० सुषमा भंडारी ०
हो लक्षमी का वास जब
फैले तब प्रकाश
पर्व खास दीपावली
भर देता उल्लास।।
लक्षमी खुशियाँ बांटती
दुख जाता है भाग
होता प्रकाश दुगुना
पर्व सुनाये राग।।
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नन्हा दीपक
मैं नन्हा- सा दीपक हूं
प्रीत है नन्ही बाति से
जलती बाती जब कुटिया में
मिलता मुझे सुकून बहुत
मैं नन्हा-सा दीपक हूं
जब तक मुझमें तेल भरा हो
बाती लड़े अंधेरे से
मैं नन्हा - सा दीपक हूं
तूफां आये खूब डराये
बाती निडर जले तन के
मैं नन्हा- सा दीपक हूं
आशा और विश्वास है बाति
रौशन-रौशन इसकी ख्याति
मैं नन्हा-सा दीपक हूं
मुझ बिन न अस्तित्व बाति का
बाती बिन मैं कुछ भी नहीं
मैं नन्हा - सा दीपक हूं
पलक झपकते दूर करूं मैं
गहरा आँधियारा काला
मैं नन्हा - सा दीपक हूं
माटी हूं माटी में मिलना
यही नियति है मेरी
मैं नन्हा - सा दीपक हूं
० सुषमा भंडारी ०
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