💥 उमेश नाग 💥
किट किट करते दाँत,
शीत में ऊनी स्वेटर तन की चाहत
गरम गरम चाय काफी,
पीने की चाहत।
सनसनाती शीतल वायु,
तन मन को सताती है।
रोजमर्रा के काम रूक जाते,
दिल दिमाग को दुखाते हैं।
दिन की उजास रोशनी में,
चहुँ ओर अंधेरा गहरा;
छाया है घना कोहरा।
बादल झूम झूम कर आते,
जैसे ठंड का मल्हार गाते।
शीत में नहीं करता ,
नहाने का मन।
पर मौसम सुहाना लगता है,
जब अलाव जलता है ।
मेवे के बनते लड्डू घरों में,
गोंद बादाम की बनती पंजेरी
मिलकर खाऐं साजन-सजनी।
बालक-बालिकाऐं बैठे,
पहने कोटी-टोपी-
ओढ़कर कम्बल और रजाई ।
कड़कड़ाती सर्दी में,
किटकिटाते दाँत-
शिशिर में जम जाते, हाथ-पाँव।
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