हो गई जिंदगी ।
कितने ख्वाब पल रहे थे
और हकीकत में बदल गई जिंदगी ।
कभी रंगों से खेलती थी
और आज सफेदी में सिमट गई जिंदगी |
काँधे भी मय्यसर नहीं
और पॉलीपैक में बँध गई जिंदगी ।
जितनी मिली हँस कर गुजार लो,
और बड़ी अनमोल है ये जिंदगी ।
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