जयपुर - मंजूषा आर्ट की सहायता से बच्चों को आसानी से ड्राइंग एवं पेंटिंग और मॉइथोलॉजिकल वेल्यूज सिखाई जा सकती है। भुवनेश्वर की कलाकार रोजाली पांडा ने आर्टिस्ट कम्यूनिटी ‘द सर्किल‘ के लिये आयोजित मंजूषा पेंटिंग वर्कशॉप में यह बात कही। राजस्थान स्टूडियो द्वारा प्रस्तुत यह वर्कशॉप आजादी का अमृत महोत्सव - सेलिब्रेटिंग इंडिया एट 75 के तहत रूफटॉप ऐप द्वारा आयोजित की गई।
वर्कशॉप में रोजाली पांडा ने सर्वप्रथम ए4 पेपरशीट ले कर उसमें बॉर्डर बनाई और लाईन एवं कर्व की सहायता से बिहुला और विषहरी की लोककथा पर आधारित चित्र बनाये और उनमें रंग भरे। उन्होंने बताया कि मंजूषा पेंटिंग में काले रंग का प्रयोग नहीं किया जाता। इसमें गुलाबी, हरे और पीले रंगों का प्रयोग किया जाता है। वर्कशॉप के दौरान कलाकार रोजाली ने बताया कि मंजूषा पेंटिंग को भारतीय इतिहास में एकमात्र ऐसी कला शैली के रूप में जाना जाता है जिसमें कहानी का क्रमिक प्रदर्शन होता है। इसे स्क्रॉल पेंटिंग भी कहा जाता है।
रोजाली ने आगे बताया इस कला का उद्गम बिहुला और विषहरी की लोककथा से हुआ है। यह विषहरी पूजा के धार्मिक महत्व को भी प्रदर्शित करती है। इस पेंटिंग में पाँच प्रकार की बॉर्डर होती हैं - लहरिया, बेलपत्र, सर्प की लडी, त्रिभुज और मोखा। 7वीं शताब्दी की यह आर्ट अंग प्रदेश (भागलपुर, बिहार) मंे बेहद प्रचलित है। सिंधु घाटी सभ्यता में भी इस कला के ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं।
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