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"सुनहरी सुबह फिर आएगी, फिर जिंदगी गुनगुनाएगी "

0 परिणीता सिन्हा 0

आज जीवन जिस मोड़ पर खड़ा है, वहाँ अनिश्चिंतता है, अनुत्तरित प्रश्न है और गहरा मौन है । आज मन अधीर हो रहा है यह चारों ओर फैला अँधेरा लील रहा है सुख चैन । आज हर कोई बेचैन है । कुछ भाग रहे है अपनों के लिए, कुछ मौन बैठे है घरों में, किसे दोष दे नियति को या इस वाइरस को जो नहीं सुन सकता लोगों का क्रंदन और न ही जाने को तैयार है । लगता है प्रार्थनाएं इस तक नहीं पहुँचती इसलिए यह लील रहा है मानव जाति को । इस वाइरस ने मानव विकास को खुली चुनौती दी है । अंतरिक्ष में जीवन तलाशता मानव आज पृथ्वी पर ही हारने लगा है ।  

ऐसा कहते थे कि इस बार चौथा विश्व युद्ध जैविक होगा और हो ही रहा है जिसमें सब लड़ रहे है एक विषाणु से । आज किसी की कोई गारंटी नहीं ले सकता । सारे भेद मिट चुके है कोई भी ,कही भी, कैसे भी बीमारी का शिकार हो सकता है । आज समाचार अप्रिय घटनाओं से ही शुरू होता है । नित्य किसी साहित्यकार का छूट जाना बेहद दुखद है । 

कितनी परियोजनाएं बनाते है हम भविष्य के लिए लेकिन बस आज ही जीवन है । जब तक सब व्यवस्थित था तो कई लोगों की इस विपत्ति में मदद करने में समर्थ थी लेकिन अब बेबसी महसूस हो रही है । हम कोस रहे है सिस्टम को लेकिन सब कुछ संभालना उतना भी आसान नही है । इतनी बड़ी जनसंख्या और इतने व्यक्ति जो आकड़ों में दिखाई दे रहे है सभी का एक पूरा जीवन इतिहास है जिसे एक -एक कर हम नहीं पढ़ पाएंगे लेकिन हर परिवार अपने दायरे में कितना कुछ खो रहा है ।

कितनी दर्द भरी कहानियां बनती जा रही है । कहीं बच्चे अकेले हो गये तो किसी का साथी छूट गया । ऐसे समय में मनःस्थिति दुर्बल हो रही है फिर खुद को कैसे स्थिर और अडिग रखा जाए । आस्था और विश्वास की डोर थामिए तभी जी पाएंगे । मुश्किल है, लेकिन सब कुछ भूल कर एक ठंढी साँस लीजिए और अपने अंदर एक विश्वास कायम कीजिए 

"सुनहरी सुबह फिर आएगी, फिर जिंदगी गुनगुनाएगी " 

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