० योगेश भट्ट ०
मृणाल पांडे की किताब ' माया ने घुमायो' की कहानियों में 2014 के बाद के भारत की झलक है : अपूर्वानंद ० प्रवीण कुमार का उपन्यास अमर देसवा कोरोनाकाल का महाकाव्य होने की महत्वाकांक्षा लेकर चलता है : संजीव कुमार ० देवेश की पहली कृति पुद्दन कथा कोरोना काल में ग्रामीण जनजीवन में घटित अनपेक्षित अप्रत्याशित घटनाओं का मार्मिक वृतांत : मनोज कुमार झा
नई दिल्ली । अपने समय का आख्यान रचना बहुत कठिन काम है, क्योंकि बहुत करीब से उसके सभी पहलुओं को देख पाना आसान नहीं होता। लेकिन युवा लेखक देवेश, चर्चित कथाकार प्रवीण कुमार और वरिष्ठ साहित्यकार मृणाल पाण्डे की नवीनतम किताबों से जाहिर है कि तीन पीढ़ियों के इन तीन लेखकों ने अपने समय को बेहद बारीकी से दर्ज किया है।
ये बातें आलोचक अपूर्वानंद,राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा और आलोचक संजीव कुमार सरीखे विद्वान वक्ताओं ने बुधवार शाम कहीं। वे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्स में राधाकृष्ण प्रकाशन के 55 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित विशेष लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे।इस समारोह में प्रवीण कुमार के पहले उपन्यास ‘अमर देसवा’, देवेश के पहले उपन्यास ‘पुद्दन कथा’ और और मृणाल पाण्डे के नवीनतम कहानी संग्रह ‘माया ने घुमायो’ का लोकार्पण हुआ। तीनों किताबें राधाकृष्ण प्रकाशन ने प्रकाशित की हैं।
इस अवसर पर आलोचक संजीव कुमार ने कहा, अलग अलग पीढ़ी और अलग अलग नजरिये के बावजूद इन तीनों लेखकों की सद्य प्रकाशित कृतियों में एक समानता है। वह यह कि तीनों किताबें कोरोना काल की उपज हैं। उनमें इस दौर को बारीकी से दर्ज किया गया है, मृणाल जी की कहानियाँ लोककथाओं के ढांचे में वर्तमान की जटिलताओं को मारक ढंग से
इस अवसर पर आलोचक संजीव कुमार ने कहा, अलग अलग पीढ़ी और अलग अलग नजरिये के बावजूद इन तीनों लेखकों की सद्य प्रकाशित कृतियों में एक समानता है। वह यह कि तीनों किताबें कोरोना काल की उपज हैं। उनमें इस दौर को बारीकी से दर्ज किया गया है, मृणाल जी की कहानियाँ लोककथाओं के ढांचे में वर्तमान की जटिलताओं को मारक ढंग से उजागर करती हैं, तो देवेश का उपन्यास कोरोना की आपदा के बहाने गांव गिरांव के अदेखे-कमदेखे यथार्थ को व्यक्त करता है। प्रवीण का उपन्यास अमर देसवा आम जनजीवन की अनेक कहानियों को समेटते हुए कोरोनाकाल का महाकाव्य होने की महत्वाकांक्षा लेकर चलता है।
वरिष्ठ आलोचक और स्तंभकार अपूर्वानंद ने कहा कि तीनों लेखकों ने अपने समय के यथार्थ को उसके निहितार्थों के साथ पकड़ने की कोशिश की है। उन्होंने मृणाल पाण्डे के कहानी संग्रह का जिक्र करते हुए कहा कि लोककथाएं अतीत तक सीमित नहीं हैं, उनके भीतर आज का समय भी प्रवेश कर सकता है, जो मृणाल जी की किताब' माया ने घुमायो' में बखूबी देखा जा सकता है। उन्होंने प्रवीण के उपन्यास 'अमर देसवा' के बारे में कहा कि लेखक ने एक ही उपन्यास में कई कहानियाँ समेटी हैं। उसने जिस युक्ति और कौशल से इस उपन्यास में नागरिकता और व्यवस्था की विवेचना की है वह गौरतलब है। यह लेखक की परिपक्वता को दर्शाता है।
राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा ने तीनों लेखकों को बधाई देते हुए कहा कि ये तीनों किताबें लॉकडाउन से उपजी हुई अद्भुत रचनाएँ हैं. ये अपने वक्त का जरूरी दस्तावेज हैं। इन रचनाओं के पीछे एक वेदना है जो व्यक्तिगत नही, सामूहिक है। तीनों वक्ताओं ने इस मौके पर राधाकृष्ण प्रकाशन को बधाई देते हुए कहा कि इसने अपने प्रकाशनों के जरिये कई पीढ़ियों को साहित्यिक शिक्षा प्रदान की है। उन्होंने उम्मीद जताई कि राधाकृष्ण आगे भी अपनी यह भूमिका निभाता रहेगा।
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