० संवाददाता द्वारा ०
गुरुग्राम -वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच हरियाणा की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन गुरुग्राम इकाई द्वारा शकुंतला मित्तल (महासचिव,रा. व.ना.का.मं.हरियाणा प्रान्त,गुरुग्राम) के संयोजन में किया गया। इस गोष्ठी में संस्था के संस्थापक नरेश नाज़ का सान्निध्य प्राप्त होना गोष्ठी की बहुत विशिष्ट उपलब्धि रही।
नरेश नाज़ की गरिमामयी उपस्थिति और तरन्नुम में गाए देशभक्ति गीत,"इक बार जिंदगी में तुम अंडमान जाना,फिर बैठ कर वहाँ पे वतन के गीत गाना" ने शहीदों की शहादत और देशभक्ति के रंगों को साकार कर सबके हृदय स्पंदित कर दिए। मुख्य अतिथि किरण गर्ग(राष्ट्रीय सचिव) की कविता,,,शायद मै भी बुद्ध हो जाती गर स्त्री न होती शायद मोक्ष पा जाती,,,सभी के मनों में सवाल खड़ा कर गयी।
कार्यक्रम का सुन्दर , सहज,मोहक और व्यवस्थित संचालन सविता स्याल (उपाध्यक्ष , हरियाणा प्रांत वरि.ना.का.मंच) ने किया । कार्यक्रम का शुभारंभ वीणा अग्रवाल (राष्ट्रीय संरक्षक व. ना. का. मंच) द्वारा माँ सरस्वती की मधुर स्वर लहरी से हुआ। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता गणेश दत्त ( संरक्षक ,पंचकुला, रा.व.ना.का.मंच)द्वारा की गई । मुख्य अतिथि के पद पर किरण गर्ग ( राष्ट्रीय सचिव रा. व. ना .का. मंच ) शोभायमान थीं।
गोष्ठी वरिष्ठ और दिग्गज कवि कवयित्रियों यथा नरेश नाज़ ,वीणा अग्रवाल, गणेश दत्त , किरण गर्ग, मुकेश गंभीर ,डाॅ. सुदर्शन रत्नाकर ,राजेन्द्र निगम "राज", इन्दु "राज" निगम,डाॅ.वंदना शर्मा ,सविता स्याल,ऋतु गुप्ता ,शारदा मित्तल, राजपाल यादव,कृष्णा जैमिनी ,दीपशिखा श्रीवास्तव "दीप",प्रीति मिश्रा, ,सुशीला यादव,सुजीत कुमार ,सुरेन्द्र मनचंदा ,मोनिका शर्मा और शकुंतला मित्तल ने अपनी मनभावन पंक्तियों व ओजस्वी आवाज से अविस्मरणीय बना दिया।
कुछ झलकियाँ
इक बार जिंदगी में तुम अंडमान जाना
फिर बैठ कर वहाँ पे वतन के गीत गाना।
(नरेश नाज़ ,पटियाला)
बहने दो, आवाज़ मेरी, उन्मुक्त गगन में
ज्यों सुगंध चला करती है, चंदन वन में
(गणेश दत्त बजाज)
काश,,,लक्ष्मण रेखा न होती तो मैं भी बुद्ध हो जाती ।
गर स्त्री न होती तो शायद मैं भी मोक्ष पा जाती गर तज देती
घर बार फिर पतित भी कहलाई जाती।
(किरण गर्ग,पटियाला )
"काट कर पेट लगी है वो खिलाने में मुझे,
रात आँखों में कटी माँ की सुलाने में मुझे"
(राजेन्द्र निगम "राज",गुरुग्राम )
ना इनकार करती हूं, ना इकरार करती हूं
ए जिंदगी मैं तुझसे ,सिर्फ प्यार करती हूं
जो मिला ,जहां भी मिला,जब भी मिला
मैं हर किसी से,खुशी का इजहार करती हूं
(वीणा अग्रवाल,गुरुग्राम)
मेरी शायरी मुझको जूनून देती है
रग रग में मेरे नया खून देती है।
दुनिया तलाशती है दौलत में
मुझको अल्फाज़ में जुनून देती है।
(मुकेश गंभीर )
रोज़ गुजरी गली से, मैं सो सो दफा।
तेरे दर का अभी तक, पता ना चला।।
(डॉ. वंदना शर्मा,फरीदाबाद)
आज पंछी की तरह उड़ता-उड़ता वक्त
मानो कहे जा रहा था----
हे मानव!मैं तो रूका नहीं ,
फिर जिंदगी तुम्हारी क्यूं ठहर कर रह गई है?
(ऋतु गुप्ता,गुरुग्राम )
इस प्रेम पगे पल को तुम याद सदा रखना
अब मुझे भुलाने की तुम भूल न फिर करना
(इन्दु”राज”निगम ,गुरुग्राम)
यायावर से बीते दिन, बंजारों सी ये रातें ।
दिल आवारा बादल- ढूँढे खुशियों की बातें।।
( दीपशिखा श्रीवास्तव'दीप',गुरुग्राम )
पिता अब शिला की तरह
मौन रहते हैं,
कहते कुछ नहीं पर
सहते बहुत हैं।
( सुदर्शन रत्नाकर )
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा ,भानवती ने कुनबा जोड़ा
अपनी गलती होने पर भी,दूजे के सर ठीकर फोड़ा
क्या फ़ायदा ऐसे कुनबे से,सोच नहीं जब उनकी मिलती
मजबूरी वश इक दूजे संग,बेमतलब ही संबंध जोड़ा
(राजपाल यादव,गुरुग्राम)
धन वैभव यश सब मिले,मिला बड़ा सा नाम।
जीवन भर चुकता किए,चमक दमक के दाम।।
(शारदा मित्तल,गुरुग्राम)
प्यार जिसे करते हैं उसे
दुख कभी दिया नहीं जाता
विरह का मधुर रोग यह हर
किसी से लिया नहीं जाता
विरह - पीड़ा में भी कायम
यही असीम आनंद सखे
सुधा पूरित मस्ती- प्याला
हर क्षण पीया नहीं जाता
(कृष्णा जैमिनी , गुरुग्राम हरियाणा)
काली रात सजाती है जो चाँद सितारे,
सूरज उनसे आँख मिलाने से डरता है.
जो जितनी ऊँची चोटी पर खड़ा हुआ है,
वह उतना ज्यादा गिर जाने से डरता है.
(सुजीत कुमार,गुरुग्राम )
औरत, अपने से मुलाकात करो
औरत! कभी अपने से मुलाकात करो
जानो अपने अस्तित्व को
औरों के अनुसार चली
सबका संबल बनी
फिर क्यों 'अबला' कहलायी
इसका विश्लेषण आज करो।
औरत! कभी अपने से मुलाकात करो ।
(सविता स्याल,गुरुग्राम)
सुधियाँ चंदन बन के
खुशबू है भरती
गलियारों में मन के।
(शकुंतला मित्तल,गुरुग्राम )
कविता का शीर्षक - तुम्हारी जादूगरी
ऐसे जग की कल्पना
सबको अन्न धन होए ।
मिलजुल कर सब रहें
ऊंच नीच की बात ना होए।।
(प्रीति मिश्रा,गुरुग्राम )
जो कर्म योगी देश के सलाम है उन्हें !
जीते जो देश के लिए प्रणाम हैं उन्हें !!
(सुशीला यादव ,गुरुग्राम )
ना किस्सा कोई पुराना था
ना यादें कोई पुरानी थी
कुछ वो मेरा दीवाना था
कुछ मैं उसकी दीवानी थी।
(मोनिका शर्मा,गुरुग्राम )
कुर्सियों का कमाल देख लो।
भ्रष्टाचार का फैला रखा जाल देख लो।
डाकू लुटेरे कहलाते हैं यहां धर्मात्मा।
क्या हाल हो रहा परमात्मा।
( सुरेन्द्र मनचन्दा,गुरुग्राम)
गोष्ठी आयोजन में डॉ० शुभ तनेजा (अध्यक्ष ,हरियाणा प्रांत व. ना. का. मंच) राजेन्द्र निगम राज (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रा. व. ना. का. मंच) का मार्गदर्शन सराहनीय थाडाॅ. वंदना शर्मा (वरिष्ठ उपाध्यक्ष व.ना.का.मंच) ने मंचासीन सभी अतिथियों,पदाधिकारियों और सम्मानित साहित्यिक विभूतियों का आभार व्यक्त किया।गोष्ठी सफलता पूर्वक संपन्न हुई।
एक टिप्पणी भेजें