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डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष 14वें पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित

० योगेश भट्ट ० 

"एक वक्त था जब ‘पत्रकार’ कम थे, ‘पत्रकारिता’ अधिक थी, लेकिन आज ‘पत्रकार’ अधिक हो गए हैं और ‘पत्रकारिता’ कम हो गई है। साहित्यिक पत्रकारिता समाज को जोड़ने का काम करती है। साहित्य का अर्थ ही है ‘सभी का हित"

नई दिल्ली। प्रख्यात कवि, आलोचक एवं ‘साहित्य परिक्रमा’ के संपादक डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष को मीडिया विमर्श परिवार द्वारा दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित सम्मान समारोह में 14वें पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया गया। समारोह की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर डॉ. चंदन कुमार ने की। कार्यक्रम में हंसराज कॉलेज, दिल्ली की प्राचार्य डॉ. रमा एवं प्रख्यात साहित्यकार गिरीश पंकज* विशिष्टि अतिथि के रूप में शामिल हुए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर डॉ. चंदन कुमार ने कहा कि आज तथ्यात्मक लेखन लुप्त होता जा रहा है। पत्रकारिता में इसका बड़ा महत्व है।बौद्धिकों और शोधार्थियों की ‘2 मिनट नूडल्स’ वाली सोच के कारण तथ्यात्मक लेखन बंद हो गया है। उन्होंने कहा कि स्मृति आपके मनुष्य होने का सूचक है और ये समारोह बताता है कि प्रो. संजय द्विवेदी की स्मृतियों में उनके पुरखें आज भी जीवित हैं। डॉ. कुमार ने कहा कि ऐसे पुरस्कार समारोह एक व्यक्ति के के मानवीय पक्ष के प्रमाण हैं। प्रो. द्विवेदी इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं।

‘साहित्य परिक्रमा’ के संपादक डॉ. इंदुशेखर ‘तत्पुरुष’ ने कहा कि वह समाज सर्वश्रेष्ठ होता है, जहां साहित्य उसे दिशा देता है। इसी कारण समाज में साहित्यिक पत्रकारिता का बड़ा महत्व है। सांस्कृतिक और आर्थिक पत्रकारिता भी साहित्यिक पत्रकारिता के पीछे चलती हैं। डॉ. ‘तत्पुरुष’ ने कहा कि स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद साहित्यिक पत्रकारिता का हमेशा से एक विजन रहा है और उसने देश को नई दिशा देने का कार्य किया है। साहित्यिक पत्रकारिता भी सूचना देती है, पर उसका दायित्व मुख्यधारा की मीडिया से ज्यादा है।

समारोह में हंसराज कॉलेज, दिल्ली की प्राचार्य डॉ. रमा ने कहा कि पूरा देश ‘आजादी का अमृत म​होत्सव’ मना रहा है। भारत के युवाओं को अपने लक्ष्य को तय करना होगा। अगले 25 वर्ष हमारे हाथों में हैं। इन 25 वर्षों में हम भारत को बदलेंगे। यही भारत के प्रत्येक व्यक्ति का संकल्प होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज साहित्यिक पत्रकारिता में भाषा की गिरावट हुई है, जिसका असर समाज और उसके मूल्यों पर पड़ रहा है। इसलिए पत्रकारों का यह कर्तव्य है कि वे भाषा का ध्यान रखें। 
 गिरीश पंकज प्रख्यात साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि बाजारवाद के दौर में लोग अपने वैभव को भूल चुके हैं। बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में भेज रहे हैं। ऐसे समय में अपने पुरखों के नाम पर सम्मान देने का काम प्रो. संजय द्विवेदी पिछले 14 वर्षों से लगातार कर रहे हैं। पंकज ने कहा कि एक वक्त था जब ‘पत्रकार’ कम थे, ‘पत्रकारिता’ अधिक थी, लेकिन आज ‘पत्रकार’ अधिक हो गए हैं और ‘पत्रकारिता’ कम हो गई है। साहित्यिक पत्रकारिता समाज को जोड़ने का काम करती है। साहित्य का अर्थ ही है ‘सभी का हित’।

इस अवसर पर ‘मीडिया विमर्श’ के संपादक प्रो. श्रीकांत सिंह ने कहा कि वर्तमान में नागरिक पत्रकारिता की अवधा​रणा विकसित हुई है। आज हर किसी के हाथों में मोबाइल है। खबरों की जल्दबाजी में किताबों को जगह नहीं मिलती। ऐसे दौर में साहित्यिक पत्रकारिता का सम्मान समाज को नई दिशा देने का काम करेगा। त्रैमासिक पत्रिका ‘मीडिया विमर्श’ के सलाहकार संपादक प्रो. संजय द्विवेदी ने बताया कि यह पुरस्कार प्रतिवर्ष हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है। इस अवॉर्ड का यह 14वां वर्ष है। ‘मीडिया विमर्श’ द्वारा शुरू किए गए इस अवॉर्ड के तहत ग्यारह हजार रुपए, शॉल श्रीफल, प्रतीक चिन्ह और सम्मान पत्र दिया जाता है। पुरस्कार के निर्णायक मंडल में नवभारत टाइम्स, मुंबई के पूर्व संपादक विश्वनाथ सचदेव, छत्तीसगढ़ ग्रंथ अकादमी, रायपुर के पूर्व निदेशक रमेश नैयर तथा इंदिरा गांधी कला केंद्र, दिल्ली के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी* शामिल हैं।

इससे पूर्व यह सम्मान ‘वीणा’ (इंदौर) के संपादक स्व. श्यामसुंदर व्यास, ‘दस्तावेज’ (गोरखपुर) के संपादक डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ‘कथादेश’ (दिल्ली) के संपादक हरिनारायण, ‘अक्सर’ (जयपुर) के संपादकडॉ. हेतु भारद्वाज, ‘सद्भावना दर्पण’ (रायपुर) के संपादक गिरीश पंक, ‘व्यंग्य यात्रा’ (दिल्ली) के संपादक *डॉ. प्रेम जनमेजय ‘कला समय’ (भोपाल) के संपादक विनय उपाध्याय, ‘संवेद’ (दिल्ली) के संपादक किशन कालजयी, ‘अक्षरा’ (भोपाल) के संपादक कैलाशचंद्र पंत, ‘अलाव’ (दिल्ली) के संपादक *रामकुमार कृषक, ‘प्रेरणा’ (भोपाल) के संपादक *अरुण तिवारी‘युगतेवर’ (सुल्तानपुर) के संपादक कमल नयन पाण्डेय और ‘अभिनव इमरोज़’ (दिल्ली) के संपादक देवेन्द्र कुमार बहल को दिया जा चुका है। इस अवसर पर युवाओं को संस्कृत से जोड़ने के उद्देश्य से प्रकाशित शिवेश प्रताप की पुस्तक ‘जिंदगी की बात, संस्कृत के साथ’ का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विष्णुप्रिया पांडेय ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सौरभ मालवीय ने किया।
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