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चिंता नही चिंतन का करिए चुनाव


0 परिणीता सिन्हा 0

चिंता जब जीवन में छा जाती है ।   

हर तरफ उदासी पसर जाती है।

चिंता आँखों को खूब सताती है ।

चिंता इंसान को जीर्ण बनाती जाती है। 

चिंता जब सामान्य हो

तो जिम्मेवारियो का भान कराती है। 

चिंता जब असमान्य हो जाए,

तो चिकित्सक तक पहुँचाती है । 

चिंता और चिंतन दोनों है अलग, 

एक चिता तक पहुँचाए, 

तो दूसरा महामानव बनाए ।  I

गर जीवन में चाहिए ठहराव,

चिंता नही चिंतन का करिए चुनाव । 

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