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संकर बीज की जगह पारंपरिक बीज से उत्तम किस्म की सब्जियों व फलों का उत्पादन किया जा सकता है

० अशोक चतुर्वेदी ० 

जयपुर  "राजस्थान एसोसिएशन",यूनाइटेड किंगडम, लन्दन  के तत्वावधान में मिशन किसान वैज्ञानिक परिवार द्वारा  "मिशन किसान वैज्ञानिक" के संस्थापक डॉ महेंद्र मधुप के नेतृत्व में एक वेबीनार का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के किसान  वैज्ञानिकों, कृषि अन्वेषकों एवं कृषि शिक्षा के क्षेत्र से संबंद्ध विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस वेबीनार का संचालन कुलदीप शेखावत द्वारा किया गया


सर्वप्रथम कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति नरेंद्र सिंह राठौर द्वारा अपने संभाषण में बताया गया की शिक्षा के क्षेत्र में कृषि विश्वविद्यालयों की क्या भूमिका है और वहां किस तरीके का काम हो रहा है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कृषि के क्षेत्र में कौशल विकास तथा विद्यार्थियों कृषकों तथा कृषि उत्पाद उद्यमियों के बीच आपसी तालमेल के बारे में भी शिक्षा दी जा रही है। इसके द्वारा इन विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त युवकों को कृषि के क्षेत्र में उत्तरोत्तर तरक्की करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने यह भी बताया की इसके द्वारा भारत सरकार के लक्ष्य "कृषक की आमदनी दुगनी हो" को प्राप्त करने में भी सहायता मिलेगी।

 राठौर के पश्चात्  राजस्थान पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर विष्णु शर्मा ने अपने क्षेत्र विशेष के बारे में चर्चा की। उनका कहना था कि आज कृषि क्षेत्र में पशु चिकित्सा की शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण हो गई है और इसीलिए पशु चिकित्सा विज्ञान को कृषि संकाय से पृथक संकाय बनाया गया है। उनका मानना था की पशु चिकित्सा शिक्षा का इस क्षेत्र में और देश के विकास में अपना अलग योगदान है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया की पशु उत्पाद में वृद्धि की आज देश में अपार संभावनाएं हैं ।

 डॉक्टर विष्णु शर्मा के बाद पद्मश्री सुंडा राम वर्मा, जो एक किसान  वैज्ञानिक हैं, ने अपनी बात रखी। उन्होंने जल संवर्धन क्षेत्र में अपने अनुभव साझा किए और अपने अनुसंधान के बारे  में जानकारी दी। उनका कहना था की भूमि की सतह पर उपलब्ध जल की उपयोगिता विभिन्न प्रयोगों द्वारा बढ़ाई जा सकती है और उससे कम जल वाले क्षेत्रों में भी अच्छी कृषि का लाभ लिया जा सकता है। उनके बाद पद्म जगदीश प्रसाद पारीक, जो स्वयं किसान  वैज्ञानिक हैं, ने अपने परंपरागत जैविक कृषि के प्रयोग की जानकारी देते हुए बताया कि किस प्रकार संकर बीज की जगह पारंपरिक बीज से उत्तम किस्म की सब्जियों व फलों का उत्पादन किया जा सकता है। साथ ही वाटर रिचार्ज के बारे में भी अपने अनुभव साझा किए और आह्वान किया कि सभी कृषकों को वाटर रिचार्ज का लाभ उठाना चाहिए।

 कैलाश चौधरी ने कृषि उत्पाद, प्रसंस्करण एवं विपणन के क्षेत्र में अपनी संघर्ष यात्रा का उल्लेख करते हुए अपने अनुभव बताए । उनका विश्वास था कि कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण व विपणन से अधिक लाभ उठाया जा सकता है । उनके बाद कृषि रत्न मोटाराम शर्मा ने अपने स्वयं द्वारा विकसित मशरूम की दुर्लभ प्रजातियों के उत्पादन और उनके औषधीय गुणों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने विभिन्न प्रजातियों की भी विस्तार से चर्चा की और महत्वपूर्ण जानकारी दी।

अंत में डॉ महेंद्र मधुप ने वेबीनार का समापन करते हुए अपने अनुभव साझा किए और इस वेबीनार की पृष्ठभूमि की चर्चा की । किसान वैज्ञानिकों और कृषि अन्वेषकों के क्षेत्र से अपने जुड़ाव के बारे में बताया और कृषि पत्रकारिता के क्षेत्र में तथा किसान वैज्ञानिकों को सार्वजनिक रूप से प्रकाश में लाने तथा उनके बारे में पूरे देश को अवगत कराने के अपने प्रयास के अनुभव साझा किए।

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