नयी दिल्ली -बहुत कम लोगों को पता होगा कि नवम्बर २०१२ दिल्ली समेत देश हो झकझोर देने वाले मुनिरका, दिल्ली की निर्भया, दामिनी के साथ हुए दुराचार और नृशंस हत्या से पहले ९ फरवरी, २०१२ को नजफगढ़ दिल्ली में भी कुछ नरपिशाचों ने देश की एक बेटी के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। दरिंदों के बचाव में स्थानीय स्तर पर बहुत कुछ किया गया और उस बिटिया के परिवार को भी जो कि नजफगढ़ में किराये पर रहता है को उन अपराधियों ने चुप रहने की धमकी दी. गरीब परिवार और लाचार की आवाज आज के ज़माने में कौन सुनता है इसलिए परिवार अपराधियों को सजा दिलाने के लिए दर-दर भटकता रहा। समाज के कुछ जागरूक लोगों के सहयोग से परिवार को सम्बल मिला और अपराधी सलाखों के पीछे हुए लेकिन तब से आजतक परिवार को यह दर्द सालता रहता है कि कब इन दरिंदों को फांसी होगी?
दिल्ली एनसीआर की सभी संस्थाओं के सहयोग से और नजफगढ़ की दामिनी न्याय संघर्ष समिति व उत्तराखण्ड एकता मंच, उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली समते कई संगठनों ने इस मुद्दे पर बहुत आंदोलन किया। द्वारिका कोर्ट में आये दिन धरना, प्रदर्शन और कैंडल मार्च इस बात की गवाही हैं कि अपराधियों को उच्च न्यायालय से फांसी की सजा हो चुकी है। वर्तमान में यह केस माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है। आज जबकि इस केस में फैसला आने वाला है तो पीड़ित परिवार के दर्द फिर से हरे हो चुके हैं। परिवार की मांग है कि इन दरिंदों को फांसी की सजा हो और उनको न्याय मिले तभी उनकी बेटी की आत्मा को शांति मिलेगी।
इस बावत विगत २९ अप्रैल, २०२२ को गढ़वाल भवन, दिल्ली में विभिन्न सामाजिक संगठनों ने एक बैठक की जिसमे पुरजोर ढंग से मांग की गई कि नजफगढ़ की दामिनी के हत्यारों को फांसी हो . ताकि आगे से कोई भी दरिंदा इस प्रकार की हैवानियत करने से सौ बार सोचे और न्याय व्यवस्था पर लोगों का विश्वास बना रहे। इस अवसर पर इस केस को देख रही बरिष्ठ समाजसेवी, परी फाउंडेशन से सुश्री योगिता स्याना, बरिष्ठ अधिवक्ता वीर सिंह नेगी, उत्तराखण्ड एकता मंच के सयोंजक डॉ विनोद बछेती, उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच के संयोजक, दिनेश ध्यानी, अनिल पंत, दयाल नेगी, साहित्यकार रमेश चन्द्र घिल्डियाल, जगमोहन सिंह रावत,
भूकानून संघर्ष समिति से श्रीमती प्रेमा सिंह धोनी, सरिता कठैत, जगत बिष्ट, भयात संस्था से रोशनी चमोली, और नजफगढ़ की दामनी के परिजनो समेत समाज की कई संगठनों के लोग उपस्थित थे। सबका यही मानना था कि सर्वोच्च न्यायालय दोषियों को शीघ्र ही फांसी की सजा देगा। इस केस को सबसे पहले समाज की सामने लाने वालों में सुमार उत्तराखण्ड जागरण के सम्पादक सतेन्द्र सिंह रावत आदि ने के विश्वाश जताया कि सर्वोच्च न्यायालय दोषियों को शीघ्र ही फांसी की सजा देगा. इस अवसर पर एक स्वर में यह बात भी सामने आयी कि देश और समाज में ऐसी घटनाओं के लिए कोई स्थान नहीं। ऐसे दरिंदों को सजा दिलाने के लिए समाज के हर वर्ग सामने आकर एक जुट होकर अपनी बात रखनी होगी ताकि अपराधी किसी भी कीमत पर बच न सकें और आगे कोई भी दरिंदा समाज में अपराध करने से डरेगा।
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