0 परिणीता सिन्हा 0
पैरो की पाजेब बन घूम लिया संसार ।
पैरों की पाजेब बन गूँजा दिया संसार ।
जब पैरों पर बनाया घेरा,
तब नहीं पता था आँगन का फेरा ।
तुलसी चौरे के इर्द - गिर्द घूमती,
तो कभी खिदमत में घूमती |
घूम - घूम कर बजने के बन गये कई प्रसंग ।
कभी आवाज की वजह से दुलरायी जाती ,
तो कभी शोर मचाने के लिए मिल जाता दंड ।
ये पाजेब भी है बड़ी निगोड़ी,
तभी इसकी संगत मैंने छोड़ी ।
ये तो बज - बज कर औरों को खूब लूभाती ,
पर साथ में हर किसी को,
मेरे होने की चुगली कर जाती ।
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