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अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री द्वारा दिवंगत साहित्यकारों को याद करते हुए शब्दाजंलि अर्पण तथा क्षितिज और भी हैं का ऑनलाइन लोकार्पण

० संवाददाता द्वारा ० 

भोपाल - इस विषम माहौल में चंद खुशियाँ बटोरने की कोशिश करते हुए क्षितिज और भी हैं (साझा लघुकथा संकलन ) का ऑन लाइन लोकार्पण संपन्न हुआ तथा दिवंगत साहित्यकारों को शब्दांजलि अर्पित की गयी। 
इस अवसर पर स्वागत वक्तव्य के साथ पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए संस्थापक-अध्यक्ष और संकलन की संपादक संतोष श्रीवास्तव ने कहा ” "क्षितिज और भी हैं "लघुकथा संकलन के प्रकाशन का जब मन में विचार आया तो लगा कि स्त्री विमर्श आंदोलन तेजी से उभरा। कुछ अच्छी रचनाएँ भी आयीं, लेकिन फिर यह एकपक्षीय होता चला गया और पुरुष हाशिये पर चले गये। ऐसा नहीं है कि सिर्फ स्त्रियाँ ही शोषित हैं।पुरुष भी शोषित होते रहे हैं। शक्तिशाली पुरुष और शक्तिशाली स्त्रियों ने कमजोर पुरुषों का शोषण किया है। अतः हमको इसके खिलाफ लघुकथा लिखनी है और मेरी इसी अपील का परिणाम है यह संग्रह।

मुख्य अतिथि पवन जैन ने कहा कि “लघुकथा वही है, जिसको लिखने का कोई उद्देश्य हो,कथ्य पूर्ण रूप से संप्रेषित हो एवं संदेश निहित हो। कथा में संवेदनाएँ हों तथा मानव मन की उथल-पुथल हो जो पाठक को सोचने पर विवश कर दे। संकलन में कुछ ऐसे ही विमर्श उठाती लघुकथाएँ संगृहीत हैं।“ प्रमुख वक्ता, वरिष्ठ लेखिका डॉ. नीरज सुधांशु शर्मा जो पुस्तक की प्रकाशक भी हैं, ने पुस्तक में संकलित लघुकथाओं की समीक्षा करते हुए पुस्तक की कथाओं के अनूठे विषय ‘पुरुषों द्वारा नारी विमर्श की और महिलाओं द्वारा पुरुष विमर्श की कथाएँ’ लिखे जाने की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए विषय को भलीभाँति निरुपित किया।

कार्यक्रम का संचालन बेहद रोचक ढंग से करते हुए मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी ने कहा-"दरअसल आदम-हव्वा से शुरू हुई ये कहानी अभी भी जारी है। इस कहानी में कई पेच हैं। कभी पुरुष को महिला से शिकायत है तो कभी महिला को पुरुष से। बस इन्ही शिकवे - शिकायतों ने ही तो एक विमर्श को जन्म दिया है। जब आप इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो जान जाएंगे की आखिर ये विमर्श क्या है।" सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना सुश्री महिमा श्रीवास्तव वर्मा ने प्रस्तुत की, तथा आभार प्रदर्शन सुश्री जाया केतकी ने किया। पुस्तक निर्माण की प्रक्रिया पर बोलते हुए डॉ० शुभ्रा श्रीवास्तव ने इस पुस्तक की दिल से प्रशंसा करते हुए इसका हिस्सा बन पाने के लिये संतोष जी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

सुश्री शंकुतला मित्तल ने कहा कि इस पुस्तक का हिस्सा बनकर विवेक के कुछ और आयाम खोज लिये, हौसले की उड़ान मिली, लगा कि आपको इनके बीच आकर अब और आगे बढ़ना है। सुश्री पुष्पा जमुआर ने स्त्री और पुरुष विमर्श पर बोलते हुए कहा कि न तुम झुको न मैं झुकूँ, बात यूँ ही बढ़ती रहे,
एक कदम तुम चलो, एक कदम मैं चलूँ , रास्ते रूबरू कटते रहें।
सुश्री सुनीता प्रकाश ने कहा कि नवीन दृष्टिकोण पर आधारित है पुरुष विमर्श पर।

सुश्री जया आर्य पुस्तक के कवर पेज पर एक पर एक जमे पत्थर जो संतुलन बना रहे हैं, यही स्त्री-पुरुष का आपसी संतुलन है। सुश्री महिमा श्रीवास्तव वर्मा ने कहा कि जिस तरह क्षितिज एक आभासी स्थल है धरा और गगन के मिलन का उसी तरह ‘क्षितिज और भी हैं’ जहाँ दो विपरीत स्वभावों का मिलन होता है, स्त्री-पुरुष विमर्श भी कुछ इसी तरह हैं’ दोनों के एकाकार होने की परिकल्पना, परी कल्पना। डॉ० क्षमा पाण्डे ने संतोष जी को धन्यवाद देते हुए बताया कि वो मूलतः एक गीतकार हैं, जिसे संतोष जी ने इस पुस्तक के माध्यम से लघुकथाकार बना दिया। कार्यक्रम में विभिन्न शहरों से शामिल हुए 40 लघुकथाकारों ने अपना पूरा समय कार्यक्रम को दिया और कार्यक्रम की रोचकता पर प्रतिक्रियाएं भी दीं ।
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