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अन्तर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की दिल्ली इकाई द्वारा 'तीन कहानी तीन समीक्षक" का आयोजन

० संवाददाता द्वारा ० 

नयी दिल्ली - अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की "तीन कहानी - तीन समीक्षक" मासिक गोष्ठी का आयोजन दिल्ली इकाई की अध्यक्ष शकुंतला मित्तल के संयोजन में गूगल मीट पर सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने की । इस अनूठे आयोजन का लाजवाब संचालन प्रतिभा सम्पन्न कवयित्री  डाॅ. कल्पना पाण्डेय ने किया।

कार्यक्रम का आरंभ संचालिका द्वारा समस्त मंचासीन सुधिजनो  के स्वागत से हुआ तत्पश्चात  संतोष श्रीवास्तव  ने समस्त कहानीकारों,समीक्षकों  तथा उपस्थित प्रबुद्ध साहित्यिक विभूतियों के लिए शुभकामना संदेश प्रेषित किया,जिसे शकुंतला मित्तल ने सबके समक्ष प्रस्तुत किया।संतोष जी के अनुसार"आधुनिक कहानी में यथार्थ  के मनोविज्ञान पर बल दिया जाने लगा है। अब घटना और कार्य व्यापार के स्थान पर पात्र और उसका संघर्ष ही कहानी की मूल धुरी बन गए हैं।

कहानी अपने छोटे आकार तथा तीव्र प्रभाव के कारण सीमित होती है और दूसरे पात्र के सबसे अधिक प्रभाव पूर्ण पक्ष की उसके व्यक्तित्व की केवल सर्वाधिक पुष्ट तत्व की झलक ही प्रस्तुत की जाती है।ज्ञेय की शत्रु कहानी में एक ही मुख्य पात्र है, जैनेंद्र के खेल कहानी में चरित्र-चित्रण में मनोविज्ञान आधार ग्रहण किया गया है। अतः कहानी के पात्र वास्तविक सजीव स्वाभाविक तथा विश्वसनीय लगते हैं। पात्रों का चरित्र आकलन लेखक प्रायः दो प्रकार से करता है। प्रत्यक्ष या वर्णात्मक शैली द्वारा इसमें लेखक स्वयं पात्र के चरित्र में प्रकाश डालता है।

परोक्ष या नाट्य शैली में पात्र स्वयं अपने वार्तालाप और क्रियाकलापों द्वारा अपने गुण-दोषों का संकेत देते चलते हैं। इन दोनों में कहानीकार को दूसरी पद्धति अपनानी चाहिए ।इससे कहानी में विश्वसनीयता एवं स्वाभाविकता आ जाती है।"कार्यक्रम की शुरुआत वंदना रानी दयाल जी की भावविभोर कर देने वाली मधुर सरस्वती वंदना से हुई।सर्वप्रथम साहित्यकार श्रीमती सरिता गुप्ता जी की ने अपनी कहानी 'अहसास' के वाचन से की ।जिसकी समीक्षा में  तरुणा पुंडीर जी  ने कहा -अहसास कहानी आज के परिवेश पर आधारित है। आज महानगरों में अकेले व्यक्ति के ऊपर पूरे घर के खर्चों को उठाना बहुत मुश्किल है ,इसीलिए पति-पत्नी दोनों का कामकाजी होना बहुत जरूरी हो गया है।  पुरुष दंभ पत्नी का अशिक्षित होने के कारण  परिवार को तनाव  एवं अभाव का शिकार होना पड़ता है। लड़कियों की शिक्षा माता पिता की तरफ से सबसे बड़ा उपहार है इसीलिए लड़कियों को शिक्षित अवश्य करना चाहिए।

कहानी में घटना और कार्य व्यापार के स्थान पर पात्र राजेश और उसका आत्मबोध, अहसास ही कहानी की मूल धुरी बन गए हैं। राजेश ही  मुख्य पात्र है जिसके अहसासों से कहानी बुनती चली जाती है।सुप्रसिद्ध कलमकार , कवयित्री डाॅ. भावना शुक्ल  जी की कहानी 'दलदल से बाहर'  की समीक्षा करते हुए डाॅ शुभ्रा जी ने कहा किदलदल से बाहर कहानी की ख़ूबसूरती इसमें है कि,समस्याएं होते हुए भी यह कहानी,समस्या प्रधान न हो कर समाधान स्वरूप कहानी है।लेखिका ने समाधान को समस्या से ऊपर रखा है और यही कहानी का मुख्य उद्देश्य भी है कहानी के मुख्य पात्र की भूमिका में,शुभि मानेकर,नारी सशक्तिकरण की मिसाल बन कर उभरती हैं,जो सामाजिक बुराइयों को समाप्त कर बाक़ी स्त्रियों को "दलदल से बाहर" निकलने का रास्ता दिखा रहीं हैं। प्रतिष्ठित साहित्यकार सविता स्याल की कहानी 'निश्चय' एक मार्मिक कहानी रही।,बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशीलता की समस्या पर वृहत प्रकाश डालती हुई,साथ ही समस्या का समाधान भी करती हुई सत्य के निकट  दिल को छूती भावप्रणव कहानी जिसकी सभी ने सराहना की ।

प्रतिष्ठित साहित्यकार ,कथाकार और समीक्षक सुमन बाजपेयी जी ने इसकी समीक्षा करते हुए कहा,"यह कहानी वर्तमान परिस्थितियों व मानसिकता के अनुसार रिश्तों की सच्चाई को रेखांकित करती है। संबंधों में जो स्वार्थ भावना जगह बना चुकी है, उसकी ही पड़ताल लेखिका ने की है। इस विषय पर लगातार कहानियां लिखी जा रही है और इसकी वजह शायद यही है कि इस तरह की घटनाओं का निरंतर बढ़ना।  संवेदना से ज्यादा भौतिकता का समावेश हो जाने से संबंधों में जिस तरह की दरारें पैदा हो रही है, वह इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने चित्रित किया है।इस तरह सभी बेहतरीन कहानियों और अति सटीक समीक्षा  के लिए सभी उपस्थित साहित्यकारों ने कहानीकारों और समीक्षकों को बधाई  दी और  संतोष श्रीवास्तव जी और आदरणीय मुजफ्फर सिद्दीकी जी के  द्वारा आयोजित 'कहानी संवाद' की बधाई देते हुए खुले दिल से सराहना की।

अंत में प्रतिष्ठित वरिष्ठ कहानीकार  मुजफ्फर इक़बाल सिद्दीकी जी ने सभी कहानीकारों और समीक्षकों का संक्षिप्त आकलन करते हुए कहा कि वास्तविक जीवन से कथानक तय कर लेने पर कहानी लिखते समय इस बात का ध्यान रखा जाना अति आवश्यक है कि वह मात्र सत्यकथा न बन कर रह जाए।यथार्थ लिखते समय उसका शिल्प और फ़नकार न खो जाए,इस ओर कहानीकार को ध्यान दे कर उसे सरस बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। उनके सुझावों और वक्तव्य से कार्यक्रम को गति प्रदान की ! 

आभार ज्ञापन  दिल्ली इकाई की अध्यक्ष शकुंतला मित्तल ने किया! बड़े ही सधे स्वर में अतिथि , सभी कहानीकार, समीक्षक, संचालिका, संयोजिका, संस्थापिका अध्यक्ष एवं कार्यक्रम में शामिल प्रबुद्ध श्रोताओं को स्नेहिल आभार देते हुए, शकुंतला  द्वारा किये गए कार्यक्रम के समापन की घोषणा के साथ कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ ! श्रोताओं के प्रबुद्ध वर्ग में मुजफ्फर इक़बाल  सिद्दीकी,वीणा अग्रवाल,अर्चना पाण्डेय,प्रीती मिश्रा,नीलम दुग्गल नरगिस,  राधा गोयल,डाॅ शारदा मदरा  ,ज्ञानप्रकाश अग्रवाल, डाॅ वनिता शर्मा ,फरजाना बेगम आदि शामिल होकर कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई ।

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