नयी दिल्ली - वर्ष 2000 से पहले तक इतिहास ऐसी कई महामारियों को झेल चुका है जिन्होंने मानव सभ्यता के विकास को अपने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। वो चाहे दुनिया की पहली महामारी जस्टिनियन का प्लेग हो या फिर भारत में फैला हैजा रोग। जब मौत घर के दरवाज़े पर दस्तक दे रही हो तब विद्यालय जाने की कौन सोच सकता है?
बीती सदियों में आई महामारियों ने जहाँ शिक्षा को काफी पीछे धकेल दिया था हीं इस सदी की कोरोना महामारी के सामने नई तकनीक एवं शिक्षा व्यवस्था ने घुटने टेकने से इंकार कर दिया| आपदा में अवसर के रूप में ई-शिक्षण उभर कर आया। ई-शिक्षण यानी इलेक्ट्रॉनिक शिक्षा कोरोना के कारण दुनिया थम सी गई थी, जिसमें भारत भी शामिल था। स्कूल हों या दफ्तर या कोई अन्य कार्य स्थल सब जगह सन्नाटा पसरा था| पारंपरिक कक्षा एक नई चुनौती का सामना कर रही थी। चुनौती सिर्फ छात्रों के भविष्य के लिए शैक्षणिक व्यवस्था को बनाए रखना ही नहीं था, बल्कि एक ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था को आकार भी देना था, जिसकी कल्पना भी इससे पहले तक किसी ने नहीं की थी।
किसी ने सही ही कहा है आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है | भारत सहित कई देशों में शिक्षण प्रक्रिया ने नया रूप लिया l हमारी तत्परता ही सीखने सिखाने की प्रक्रिया का केंद्र है l चुनौतियों से भरी इस नई पद्धति को शिक्षक/शिक्षिकाओं ने वरदान में बदल दियाl आज ई-शिक्षण ने सम्पूर्ण शैक्षिक व्यवस्था में अपना स्थान बना लिया हैl आभासी दुनिया आभासी कक्षा प्रणाली अपने उपयोगकर्ताओं को दोहरा लाभ पहुंचाने का सामर्थ्य रखती है, जैसे- विद्यार्थियों को अपेक्षित अधिगम अनुभव प्रदान करने में या किसी भी स्थान पर बैठे हुए अपनी गति से सीखने में। यह प्रणाली 24x7 विद्यार्थियों को उपलब्ध रहती है। इस प्रकार की सुविधा परंपरागत तरीके से उपलब्ध शिक्षा प्रणाली में नहीं हो सकती थी।
इस प्रणाली में नवीन तकनीकी सामग्री और माध्यमों का प्रयोग होने के कारण शिक्षा अधिगम कार्य विद्यार्थियों के लिए रुचिकर तथा प्रेरणादायक बन जाता है। मन: स्थिति पर प्रभाव छात्रों की मन: स्थिति पर ऑनलाइन का व्यापक प्रभाव पड़ा हैl ऑनलाइन व ऑफलाइन कक्षा में निरंतर बदलाव होने के कारण बच्चों को एकाग्रचित होकर पढ़ने में बहुत परेशानी आयी । कक्षा में छात्रों की उपस्थिति कम हो गई, जिससे
शिक्षकों को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा थाl छात्रों की लेखन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है | सामाजिक दूरी के कारण आपसी जुड़ाव में कमी आई है l जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं भावनात्मक जरूरतें परिवर्तित होती रहती हैं और ई- शिक्षण इन जरूरतों को पूरी करने में असमर्थ रहा है l विद्यार्थी
अपने मित्रों से दूर होकर अकेलापन महसूस कर रहे थे, जिससे मानसिक तनाव में वृद्धि हुईl खेलकूद छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है, लेकिन उन दिनों वह भी एक सपने जैसा हो गया थाl कोविड की वजह से छात्रों का ज्यादा समय तकनीकी उपकरणों के साथ हो रहा था, जिसके कारण उनकी
सेहत पर बुरा असर हो रहा था l आभासी दुनिया का ‘कड़वा’ अनुभव आभासी कक्षा छात्रों को बेहतर संचार और गहरी समझ के अवसरों से वंचित कर रही थी। भारतीय छात्रों के बीच हुए एक अध्ययन में पाया गया कि यह अनुभव उनके लिए काफी कड़वा रहा|
प्रतिदिन विद्यालय आने से छात्रों की एक सुनिश्चित दिनचर्या होती थी जो आभासी कक्षाओं में कहीं गुम हो गई थी| प्राकृतिक वातावरण से भी जुड़ नहीं पा रहे थेl आभासी दुनिया की हलचल उनके व्यवहार में दिखने लगी है| छात्रों में व्यग्रता और घबराहट की वृद्धि हो रही है l विशेषताओं के साथ मिली चुनौतियाँ ऑनलाइन शिक्षण में कुछ विशेषताएँ हैं तो कई कमियाँ भी हैं, जो अपने साथ कई चुनौतियाँ लाई हैं| ऑनलाइन शिक्षण पारंपरिक शिक्षण की जगह तो नहीं ले सकता परंतु आज की परिस्थिति में यह वरदान साबित हुआ हैl भारत में ई- शिक्षा को सुधारने में सरकार भी प्रयास कर रही हैl शिक्षण प्रणाली में समय - समय पर बदलाव आता रहा है और यही बदलाव उसमें नयापन भी लाता है, जो भविष्य को बेहतर बनाने में काफी मददगार होता है|
मंजू राणा
मेंबर एकेडमिक काउंसिल
सामर्थ्य टीचर्स ट्रेनिंग अकादमी ऑफ़ रिसर्च (STTAR)
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