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वक्त है स्वयं में झाँके और जीवन की गूढ़ता को आत्मसार करें


0 परिणीता सिन्हा 0

सुबह एक तारीख की शुरूवात होती है जिसमें कई अलिखित पन्ने दर्ज होते है । सुबह चिड़िया घोंसले से निकल कर गंतव्य की ओर उड़ती है । उसे नहीं मालूम दाना कहाँ और कैसे मिलेगा ? फिर भी वह कुछ ठिकानों को चिन्हित करती है और वहाँ पहले प्रयास करती है । कितनी अनिश्चिंतता होती है फिर भी वह फुदकती हुई प्रयासरत करती रहती है । ये परिंदे हमें कितना कुछ सिखा जाते है । 

जीवन का भी यही सच है बस निरंतर अपने कार्यों को संपादित करते रहिए, बिना परिणाम का सोंचे , अगर परिणाम को सोच कर कार्य करेंगे तो सफलता नहीं मिलने पर निराशा का शिकार होंगे । हर व्यक्ति और उसका व्यक्तित्व उसकी पहचान बनता है । हम दूसरों को मापने के मापदंड स्वयं तय करते है और उसी के हिसाब से किसी को सही और किसी को गलत ठहरा देते है लेकिन जरूरी नहीं कि हमारे मापदंड ही मानक हो। जब आपका ज्ञान विस्तृत हो जाएगा तो आप तय कर पाएंगे सही और गलत ।

 इस कोरोना काल ने बहुतो के अहंकार चूर कर दिए जिनके पास उपलब्धियों के नाम पर अथाह वस्तुएं प्रदर्शित करने को थी लेकिन वे जीवन के वास्तव को समझ नहीं पाए थे । हम अपने स्नेह को कितने आवोभाव से दर्शाते थे , हाथ मिलाना, आलंगन में लेना, चुंबन लेना, अब सब कुछ एक दायरे में सिमट गया है । घर के बाहर की दुनिया बड़ी सुहानी लगती थी लेकिन आज अपने घर के अंदर सिमट कर कई बारिकियों को समझ पा रहे है । राहें सिमटी नहीं बदल गई है । यही वक्त है स्वयं में झाँके और जीवन की गूढ़ता को आत्मसार करें । आपकी हर सुबह सुहानी हो जिसमें बुनी कई सुंदर कहानी हो ।

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