० परिणीता सिन्हा ०
आज मजदूर दिवस है यानि जो मेहनत से काम करे उनका दिवस । यह दिवस इंगित करता है कि मजदूर भी इंसान है उसके काम करने के भी निश्चित घंटे है , नियत देय हैऔर उनके हिस्से भी छुट्टी है । पूरी दुनिया मजदूर दिवस जानती है लेकिन क्या वास्तव में मजदूर को उन्नत जीवन मिल पाया है ? क्या वे समाज में अपनी महत्ता हासिल कर पाए है? इन सारे प्रश्नों में उलझती हुई मैं एक दृष्टि उनकी स्थिति पर केंद्रित करती हूँ । आज मजदूर फटे कपड़े में नजर नहीं आते । आज मजदूर बंधुआ नहीं रहे ।
आज मजदूर बिचौलिए की गिरफ्त में है । उन्हे काम के लिए अपने गृहस्थान से पलायन करना पड़ता है । वे अब अपने गाँव के खुले स्थान को छोड़ कर छोटे छोटे कमरों में मेज कुर्सी की भाँति एडजस्ट होकर फिट हो जाते है । उनके जीवन की कम गारंटी होती है । दुर्घटनाएं कभी दिव्यांग की श्रेणी में खड़ा कर देती है तो कभी मौत छोटे मोटे मुआवजे के साथ सेट हो जाती है । हाँ समय के साथ इनके जीवन में कुछ अच्छे बदलाव आए है मसलन मोबाइल जो इनके नीरस जीवन में कुछ मधुर बयार की तरह है जिससे ये जब चाहें कॉल करके अपने प्रियजनों से बतिया लेते है । हमारे सभ्य उच्च समाज के द्वारा नकार दी गयी वस्तुएं जो इन्हे सेकेंड हैंड के रूप में प्राप्त होती है इनके जीवन में ठंढी छाँव की तरह आ जाती है ।
ये आपस में खूब लड़ झगड़ भी लेते है लेकिन अपने हक की लड़ाई में अकसर हार जाते है । विदेशों में मजदूरी तय होती है और संजीदगी से इसका पालन भी होता है और इनके काम को सम्मानित तरीके से देखा भी जाता है । हमारे देश में मजदूरी एक उपेक्षित और निम्नस्तरीय रोजगार है । यह विडम्बना ही है कि बड़ी बड़ी ईमारते जिनके मेहनत से बनती है उन्हे छत भी मुश्किल से नसीब होती है । सिर्फ मजदूर दिवस पर छुट्टी घोषित कर देने से कुछ नही होगा । अगर ,आप उनके जीवनस्तर और मूलभूत सुविधाओं के लिए कारगर कदम नहीं उठाएँगे , परिदृश्य नहीं बदलेगा ।
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