जयपुर असम के वरिष्ठ कलाकार मृदु बोरा ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला का पारम्परिक ‘मेन्यूस्क्रिप्ट पेंटिंग‘ लोक कला के माध्यम से बेहतरीन प्रदर्शन किया। मृदु बोरा आर्टिस्ट कम्यूनिटी ‘द सर्किल‘ के लिये निःशुल्क आयोजित ‘असमीज मेन्यूस्क्रिप्ट पेंटिंग‘ वर्कशॉप का संचालन कर रहे थे। रूफटॉप ऐप द्वारा आयोजित एवं राजस्थान स्टूडियो द्वारा प्रस्तुत इस वर्कशॉप का आयोजन आजादी का अमृत महोत्सव - सेलिब्रेटिंग इंडिया एट 75 के तहत किया गया।
वर्कशॉप में मृदु बोरा ने सर्वप्रथम माखन चुराते हुए भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला को पेपरशीट पर ड्रा किया। इसके बाद उन्होंने पेंटिंग के आउटर बैक्ग्राउंड में नीला रंग और इनर बैक्ग्राउंड में लाल रंग पेंट किया। उन्हांेने इस आर्ट की जानकारी देते हुए कहा कि ‘मेन्यूस्क्रिप्ट पेंटिंग‘ में रेड बैक्ग्राउंड वाले हिस्से में ही सदैव पेंटिंग के सब्जेक्ट एवं करेक्टर बनाये जाते है। जबकि ब्ल्यू बैक्ग्राउंड को स्पेस मैनेजमेंट के तौर पर उपयोग में लिया जाता है। उन्होंने आगे बताया कि यह पेंटिंग नव वैष्णववाद पर आधारित है। इनमें भगवान विष्णु एवं भगवान श्रीकृष्ण की कथाओं को दर्शाया जाता है। पारम्परिक तौर पर इस कला में चित्रांकन पेड़ की छाल पर किया जाता था, जो कि इसकी मुख्य विशेषताओं में शामिल है।
उन्होंने आगे बताया कि असमीज मेन्यूस्क्रिप्ट पेंटिंग आर्ट असम और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। संत शंकरदेव द्वारा शुरू किए गए भक्ति आंदोलन से असम चित्रकला स्कूल में भी रिफार्म आया। ब्रिटिश राज और स्वतंत्रता के बाद की अवधि के दौरान, पांडुलिपि चित्रकला पद्धति अपनाने में कमी आई। हालांकि, अब भी कुछ कलाकारों ने अपने समर्पित प्रयासों से इस शैली को जीवित रखा है।
उल्लेखनीय है कि मृदु बोरा को असमिया पांडुलिपि पेंटिंग आर्ट में 20 से अधिक वर्षों का अनुभव है। वे असम की अन्य विभिन्न कला एवं सांस्कृतिक परंपराओं जैसे, मास्क मेकिंग, वुड कार्विंग, टेराकोटा, आदि कलाओं से भी जुड़े हुए हैं। वे एकमात्र जीवित कलाकारों में से एक हैं जिन्होंने शंकरी चित्रकला परंपरा में पांच पांडुलिपियों का चित्रण किया है। वे अपने चित्रों में पारंपरिक और लोक तत्वों का उपयोग करते हैं, उन्हें विलुप्त होने से बचा रहें हैं।
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