कार्यक्रम का आरंभ अंजू जैमिनी द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ और फिर नीलम दुग्गल ने माहिया रूप में मधुर सरस्वती वंदना से मंच को भावविभोर कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की संस्थापिका वरिष्ठ लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की अध्यक्षा , मुख्य अतिथि , विशिष्ट अतिथि एवं सभी प्रतिभागियों को काव्य गोष्ठी की सफलता के लिए शुभकामनाएँ समर्पित की और पावस विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा-
पावस जो पूरे 3 महीने की ऋतु कहलाती है। जब वर्षा कहीं अपना खूबसूरत रूप दिखाती है तो कहीं उत्पात। कहीं नदियों को बाढ़ का स्वरूप दे देती है तो कहीं इतना बरसती है कि जल थल एक हो जाता है ।पावस ऋतु कवियों की कलम से अपने सभी रूपों में सृजित होती है। वह सुख दुख के बिम्बों को लेकर काव्य की रचना करता है।
खूबसूरत उम्दा भावों से भरी संतोष श्रीवास्तव की कविता की चंद पंक्तियां
क्या खूब सजी महफ़िल
बादल की बिजलियों की
भर भर सकोरे तृप्त हुए
बरखा के मयकदे में
साकी बनी है बरखा
आलम है मयकशी का।
इस काव्य गोष्ठी में सभी अतिथि वृंद और प्रतिभागी हरे परिधान में सजे नजर आए,जिससे मंच पर सावन और पावस की हरितिमा और उल्लास मूर्तिमान हो गया। इस काव्य गोष्ठी में सभी प्रतिभागियों की काव्य प्रस्तुति और गायन ने समां बांध दिया।
प्रस्तुत है कुछ झलकियाँ
पावस ऋतु, घन चमके
बिजुरिया
मन हरषाएँ देखूँ बदरिया।।
(डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार’)
बारिश की यह पहली फुहार।
तप्त तन हुआ अमिय संचार।
(पुष्पा शर्मा"कुसुम")
यादों के समंदर से निकल आएं तो अच्छा
ग़र अपने नशेमन को सजा पाएं तो अच्छा
( डाॅ.मुक्ता)
लरजते आंसुओं सी बदली घिर घिर के आई है।
शुरू होते ही पावस के घटा घनघोर छाई है।
(सुरेखा जैन)
पावस ऋतु फिर आ गई ,उमड़े शीत फुहार
याद मुझे है आ रहा,मेरा पहला प्यार।
(शकुंतला मित्तल,गुरुग्राम)
सीली सीली यादें लाया बारिश का मौसम
दरिया सा इक बहा लाया
बारिश का मौसम।
(नीलम दुग्गल'नरगिस')
बिजुरिया
मन हरषाएँ देखूँ बदरिया।।
(डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार’)
बारिश की यह पहली फुहार।
तप्त तन हुआ अमिय संचार।
(पुष्पा शर्मा"कुसुम")
यादों के समंदर से निकल आएं तो अच्छा
ग़र अपने नशेमन को सजा पाएं तो अच्छा
( डाॅ.मुक्ता)
लरजते आंसुओं सी बदली घिर घिर के आई है।
शुरू होते ही पावस के घटा घनघोर छाई है।
(सुरेखा जैन)
पावस ऋतु फिर आ गई ,उमड़े शीत फुहार
याद मुझे है आ रहा,मेरा पहला प्यार।
(शकुंतला मित्तल,गुरुग्राम)
सीली सीली यादें लाया बारिश का मौसम
दरिया सा इक बहा लाया
बारिश का मौसम।
(नीलम दुग्गल'नरगिस')
रिमझिम की ऐसी पड़ी फुहार
मनवा नाच उठा दिल हार
(पुष्पा सिन्हा)
मनवा नाच उठा दिल हार
(पुष्पा सिन्हा)
सावन की अद्धभुत घटा, मेघा करते शोर ।
रिमझिम जब बूँदे गिरे ,वन में नाचे मोर ।।
(शारदा मित्तल)
"आये तो हो पावस,पर एक विनती सुन लो।"
(मृदुला मिश्रा)
पावस की पहली बूंदों ने
मावस के अंधेरे दूर किए,,,
(सत्यवती मौर्य)
अजब साज़िशों का बवंडर है बारिश
कहीं सूखा तो कहीं समंदर है बारिश
(मोनिका आनंद)
अंधेरी है भादो की रात
सूझता नहीं हाथ को हाथ ।
के यह पावस की है सौगात ।
सुनो जी तुम्हें सुनाऊं बात ।
(सरोज गुप्ता,गुरुग्राम)
घिर के बूंँदों की घटाएंँ आसमां छाने लगीं
आस फिर नन्ही कली की ज़िंदगी पाने लगी।
(डॉ. कल्पना पाण्डेय,नोएडा)
रिमझिम जब बूँदे गिरे ,वन में नाचे मोर ।।
(शारदा मित्तल)
"आये तो हो पावस,पर एक विनती सुन लो।"
(मृदुला मिश्रा)
पावस की पहली बूंदों ने
मावस के अंधेरे दूर किए,,,
(सत्यवती मौर्य)
अजब साज़िशों का बवंडर है बारिश
कहीं सूखा तो कहीं समंदर है बारिश
(मोनिका आनंद)
अंधेरी है भादो की रात
सूझता नहीं हाथ को हाथ ।
के यह पावस की है सौगात ।
सुनो जी तुम्हें सुनाऊं बात ।
(सरोज गुप्ता,गुरुग्राम)
घिर के बूंँदों की घटाएंँ आसमां छाने लगीं
आस फिर नन्ही कली की ज़िंदगी पाने लगी।
(डॉ. कल्पना पाण्डेय,नोएडा)
आये जब-जब ऋतु पावस
बरसे सावन और भादों नभ से
कभी न छाए दुःखों के बादल
कभी न बरसे किसी के नैनों से
(डॉ. शुभ्रा)
पावस तुम तो ऐसे ना थे,
झूम के आते, मेरा मन हर्षाते थे.
इस बारलगता है रुठ गये .
क्यों तुम मुझको भूल गये.
(नीरजा ठाकुर )
क्या सुहाना समां क्या हसीं रात है।
ऐसे में दूर रहना बुरी बात है।
आज मौसम में मादकता बिखरी हुई,
प्रकृति श्रृंगार करके निखरी हुई।
दिल रो रो कहे, पी कहाँ, पी कहाँ?
अय दिलबर मेरे, तुम छिपे हो कहाँ
- (राधा गोयल,दिल्ली)
आने लगी मुझे याद पिया की रह रह कर हर बात
बरसे सावन और भादों नभ से
कभी न छाए दुःखों के बादल
कभी न बरसे किसी के नैनों से
(डॉ. शुभ्रा)
पावस तुम तो ऐसे ना थे,
झूम के आते, मेरा मन हर्षाते थे.
इस बारलगता है रुठ गये .
क्यों तुम मुझको भूल गये.
(नीरजा ठाकुर )
क्या सुहाना समां क्या हसीं रात है।
ऐसे में दूर रहना बुरी बात है।
आज मौसम में मादकता बिखरी हुई,
प्रकृति श्रृंगार करके निखरी हुई।
दिल रो रो कहे, पी कहाँ, पी कहाँ?
अय दिलबर मेरे, तुम छिपे हो कहाँ
- (राधा गोयल,दिल्ली)
आने लगी मुझे याद पिया की रह रह कर हर बात
कैसे कहूं सखी आज सजन बिन फीकी यह बरसात
(वीणा अग्रवाल, गुडगांव)
(वीणा अग्रवाल, गुडगांव)
चल हम बन बैठें दूल्हा दुल्हन
बूंदें फूल बन बरसेंगी
रब की रहमत साथ रहेगी
दिलों की कलियाँ हर्षएंगी
(वन्दना रानी दयाल)
मेघों की गरजन से आकाश झूम उठा ,
मोती बिखरे चहुँ ओर चितवन झूम उठा ।
(मनवीन कौर)
अब धरा को तृप्त करने,घन घटा छाने लगी है,
छम छमा छम मेघ बरसे,बारिशें भाने लगी हैं।
(चंचल पाहुजा,दिल्ली)
पावन सावन महीना लगता,
भोले शंकर को अति प्यारा।
( अलका जैन आनंदी )a
अब सबकी होगी पूरी आस,
ये है पावस का आगाज ।
(उषा)
अध्यक्षा दुर्गा सिन्हा "उदार" ने सभी सम्मानित रचनाकारों की काव्य प्रस्तुति की समीक्षा करते हुए उन्हे बधाई दी। विशिष्ट अतिथि सिसोदिया जी ने मथुरा में बिताए बचपन की पावस ऋतु को याद करते हुए सबको शुभकामनाएँ समर्पित की। कार्यक्रम के अंत में शकुंतला मित्तल ने संस्थापिका संतोष श्रीवास्तव का,अतिथि वृंद और मंच पर उपस्थित सभी सम्मानित साहित्यिक विभूतियों का आभार व्यक्त किया। गोष्ठी हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में संपन्न हुई।
बूंदें फूल बन बरसेंगी
रब की रहमत साथ रहेगी
दिलों की कलियाँ हर्षएंगी
(वन्दना रानी दयाल)
मेघों की गरजन से आकाश झूम उठा ,
मोती बिखरे चहुँ ओर चितवन झूम उठा ।
(मनवीन कौर)
अब धरा को तृप्त करने,घन घटा छाने लगी है,
छम छमा छम मेघ बरसे,बारिशें भाने लगी हैं।
(चंचल पाहुजा,दिल्ली)
पावन सावन महीना लगता,
भोले शंकर को अति प्यारा।
( अलका जैन आनंदी )a
अब सबकी होगी पूरी आस,
ये है पावस का आगाज ।
(उषा)
अध्यक्षा दुर्गा सिन्हा "उदार" ने सभी सम्मानित रचनाकारों की काव्य प्रस्तुति की समीक्षा करते हुए उन्हे बधाई दी। विशिष्ट अतिथि सिसोदिया जी ने मथुरा में बिताए बचपन की पावस ऋतु को याद करते हुए सबको शुभकामनाएँ समर्पित की। कार्यक्रम के अंत में शकुंतला मित्तल ने संस्थापिका संतोष श्रीवास्तव का,अतिथि वृंद और मंच पर उपस्थित सभी सम्मानित साहित्यिक विभूतियों का आभार व्यक्त किया। गोष्ठी हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में संपन्न हुई।
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