⧭ उमेश नाग ⧭
परिंदे-पक्षी नहीं तो परिंडे नहीं
ज्यूँ जल -अन्न नही तो जग नही।
परिंदे मनुष्य नहीं होते परन्तु
मनुष्य से भी कम कम नहीं होते।
होतें ज्ञानी व ध्यानी भी होते हैं
मूक होते है पर वेदना-संवेदना-
रखते जीवन में।
धरती-आकाश में विचरण करते
दोनों से होता सम रिश्ता इनका
बेंजुबाँ-बेबस परिंदा -
बदगुमानी छोड़ देता है
दिलों से बेनामों रिश्ते -
जोड़ लेता है।
इनकी उड़ान है अनंत व्योम
धरती-आकाश दोनों से रिश्ते-
जोड़े रहते हैं।
जाति,धर्म, नस्ल, सम्प्रदाय का
इनमें नही होता भेदभाव।
मन्दिर, मस्जिद, चर्च ,गुरूद्वारे
भेद बिना कभी मन्दिर -
कभी मस्जिद पर जा ,
बैठते हैं।
प्रांत देश की सरहदों से
भी परे होते हैं।
समानता के बेमिसाल जीव
होतें हैं ये।
करते जो इनकी सेवा वे
जन होते स्वयं सम्मानिय-
पूज्यनिय होते हैं।
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